________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
बृहद् संस्कृत-हिन्दी शब्द कोश
जीव के पांच भाव- १. औपशमिक, २. क्षायिक, ३. क्षायोपशमिक ४. औदयिक, ५. पारिणामिक। ज्योतिरङ्ग प्रकाश को देने वाला एक कल्पवृक्षा
www.kobatirth.org
ज्ञ ज्ञान पदार्थों को साकार सविकल्पक जानना । ज्ञानोपयोग के आठ भेद-१ मतिज्ञान २. श्रुतज्ञान, ३. अवधिज्ञान, ४ मन:पर्ययज्ञान, ५. केवलज्ञान, ६. कुमतिज्ञान, ७. कुश्रुत ज्ञान, ८. कुअवधि ज्ञान ।
त
तत्त्व- जीवादि पदार्थों का वास्तविक स्वरूप- १. जीव, २. अजीव । ० पदार्थ चिन्तन ।
तत्त्व भेद-१. मुक्त जीव, २. संसारी जीव ३. अजीवा तत्त्वार्थ- जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल ये छह तत्त्वार्थ हैं। इन्हीं को छह द्रव्य कहते हैं। जीवादि सात तत्त्व।
तन्तुधारण चारणऋद्धि का एक भेद।
तीर्थकृत् - धर्म के प्रवर्तक तीर्थंकर हैं, भरत और ऐरावत क्षेत्र में इनकी संख्या २४-२४ होती है, विदेह क्षेत्र में २० होते हैं।
तुटिकाशब्द-संख्या का एक प्रमाण ।
योग-बाजों को देने वाला एक कल्पवृक्ष
तृतीय व्रत की भावना -
१. मिताहार ग्रहण २. उचिताहार ग्रहण, ३. अभ्यनुज्ञात ग्रहण, ४. विधि के विरुद्ध आहार ग्रहण नहीं करना, ५. प्राप्त आहार पान में सन्तोप रखना।
त्र
त्रायस्त्रिंश-देवों का एक भेद ।
त्रिबोध- तीन ज्ञान, १. मतिज्ञान, २. श्रुतज्ञान और ३ अवधि ज्ञान । ये तीन ज्ञान तीर्थ करके जन्म से ही होते हैं।
त्रिमृढ़ता - देवमूढ़ता गुरुमूढ़ता, लोकमूढ़ता।
त्रिवर्ग-धर्म, अर्थ, काम
त्रिषष्टिपुरुष - २४ तीर्थकर, १२ चक्रवर्ती, ९ नारायण, ९ प्रतिनारायण, ९ बलभद्र ये त्रिषष्टि पुरुष ६३ शलाका पुरुष कहलाते हैं।
त्रिविध-तीन प्रकार का ।
त्रैकाल्य- भूत भविष्यत्, वर्तमान काल ।
द दण्ड- चार हाथ का एक दण्ड होता है। दर्शन-पदार्थों को अनाकार निर्विकल्प जानना । दर्शनमोह मोहनीयकर्म का एक भेद जो सम्यग्दर्शन गुण को घातता है।
१२५४
पारिभाषिक शब्द
दर्शनोपयोग १. चक्षुदर्शन, २. अचक्षुदर्शन ३ अवधिदर्शन, ४. केवलदर्शन |
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
दीपांग- दीपकों को देने वाला एक कल्पवृक्ष । देशावधि- अवधिकज्ञान का एक भेद।
दुःषमा अवसर्पिणी पांचवां काल
द्वितीयव्रत भावना - १. क्रोध त्याग, २. लोभत्याग, ३. भयत्याग, ४. हासत्याग और ५ सूत्रानुगामी शास्त्र के अनुसार वचन बोलना ये पांच सत्य व्रत की भावना है।
-
,
,
द्रव्यलेश्या - शरीर एक रूप रंग। इसके ६ भेद हैं- १. कृष्ण, २. नील, ३. कापोत, ४. पीत ५ पद्म ६. शुक्ल । द्रव्यानुयोग - शास्त्रों का भेद, जिनमें द्रव्यों के स्वरूप का वर्णन रहता है।
द्रोणमुख जो नदी के किनारे बसा हो ऐसा ग्राम
ध
धनुष चार हाथ का एक धनुष होता है।
धर्म- जो जीव और पुद्गल की गति में सहायक हो, ०धर्म द्रव्य । धर्म वस्तु स्वभाव।
धर्मचक्र - तीर्थकरके केवलज्ञान हो चुकने पर प्रकट होने वाला देवोपनीत उपकरण इसमें एक हजार अर होते हैं और वह सूर्य के समान देदीप्यमान रहता है, बिहार के समय तीर्थ करके आगे-आगे चलता है। धर्म्यध्यान- ध्यान का एक भेद- १. आज्ञाविचय, २. अपायविचय, ३. विपाकविचय, ४. संस्थान विचय।
न
नय- जो वस्तु के एक धर्म (नित्यत्व-अनित्यव आदि) को विवक्षावश क्रम से ग्रहण करे, वह ज्ञान । यह द्रव्यार्थिक, पर्यायार्थिक, निश्चय, व्यवहार नय आदि के भेद से अनेक प्रकार का होता है।
नयुत - संख्या का एक भेद ।
नयुतांग संख्या का एक भेद। नलिन संख्या का एक प्रमाण।
नवकेवल लब्धियाँ-१ क्षायिक ज्ञान, २. क्षायिक दर्शन, ३.
क्षायिक सम्यक्त्व, ४ क्षायिक चरित्र ५. क्षायिक दान, ६. क्षायिक लाभ, क्षायिक भोग, ७०. क्षायिक उपयोग, ८. क्षायिक वीर्य ।
नवपदार्थ जीव, अजीव, आस्त्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा, मोक्ष, पुष्व और पाप थे नौ पदार्थ है।
निक्षेप नय और प्रमाण के अनुसार प्रचलित लोक व्यवहार ।
For Private and Personal Use Only