________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
[९७)
२७- कितनेकलोग अपना असत्य आग्रह छोडसकतेनहीं,व सत्य बात ग्रहणभी कर सकते नहीं, इसलिये मोले जीवों को अपने पक्षमें लाने के लिये जान बुझकर कुतर्क करते हैं, कि, श्रीआवश्यक सूत्रकी चूर्णि-वृहवृत्ति- लघुवृत्ति-पंचाशकचूर्णि-वृत्ति-श्राद्धदिनकृत्यसू. प्रवृत्ति-श्रावकधर्म प्रकरणवृत्ति-नवपद प्रकरणवृत्ति-योगशास्त्र वृत्ति वगैरह शास्त्रोमे सामायिकमे पहिले करेमिभंतेका उच्चारण करके पीछेसे इरियावही करनेका कहाहै, सो वह शास्त्र पाठ स्वाध्याय संबंधीहैं ? या चैत्यवंदन-गुरुवंदन संबंधी ? या आलोयणा संबंधी हैं? अथवा सामायिक संबंधीहैं? इसकी हमको अच्छी तरहसे मालूम नहीं पडती, उससे वह शास्त्र पाठ सामायिक संबंधीहैं, ऐसा निश्चयनहींहोसकता.इसलिये उनशास्त्रपाठोके अनुसार सामायिक पहिले करेमिभंते पीछे इरियावही कैसे किया जावे ? ऐसी कुतर्क कर• तेहैं,सो सर्वथा झूठीहीहैं,क्योंकि ऊपरके सर्व शास्त्रपाठोंमें श्रावकके १२ व्रतोंमें ९में सामायिकवतसंबंधी सामायिक करनेके लियेही सा. मायिककी विधिसंबंधी खुलासापूर्वक प्रथम करेमिभंतेका उशारण किये बाद पीछेसे इरियावही करनेका लिखाहै,उसके विषयमें सत्य ग्रहण करनेवाले आत्मार्थी भव्यजीवोंको निस्संदेह होनेकेलिये थोडे. से शास्त्रोंके पाठभी यहां पर बतलाते हैं. __२८- श्री यशोदेव सूरिजी महाराज कृत श्री पंचाशक सूत्रकी चूर्णिका पाठ देखो- "तिविहेण साहुणो णमिऊण सामाइयं करेइ 'करेमिभते ! सामाइअं' एवमाइ उच्चरिऊण, तउ पच्छा इरियावहीयाए पडिक्कमइ, आलोएत्ता, वंदित्ता आयरियादि, जहा- रायणिए, पुणरवि गुरुं वं. दित्ता, पडिलेहिता णिविठ्ठो पुच्छति पढति वा" इत्यादि..
। २९- श्रीचंद्रगच्छीय श्रीविजयसिंहाचार्यजी कृत श्रावकप्रति. क्रमण [ वंदित्तासूत्र ] की चूर्णिका पाठ भी देखो___ “वंदिऊण त्थोभ वंदणेण गुरुं संदिसाविऊण सामाइय दंडकमणु कविय, जहा- 'करेमिभंते ! सामाइयं, जाव-अप्पाणं वोसिरा. मि' तओ इरिअं पडिक्कमिय आगमणं आलोएइ, पच्छा, जहा-जेहूं साहुणो वंदिऊण, पढइ सुणइ वा” इत्यादि.
३०- श्रीलक्ष्मीतिलकसूरिजीकृत श्रावकधर्मप्रकरणवृत्तिका पाठ यहांपर दिखलाताहूं यथा- "अत्र क्रियमाणं श्राद्धानां सामायिकं नि प्रत्यूहं नि“हति तत्स्थानमुपदिशति
For Private And Personal