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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [१०० तत्थसूरिं, तओ सामाइयं करे ॥२९॥ काऊणय सामाइयं, इरियंपडि. कमियं,गमणमालोए । वंदित्तु सूरिमाइ, सझ्झायावस्मयं कुणइ ॥३०॥ व्याख्या- सांप्रतमष्टदशं सरकार द्वारमाह- ततो वैकालिकानंतरं, विकालवेलायां अंतर्मुहूर्तरूपायां, तामेवव्यनक्ति अस्तमितेदि. वाकरे अर्द्धबिंबादवाक् इर्थः । पूर्वोक्तेन विधानेन पूजाकृत्वतिशेषः । पुनवेदते जिनोत्तमान् प्रसिद्ध चैत्यवंदन विधिना ॥ २८ ॥ अथैकोन विंशति वंदनकोपलक्षितमावश्यक द्वारमाह-ततस्तृतीय पूजा नंत. रं श्रावकः पौषधशालांगत्वा यतनया प्रमार्टि, ततो नमस्कार पूर्वकं व्यवहित तुशब्दस्यैवकारार्थ त्वात् स्थापयित्वैव तत्र सूरि स्थापना. चार्य, ततो विधिना सामायिकं करोति ॥ २९ ॥ अथ तत्र साधवोs. पिसंति श्रावकेण गृहे सामायिकं कृतं, ततोऽसौसाधुसमीपे गत्वाकिं करोति इत्याह-- साधुसाक्षिकं पुनः लामायिकं कृत्वा ईर्याप्रतिक्र. म्यागमनमालोचयेत् तत आचार्यादीन् वंदित्वा स्वाध्यायं काले चावश्यकं करोति ॥ ३० ॥ इत्यादि" - ३३-अब देखिये-ऊपरके सर्वमान्य प्राचीन शास्त्रपाठोंमे श्रावकको सामायिक कैसे करना चाहिये ? इस सवाल के जवाबमें सर्व शास्त्र कार महाराजोंने इस प्रकार खुलासा पूर्वक लिखा है. १-सामायिक करनेवाले राजादि धनवान व व्यवहारिक धन रहित ऐसे दो प्रकारके श्रावक बतलाये. २- धन रहित श्रावकको भगवान के मंदिर में १, उपद्रवरहित एकांत जगहमें अपने घरमे २, साधु महाराजके पासमे ३, वा पौषध शालामै ४, ऐसे ४ स्थान सामायिक करनेके लिये बतलाये. ३- जब श्रावकको संसारिक कार्योंसे निवृत्ति होवे [फुरसत मिले ] तब हरेक समय सामायिक करनेका बतलाया. '४-धर्म कार्योंमें अनेक तरहके विघ्न आतेहैं, और उपयोगी विवेकवाले श्रावकको धर्मकार्यों के बिना समय मात्रभी खाली व्यर्थ गमानायोग्यनहीं है,इसलिये संसारिक कार्योंसे फुरसद मिलतेही रस्ते चलने में यदि किसीके साथ लेने देने वगैरहसे कोईतरहका भयनहीं हावे तो अपनेघरमें सामायिकलेकर पीछे गुरुपासजानेकावतलाया. ५-जैसे उपवासादिकके पच्चख्खाण अपनेघरमें करलिये हो तो भी गुरुमहाराजकेपास जाकर फिर गुरु साक्षिसे उपवासादि पच्चएमाण करने आते हैं. तैसेही-श्रावकको अपने घरमें सामायिक ले For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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