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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वानं ९५२ वामभाग: वानं (नपुं०) सूखा फल। (जयो० १/५८), (समु० ६/२१) कापीव वापी सरसा ० चलना। सुवृत्ता मुद्रेव शाटीव गुणैकसत्ता। (सुद० २/६) जीना लुढ़कना। दीर्घिका (जयो० ३/४८) विर्धिर्येनाभ्युपायेन नाभिवापी गंधा निखातवान् (जयो० ३/४८) वानप्रस्थः (पुं०) [वाने वनसमूहे प्रतिष्ठते-स्था-क] वानप्रस्थ वापीतटः (पुं०) वापिका तट। (जयो० २१/८८) साधु, वैरागी, मुनि (जयो० ) 'वानप्रस्थस्तु मध्यमम्' वाबिन्दु (नपुं०) जल की बूंद। (सुद० ४/३०) कान्ताप्रसङ्गरहिता (दयो० ११८) जो संसार के सभी झंझटों से दूर तथा खलु चक्रवाकी वापीतटेऽप्यहनि ताम्यति सा वराकी। ध्यान-अध्ययन में लीन रहते हैं वे वानप्रस्थ आश्रम वाले (वीरो० २/४५) यति हैं। 'वानप्रस्था अपरिगृहीतजिनरूपा वस्त्रखण्डधारिणो वाम (वि०) [वम्+ण, वा+मन्] ०बांया ०बाई ओर। प्रजया निरतिशयतपः समुद्यताः' (सागर ध०टी० ७/२०) परिपूर्यते पुरस्तादिति वामे क्रियते स्म सा तु शस्ता। ०मधूक वृक्षा (जयो०१२/८९) ०पलाश वृक्ष, ढाका ०दक्षिण। (तनया तावदवाममेव हस्तम्) (जयो० १२/६१) धार्मिक जीवन के तृतीय आश्रम में प्रविष्ट व्यक्ति। दक्षिण भाग। प्रथमं भुवि सज्जनैर्वत इति वामोऽपि वानरः (पुं०) [वानं वनसम्बंधि फलादिकं राति गृह्णति रा+क, सदक्षिणीकृतः। (जयो० १२/७४) वा विकल्पेन नरो वा] बंदर, लंगूर। सुंदर-वामोऽपि सुंदरोऽपि (जयो०वृ० १२/७५) वानरप्रियः (पुं०) खिरनी वृक्ष। विपरीत, उलटा, विरुद्ध, विरोधी। वानराक्षः (पुं०) जंगली अज। प्रतिकूल। (जयो० ३/९१) वानरावातः (पुं०) लोध्र वृक्ष। प्रिय, सुंदर, लावण्ययुक्त, मनोहर। वाम मनोहरं रूपं वानरेद्रः (पुं०) सुग्रीव, हनुमान। यस्य तस्य। (जयो०वृ० १/४६) वानल: (पुं०) [वानं वनसम्बन्धि वनभावं निविडतां लाति दुष्ट, दुर्वृत्त, अधम, नीच, कमीना। ला+क] तुलसी पादप। कुटिल, वक्रगति, युक्त, दुराग्रही। वाना (स्त्री०) बटेर, लवा। वामः (पुं०) सजीव प्राणी, जन्तु। वानायुः (पुं०) एक देश। ०कामदेव। वानास्पत्यः (पुं०) [वनस्पति+ष्यञ्] आम्र तरु। . सर्प। वानीरः (पुं०) [वन+ईरन्+अण्] बेंत। औड़ी, ऐन। वानीरकः (पुं०) [वानीर+कन्] मुंज नामक घास। वामं (नपुं०) सम्पत्ति, वैभव। वानेयं (नपुं०) [वन+ढञ्] नागर मोथा, सुगन्धित घास। वामदृश् (स्त्री०) मनोहर दृष्टि। वान्त (भू०क०कृ०) [वम्+क्त] वमन, उद्गीर्ण। (जयो०८/३०) वामन (वि०) ठिगना, बौना। (जयो० २/१४८) प्रक्षिप्त, उगला हुआ, उंडेला हुआ। वामदेवः (पुं०) कामदेव। वान्ति (स्त्री०) [वम्+क्तिन्] वमन, कै। महादेव, शिव। (जयो० २६/१०२) वान्तिकृत् (वि०) वमन करने वाला। वामनपुराणः (पुं०) एक पुराण विशेष। वान्या (स्त्री०) [वन+यत्+टाप्] अरण्य समूह। वामनसंस्थान (नपुं०) हस्त पादादिहीन होना। वापः (पुं०) [वप्+घञ्] बीज बोना। वामपथः (पुं०) विपरीत मार्ग, कुटिल मार्ग। ०बुनना। वामपरम्परा (स्त्री०) वामा मनोहर परम्परा यस्याः सा (मनोहर ०बाल मूंडना। परम्परा) (जयो० ११/९) वापदण्डः (नपुं०) [वप्+णिच्+क्त] बोया हुआ, मुंडा हुआ। वामपादः (पुं०) बांया पैर। वापि (अव्य०) और भी, फिर भी। (सुद० २/१६) वामबोधः (पुं०) प्रतिकूल ज्ञान। वापि (स्त्री०) [वप्+इञ् वा ङीप्] बावड़ी, कुंआ, वापिका | वामभागः (पुं०) बाईं तरफ, बाईं ओर। (दयो०७५) किंवा For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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