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पारिभाषिक शब्द
१२५३
बृहद् संस्कृत-हिन्दी शब्द कोश
काल-वर्तना लक्षण से युक्त एक द्रव्य। एक प्रदेशी। घड़ी, घोष-जहां अहोर रहते हैं।
घण्टा, दिन, सप्ताह आदि। किल्विषिक-देवों का एक भेद।
चक्रवर्ती-चक्ररत्नका स्वामी, राजाधिराज। ये १२ होते हैं तथा कुमुद-संख्या का एक भेद।
भरत ऐरावत और विदेह क्षेत्र के छह खण्डों के केवली-ज्ञानावरण कर्म के क्षय से प्रकट होने वाला पूर्णज्ञान
स्वामी होते हैं। जिन्हें प्राप्त हो चुका है। उन्हें अहरन्तसर्वज्ञ अथवा
चतुर्थव्रतभावना-१. स्त्री कथा-त्याग, २. स्त्र्यालोक त्याग, ३. जिनेन्द्र भी कहते हैं।
स्त्रीसंसर्ग त्याग, ४. प्रागतस्मरण त्याग, ५. केशव-नारायण, ये नौ होते हैं।
वृष्येष्टरस-गरिष्ठ-उत्तेजक आहार का त्याग। कैवल्य-केवलज्ञान, संसार के समस्त पदार्थों को एक साथ
चतर्दश महाविद्या-उत्पाद पूर्व आदि चौदह पूर्व। जानने वाला ज्ञान। कोष्ठबुद्धि-कोष्ठबुद्धि ऋद्धि के धारक।
चरणानुयोग-शास्त्रों का एक भेद, जिसमें गृहस्थ मुनियों के
चारित्र का वर्णन रहता है। क्ष
चारण-आकाश में चलने वाले ऋद्धिधारी मनि। क्षीरस्राविन्-क्षीरस्राविणी ऋद्धि के धारक।
चारित्र के पांच भेद- १. ज्ञानाचार, २. दर्शनाचार, ३. क्षेत्र-लोक।
चारित्राचार, ४. तप आचार, ५. वीर्यावार। यह पांच क्ष्वेल-एक ऋद्धि।
प्रकार का आचार भी कहलाता है। चारित्र के पांच
भेद इस प्रकार भी हैं १. सामायिक, २. छेदोपस्थापना, खर्वट-जो सिर्फ पर्वत से घिरा हो ऐसा ग्राम।
३. परिहारविशुद्धि, ४. सूक्ष्म साम्पराय, ५. यथाख्यात खेट-जो नदी और पर्वत से घिरा हो ऐसा ग्राम।
चारित्र भावना-ईर्यादि समितियों में यत्न करना,
मनोगुप्ति आदि गुप्तियों का पालन और परिषह गणधर-तीर्थकरों के समवसरण में रहने वाले विशिष्ट मुनि।
सहन करना ये चारित्र भावनाएं हैं। ये चार ज्ञान के धारक होते हैं। गुणवत-जो अणुव्रतों का उपकार करें। ये तीन हैं-दिग्व्रत,
छ बाह्यतप-१. अनशन, २. अवमौदर्य, ३. वृत्तिपरिसंख्यान, देशव्रत और अनर्थदण्डव्रत, कोई-कोई आचार्य
४. रस परित्याग, ५. विविक्त शय्यासन, ६. काय भोगोपभोग। परिमाण को गुणव्रत और देशव्रत को
क्लेश। शिक्षा व्रत में शामिल करते हैं।
छेदोपस्थापना-चारित्र का एक भेद। गुणस्थान-मोह और योग के निमित्त से उत्पन्न आत्मा के
छह प्रकार का अन्तरंग नय-१. प्रायश्चित्त, २. विनय, ३. भावों को गुणस्थान कहते हैं, वे १४ हैं-१. मिथ्यादृष्टि,
वैय्यावृत्य, ४. स्वाध्याय, ५. व्यत्सर्ग, ६.ध्यान। २. सासादन, ३. मिश्र, ४. अविरत सम्यग्दृष्टि, ५. देशविरत, ६. प्रमत्तसंयत, ७. अप्रमत्तसंयत, ८. अपूर्वकरण, ९. अनिवृत्तिकरण, १०. सूक्ष्मसाम्पराय, जङ्घाचारण-चारण ऋद्धि का एक भेद। ११. उपशान्त मोह, १२. क्षीणमोह, १३. सयोग जलचारण-चारण ऋद्धि का एक भेद। केवली, १४. अयोगकेवली।
जल्ल-एक ऋद्धि। गृहांग-वह बस्ती जो बाड़ से घिरी हुई हो और जिसमें अधि जिनकल्प-मुनि का एकाकी विहार करना।
क तर शूद्र और किसान लोग रहते हों। बगीचा तथा जिनगुणर्द्धि-एक नया तालाब हो।
जिनेद्रगणसंपत्ति-एक वा का नाम विधि छठेपर्व के १४३-१४४ श्लेक मेंहै। घ
जीव-चेतना लक्षण से युक्त। ०ज्ञान-दर्शन उपयोग युक्त। घातिकर्म-ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोह और अन्तराय ये चार | जीव के नामान्तर-जीव, प्राणी, जन्तु, क्षेत्रज्ञ, पुरुष, पुमान् कर्म घातिया कहलाते हैं।
अन्तरात्मा, ज्ञानी, यज्ञ, सत्त्व, प्रज्ञ। ०आत्मा, ज्ञ।
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