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पारिभाषिक शब्द
१२५५
बृहद् संस्कृत-हिन्दी शब्द कोश
प
निगोत ( निगोद)-- साधारण वनस्पति काय, जिसके आश्रित पूर्वकोटी-एक करोड़ पूर्व चौरासी लाख वर्ष का एक पूर्वांग अनन्त जीव रहते है। इसका दूसरा नाम निगोद
होता है और चौरासी लाख पूर्वांग का एक पूर्व होता प्रसिद्ध है। इसी प्रकार का एक निकोत शब्द भी
है। ऐसे एक करोड़ पूर्व। आता है जो कि सम्मूच्र्छन जीवों का वाचक है। पूर्वरंग-नाटक का प्रारम्भिक रूप। निर्यापक-सल्लेखना- समाधि की विधि कराने वाला-निर्देशक पृथकत्व-तीन से ऊपर और नौ से नीच के संख्या। निर्वेद-संसार -शरीर और भोगों में विरक्तता।
पृथक्त्वध्यान (पृथक्त्ववितर्क)-शुक्ल ध्यान का प्रथम पाया। निर्वेदिनी-वैराग्यवर्धक कथा।
प्रकीर्णक-फुटकर बसे हुए विमान। नैःषड़क व्रतभावना-बाह्याभ्यन्तर भेद से युक्त पंचेद्रिय सम्बन्धी प्रत्यय-सम्यग्दर्शन का पर्यायन्तर नाम। सचित अचित विषयों में अनासक्ति।
प्रत्येक बुद्ध-वैराग्य का कारण देख स्वयं वैरागय धारण करने
वाले मुनि। पञ्चास्तिकाय-१. जीव, २. पद्गल, ३. धर्म, ४. अधर्म, ५.
प्रथम व्रत भावन-१. मनोगुप्ति, २. वनचगुप्ति, ३. कायगुप्ति, आकाश,
४. ईर्या समिति ये पाँच अहिंसाव्रत की भावनाएँ हैं। पत्तन--जो समुद्र के पास बसा हो तथा जिसमें नावों से
प्रथमानयोग-शास्त्रों का एक भेद जिसमें सत्पुरूषों के कथानक उतरना-चढ़ना होता है।
लिखे जाते हैं भिषष्टि शलाका पुरूष चरित्र कथा पदानुसारिन्-पदानुसारी ऋद्धि के धारक।
का योग। पदार्थ-जीव अजीव, आस्त्रव, बन्ध, संवर, निजरा, मोक्ष,
प्रमाण-जो वस्तु के समस्त धर्मों (नित्यत्व-अनित्यत्व आदि) पुष्य, पाप ये नौ पदार्थ कहलाते हैं।
को एक साथ ग्रहण करे वह ज्ञान सर्वग्राही प्रमाण पद्य-संख्या का एक भेद।
होता है। परग्राम-जिसमें पाँच सौ घर हों तथा सम्पन्न किसान हों
प्रशम-सम्यग्र्दशन का एक गुण, कषाय के असंख्यात लोक - इसकी सीमा २. काश की होती है।
प्रमाण स्थानों में मन का स्वभाव से शिथिल होना। परमावधि-अवधिज्ञान का भेद।
प्रायोपणापगम (प्रायोपगम)-संन्यास। परमेष्टी-अरहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु ये ५
प्रायोपगमन--संन्यास-सल्लेखना परमेष्ठी कहलाते हैं। जो परमपद में स्थित होते हैं।
प्रोषधव्रत-प्रोषधोपवास नामक चौथी प्रतिमा। इसमें प्रत्येक पर्यास-जिनके शरीर पर्याप्ति पूर्ण हो चुके है।
अष्टमी और चतुर्दशी को उपवास करना पड़ता है। पर्व-संख्या एक भेद। परिग्रहपरिच्युति-परिग्रह त्याग नामक नौवीं प्रतिमा, इसमें । फलचारण-चारण ऋद्धिका एक भेद। इस ऋद्धि के धारी आवश्यक वस्त्र तथा निर्वाहयोग्य बरतनों के सिवाय
वृक्षों में लगे फलों पर यपैर रखकर चलें फिर भी सब परिग्रहक त्याग हो जाता है।
फल नहीं टूटते हैं। पल्य-असंख्यात वर्षों का एक पल्य होता है। पारिषद- देवों का एक भेद।
बल-बलभद्र, नारायण आदि जब होते हैं। पुद्गल-वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श से सहित द्रव्य जो पुरण,
बीजबुद्धि-बीजबुद्धि ऋद्धि के धारक। गलन स्वभाव आदि रूप होता है।
ब्रह्मचर्य-यह सातवीं प्रतिमा है, इसमें स्त्री मात्र का त्याग कर पुद्गलके छद भेद-१. सूक्ष्म सूक्ष्म, २. सूक्ष्म, ३. सूक्ष्मस्थूल,
पूर्ण ब्रह्मचर्य धारण करना पड़ता है। ब्रह्म/आत्म में ४. स्थूल सूक्ष्म, ५. स्थूल, ६. स्थूल-स्थूल।
रत होना। पुर-जो परिखा, गोपुर, कोट तथा अट्टलिका आदि से सुशोभित हो, बाग-बगीचे और जलाशय से सहित होता पुर
भव्य-जिसे सिद्धि-मुक्ति प्राप्त हो सके ऐसा जीव। (भ) पुष्चारण-चारणऋद्धिका एक भेद।
भावना-भवनवासी देव।
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