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रसिकः
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रागः
रसिकः (पुं०) रसिया, प्रेमी।
गुणग्राही। रसिका (स्त्री०) प्रेमवती। (जयो० ६/११)
०ईख रस, इक्षुरस। ०राव
जिह्वा, रसना, जीभा। रसित (भू०क०कृ०) [रस्+क्त] ०ललित, प्रेम युक्त।
आस्वादित, स्वाद को चखा गया।
मनोगत, इष्ट, प्रिया रसितं (नपुं०) मद्य। ०मधु, शहद।
०क्रंदन, चीत्कार। रसिता (वि०) आस्वादिता। (जयो०१० ३/२९) रसिति (अव्य०) शीघ्र, तुरन्त, जल्दी। 'वै रिषन् रसिति
वैरिसंग्रमव्यथेऽकथि' शत्रु समूह रसिति शीघ्रं रिषन्-मारयन्'
(जयो०७० ३/६) रसितुं (रस्+तुमुन्) देखने योग्य। अवलोकयितुम्। (जयो०३०
१२/१३१) रसिन् (पुं०) रसिक पति-प्रीतिकर। कठिनस्तनस्थले वनितायाः
सिक्तं रसिना दग्धुमथायात्। (जयो० १४/७३) रसेष्टित (वि०) रस से प्रिय-रसः शरीरं तस्येष्टौ रसः स्वादेऽपि
तिक्तादौ शृङ्गारादौ द्रवे विषं। पारदे धातुवीर्याम्बुरागे गन्धरसे
तनौ।। इति वि०। (जयो०वृ० १२/७) रसोत्करिणी (वि०) सौन्दर्यधारिणी। (जयो० ११/९७) रसोदकं (नपुं०) रस से परिपूर्ण जल, रस एवं जलयुक्त।
(सुद०) रसोदयः (पुं०) शृंगार का अभ्युदय। रसोद्वेलनं (नपुं०) रसकेलि। (जयो० १२/७२) रसोनः (पुं०) [रसेनैकेन ऊनः] लहसुन। रसोल्लसित (वि०) रस से प्रसन्नचित्त। (सुद० ३/४६) रसौघदात्री (वि०) रस समूह को प्रदान करने वाली। (वीरो०
४/१०) रस्य (वि०) रस वाला, स्वादिष्ट, रुचिकर। रह (सक०) ०छोड़ देना, त्यागना तिलांजलि देना। रहणं (नपुं०) [रह ल्युट्] त्यागना, छोड़कर भागना, अलग
__ हो जाना। रहस् (नपुं०) [रहल्युट्] त्यागना, छोड़कर भागना, अलग ____ हो जाना। रहस् (नपुं०) [रह ल्युट] निर्जनता, एकान्तता. अकेलापन।
(सम्य० १५३) ०भेद की बात, रहस्य। ०मैथुन, संभोग। •चुपचाप, मौन, गुप्त। ०एकान्त। (सुद० २/४७)
रहस्य। (जयो०६/३१) रहस्य (वि०) [रहसि भव: यत्] ०गुप्त, प्रच्छन्न।
भेद पूर्ण, रहस्ययुक्त। रहस्यं (नपुं०) भेद, कौतुक, उत्सुकता।
गुह्य, गोपनीय। रहस्यभावः (पुं०) कौतुक भाव। (सुद० २/२१) रहस्यवादः (पुं०) गुप्त कथन, प्रच्छन्नवाद। (जयो० २६/६०) रहस्यवृत्ति (स्त्री०) रहस्यपूर्ण वृत्ति। (जयो० २६/६०) रहस्यफुटि (स्त्री०) रहस्यपूर्ण अभिव्यक्ति। (सुद० ११६) रहःकृत (वि०) स्त्रीसम्पर्क। (जयो० १७/२) रहित (वि०) अभाव, छोड़ा गया।
०परित्यक्त, वियुक्त, मुक्त। ०हीन, वंचित। (सम्य० १३५)
अकेला, एकाकी। (जयो०वृ० १/२२) रहोनीतिः (स्त्री०) रहस्यवाद। (जयो० २६/६०) रहस्यवृत्ति। रा (सक०) देना, समपर्ण करना, प्रदान करना।
अनुदान देना। (जयो० २/११४) राका (स्त्री०) [रा+क+टाप्] पूर्णिमा। राक्षस (वि०) [रक्षस इदं अण] दैत्य, पिशाच, भूतप्रेत,
बेताल। 'राक्षसाशन-मद्य-मांसादिरूपभोजनम्' (जयो० २/१०९) ०दानव, भीषण-रूपविकरणप्रियाः राक्षसाः' ०देव जाति।
ज्योतिष विषयक योग। रागः (पुं०) आसक्ति। (जयो० १२/७९)
अनुराग, प्रीति, स्नेह, प्रेम व्यत्नेन योऽम्भोजदृशां महीयान रागो दशोः प्रीततम प्रतीयान्। (जयो० १६/४०) ०देह सेवा। 'रागः कियानस्ति स देह-सेवः' (वीरो०५/३०) ०काम-वासना, विषयासक्ति। (सम्य० १४७)
विभाग परिणति, विकार। (सम्यः ४१) ०रुचि। (सम्य० १०८)
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