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वक्र
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वक्ष
वक्र (वि०) [व +रन्] ०कुटिल, तिर्यग्।
टेढा, झुका हुआ, चक्करदार। (सुद० २/४६) गोलमोल, मण्डलाकार। ०कूट, धातक, नाशक, विध्वंसक। वक्रः (पुं०) शनिग्रह, मंगलग्रह। वर्क (नपुं०) नदी का मोड़।
प्रतिगमन, बहाव। वक्रकण्टः (पुं०) बेर का पेड़। वक्रकण्टकः (पुं०) खैर तरु। वक्रखङ्गः (पुं०) कटार, तलवार। वक्रगति (स्त्री०) टेढ़ी चाल, तिर्यक् गति। (सुद० १०५)
दर्पवतः सर्पस्येवास्य तु वक्रगतिः सहसाऽवगता। (सुद०
१०५) वक्रगामिन् (वि०) कुटिल गति वाला, टेढ़ी चाल चलने वाला,
जालसाज, बेईमान। वक्रग्रीवः (पुं०) ऊँट, उष्ट्र। वक्रचञ्च (स्त्री०) तोता, शुक्र। वक्रतुण्डः (पुं०) गणपति, गणेश। वक्रदंष्ट्रः (पुं०) सूकर, सूअर। वक्रदृष्टि (स्त्री०) तिरछी चितवन वाला, भँगा, कुटिलता युक्त
आंख वाला। वक्रदृष्टिः (स्त्री०) तिरछी अक्षि, तिर्यग् नेत्र। वक्रता (वि०) कुटिलता, वक्रिमा (जयो०वृ० ११/९६) वक्रतावस्था (स्त्री०) वक्रिमक्षण, कुटिल भाव की स्थिति।
(जयो०वृ० ११/८) वक्रत्व (वि०) कुटिलता, तिर्यग् गति युक्त। (वीरो० २/४८)
अहीनत्व किमादायि त्वया वक्रत्वमीयुषा। (वीरो० १०/२२)
कौटिल्यक। (जयो० २/१४६) वक्रनकः (पुं०) शुक, तोता। वक्रनासिकः (पुं०) उल्लू। वक्रपुच्छ:/वक्रपुच्छकः (पुं०) श्वान, कुत्ता। वक्रपुष्पः (पुं०) ढाक वृक्षा वक्रबालधिः (पुं०) श्वान, कुत्ता। वक्रभावः (पुं०) टेढ़ापन, कुटिलभाव। वक्रभू (पुं०) कुटिल भौंह। (जयो० २२/६५) वक्रलता (स्त्री०) झकी हई लता. मण्डलाकार बल्लरी। वकलांगूलः (पुं०) कुत्ता, कुक्कुट, श्वान। वक्रवक्रः (पुं०) सूकर, सूअर।
वक्रवाक्यं (नपुं०) कुटिलवाक्य, घुमावदार कथन। (जयो०
१६/५२) वक्रिन् (वि०) [वक्र+इनि] कुटिल (जयो० ११/९६) कुटिल
गामी, वक्रता। (सुद० १/४२) चापलतेव च सुवंशजाता
गुणयुक्तक पि वक्रिकख्याता। (सुद० १/४२) वक्रिमन् (पुं०) [वक्र+इमनिच्]०कुटिलता, वक्रता, टेढ़ापन। ०चक्कर, घुमाव।
धूर्तता, चलाकी, ठगी, छलभाव। वक्रिमक्षणं (नपुं०) वक्रतावस्था, कुटिलता का समय। (जयो०
११/९६) वक्रिमकल्पः (पुं०) कुटिल विचार। 'वक्रस्य भावो वक्रिमा
तस्य कल्पः समुत्यादः' (वीरो० १/३८) वक्रोष्टिः/वक्रोष्टिका (स्त्री०) [व] ओष्ठो यस्याम्] मृदु
मुसकान, मन्द-मन्द हास्यता। वक्रोक्ति (स्त्री०) [वक्र: उक्ति यस्याम्] ०वक्रकथन, कुटिल
प्रतिपादन। (जयो० ७/६६) ०वक्रोक्ति नामक अलंकार। जिसमें टालमटोल युक्त कथन श्लेष के साथ कहा जाता है। प्रस्तुतादपरं वाच्यमुपादायोत्तरप्रदः। भङ्गश्लेषमुखेनाह यत्र वक्रोक्तिरेव सा। (वाग्भट्टालंकार ४/१४) कुमाराद्य यमाराते जातुचिन्नात्र संशयः। मुक्त्वा क्षमामिदानीं तु जयं जयसि जित्वरः।। (जयो० ७/३५) (जयो० १४/३०, २६/७६, ५/१८, २२/७०,
२२/६८, २२/४७, वीरो० १/१०) वक्रोक्तिश्लेषः (पुं०) वक्रोक्ति युक्त श्लेष। (जयो०७०
२२/१०) वक्रोक्तिर्दृष्टान्तः (पुं०) वक्रोक्ति पूर्ण दृष्टान्त।
रजो यथा पुष्पसमाश्रयेण किलाऽऽबिलं मद्वचनं च येन। वीरोदयोदारविचारचिह्न सतां गलालाङ्करणाय किन्न।।
(वीरो० १/१०) वक्रोडुपः (पुं०) स्वकीय मुखचन्द्र मुख। वक्रोडुपे
किंपुरुषाङ्गनाभिः क्लृप्तावलोक्याथ च राहुणा भी:। (जयो०
८/३४) वक्ष (अक०) वृद्धि को प्राप्त होना, बढ़ना, कहना। (जयो०
३/५५) शक्तिशाली होना। ० क्रुद्ध होना। संचित होना।
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