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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वज्रकंटकः ९२४ वञ्चक वज्रकंटकः (पुं०) वज्रकील। वज्रकङ्करः (पुं०) हनुमान। वज्रकाण्ड (नपुं०) वज्रकाण्डसन्धान। (जयो० ८/४३) वज्रकीलः (पुं०) वज्र निर्मित कील, दृढकील। बिजली। वज्रक्षारं (नपुं०) वज्र मिट्टी, श्वेत कंकण। ०क्षेत्र/खेत कंकर। वज्रखण्डं (नपुं०) हीरकखण्ड। (जयो० १९/७) वज्रगोपः (पुं०) वीस्वधूटी। वजचञ्चः (पुं०) गिद्धपक्षी। वनचर्मन् गौंडा। वज्रजित् (पुं०) गरुड पक्षी। वज्रज्वलनं (नपुं०) विद्युत, बिजली। वज्रज्वाला (स्त्री०) बिजली। वज्रतुण्डः (पुं०) गिद्ध। मच्छर। व्रजनाराचसंहननं (नपुं०) वज्रमयी हड्डी। वज्रर्षषनाराचसंननं (नपुं०) अभेद्य हड्डियों का संचय। डांस मच्छर। गरुड़। वज्रतुल्यं (नपुं०) नीलम मणि। वज्रदंष्ट्रः (पुं०) एक कीट विशेष। वज्रदन्तः (पु०) मूषक। ०सूकर! वज्रदशन: (पुं०) मूषक, चूहा। वज्रदेह (वि०) दृढ शरीरी। वजदेति (वि०) शक्ति सम्पन्न, शक्तिशाली देह। वजदृढ़ (वि०) वज्र की तरह मजबूत, वज्र की तरह शक्तिशाली। (दयो० ७७) वज्रधरः (पुं०) इन्द्र। वज्रनाभः (पुं०) कृष्णचक्र, सुदर्शन चक्र। वग्रनिर्घोषः (पुं०) बिजली की चमक, विद्युत्तडक। वज्रपाणि: (पुं०) इन्द्र। वज्रपातः (पुं०) विद्युत् पतन, बिजली गिरना, बिजली का आंघात। (दयो० ४३) वज्रपुष्पं (नपुं०) तिल का पुष्प। व्रजभृत् (३०) इन्द्र। 'वज्रमणिः (स्त्री०) हीरक मणि। 'वज्रमुष्टिः (पुं०) इन्द्र। वजरदः (पुं०) सूकर, सूअर। वज्रलेपः (पुं०) दृढ़लेप, सीमेन्ट आदि का प्लास्तर। वज्रलोहकः (पुं०) चुम्बक। वज्रव्यूहः (पुं०) सैन्य व्यूह, सैन्य सुरक्षा विधि। वज्रशल्यः (पुं०) सेही जानवर। वज्रसार (वि०) पत्थर की भाति कठोर। वज्रसूचि (स्त्री०) हीरक सुई। वज्रषेणः (पुं०) साकेत नगरी का राजा। (वीरो० ११/२८) वज्रसेनः (पुं०) महाकच्छ का एक राजा, जो अत्यंत दुराचारी था। (समु० २/२८) वज्रहृदयं (नपुं०) कठोर हृदय, दृढ़ हृदय। वज्राकारः (वि०) वज्र तुल्य आकार वाला। वज्रायुधः (पुं०) चक्रायुध राजा का पुत्र। (समु० ६/२८) वजिन् (पुं०) इन्द्र, शक्र, पुरन्दर, ०देव इन्द्र। (समु० २/१७) ०ऊलूक, उल्लू। वञ्च् (संक०) ठगना, धोखा देना। ०जाना, भागना, हटना। वञ्चक (वि०) [वञ्च+णिच्+ण्वुल्] ०ठग्, धूर्त, चालाक, मक्कार। ०धोखेबाज, छली। वञ्चकः (पुं०) ठग, धूर्त। गीदड़। (दयो० ३७) ०छछूदर। ०पालतू नेवला। वञ्चकता (वि०) ठगीपना, धूर्तता। (दयो० ३५, सुद० १०५, ३/२२) वञ्चतिः (स्त्री०) अग्नि, आग। वञ्चथः (पुं०) [वञ्च+अथ:] ठगना, धोखा देना, चालाकी। ०ठग, धूर्त, बदमाश, उचक्का । कोयल। वञ्चनं (नपुं०) [वञ्च ल्युट्] ०ठगा, धोखा देना, धूर्त, ठग। वञ्चना (स्त्री०) माया, छल, भ्रम। (सुद० ७५) ठगी, चालाकी, धूर्तता। (जयो० २/५७) ०क्षति, हानि, अभाव। वञ्चित (भू०क०कृ०) [वञ्च+क्त] ०ठगा गया, धोखा खाया गया। किमन्यैरहमप्यस्मिवञ्चितो माययाऽनया। (वीरो०१०/६) ०असमर्थ। (जयो० ९/७२) प्रतारित। वञ्चुक (वि०) छल से परिपूर्ण, धोखे से युक्त। ०ठगी, धोखा देने वाला। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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