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रसप्रबन्धः
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रसिक
रसप्रबन्धः (पुं०) रस से परिपूर्ण काव्य।
रसात्मक (वि०) रस से परिपूर्ण। रसप्रसन्ना (वि०) श्रृंगार से प्रसन्न। आह्लादकारिण-'रसेन | रसादित (वि०) रस क्रिया युक्त, सरसता से परिपूर्ण। (सुद० शृंगारेण प्रसन्ना' (जयो० १४/४७)
१२३) रसफलः (पुं०) नारिकेल तरु।
रसाधिका (पुं०) प्रभूतजलवती नदी। रसभङ्गः (पुं०) रसावरोध।
रसाधिकारः (पुं०) नवरस विवेचन। (जयो० १/४) (जयो० रसभवं (नपुं०) रुधिर।
२०/४७) रसमय (वि०) आनन्द के वेग से युक्त. शृंगार से परिपूर्ण। | रसाभासः (पुं०) रस की प्रतीति। (सुद० ७२) (जयो० ९/६६)
रसायनं (नपुं०) रस विज्ञान, रस पद्धति। (जयो०१० २६/५३) रसयोगः (पुं०) रसायन प्रयोग। (सुद० १३३)
श्रेष्ठस्य वस्तुनो रसायनस्य योगतः प्रसङ्गतो गरं विषम्' रसराजः (पुं०) श्रृंगार रस। (जयो० ५/७७) संसारे रसराज (जयो०१० २६/५३) 'रसायनं काव्यमिदं श्रयामः' (वीरो० एत्यतिथि सान्नित्यं प्रतिष्ठापन। (वीरो० १/३७)
१/२२) 'रसानां शृङ्गारादीनामयनं स्थानम्' (वीरो०वृ० १/२२) ०पारा।
रसायनाधीट् (पुं०) चिकित्सक, भिषग, वैद्य। रसलीन (वि०) रसासक्त। (सम्य० १५२)
रसायनाधीश्वरः (पुं०) चिकित्सक, वैद्य, वैद्यराज। (जयो० रसवती (स्त्री०) रसोई, भोजनसामग्री। 'रसवत्यपि पायसस्मिता १६/१८) 'रसायनाधीश्वर वैद्य इव भाति। तथाहि-रसस्य
वा घृतवद्-व्यञ्जनशालिनी स्वभावात्। (जयो० १२/१२३) जलस्यायनं प्रवर्तनं, पक्षे रसस्य पारदाख्य धातोरयनं रसवती (वि०) शृंगार रूप युक्ता। स्मितपयसा मधुरेण रसवतीय उपयोगकरणं तस्याधीश्वरोऽधिकारी। (वीरो०वृ०४/४)
बहुगम्या' (जयो० ३/६०) 'रसवती। शृंगाररसयुक्ता' रसालः (पुं०) आम्र, आम। (दयो०५३) 'सद्रसालसहितोऽमुना (जयो०वृ० ३/६०)
पथा राजते' (जयो०वृ० २१/३१) रसवतीकरः (पुं०) सूपकार, रसोइया। (जयो० २०८०) रसाल (वि०) शृंगार रस से अलसाए हुए। (जयो०७० २१/३१) रसवश (वि०) प्रेमयुक्त, प्रेमभाव से परिपूर्ण। (जयो० ५/१८( शृंगार रस से परिपूर्ण। (जयो० ३/३०) सुमना मनुजो यस्यां रसवशिन् (वि०) शृगांराख्य अभिलाषी। ० श्रृंगार रस का महिलासारसालया। (जयो० ३/३०) 'रसालया
इच्छुक। (जयो० ६/९९) 'रसः शृङ्गाराख्यो जलात्मकश्च' शृंगाररसपरिपूर्णा' (जयो०वृ० ३/३०) (जयो०७० ६/९९)
सरस, रस सहित। (वीरो० १/१२) 'उपद्रुतोऽपयेष तरुरसालं रसविक्रयः (पुं०) मद्यविक्रय, शराब बिक्रीकेन्द्र।
फलं श्रणत्यङ्गभृते त्रिकालम्। (वीरो० १/१२) रसशास्त्र (नपुं०) रसायनशास्त्र। ०काव्य रस ग्रन्थ।
रसालकोटकः (पुं०) आम के बौर। (दयो० ५३) रससारः (पुं०) अनुराग का सार। (जयो०१४/८९)
रसालता (वि०) आम्रफल तुल्यता। (वीरो० ३/२८) आनन्दसार। (जयो० १०/१९)
रसालदलं (वि०) आम्रपल्लव। (वीरो० ६/३०) रससिद्ध (वि०) काव्य सम्पन्न, रसवेत्ता।
रसाल-रसिक (वि०) आम्र के रस के रसिक। रसालानामम्राणं रससिद्धिः (स्त्री०) रसायन की सिद्धि, रसकला की प्रवीणता। रसिकाः। (जयो०वृ० ६/६९) अधर-स्वादिष्ट, अधर के रसस्थलं (नपुं०) जलस्थान। 'रसस्य स्थलं-जलस्थानम्' (जयो० पान का इच्छुक। (जयो० ६/६९) ११/३०)
रसाला (स्त्री०) जिह्वा, रसना, जीभ। रसस्थितिः (स्त्री०) सरसता की परिणति। (वीरो० १)
०रसपरिपूर्ण बाला। (जयो०वृ० १७/६) रसा (स्त्री०) [रस्+अच्+टाप] जिह्वा, जीभा (समु०७/४) रसभरी। इमां रसालां सरसां वाचा' (जयो०वृ० ४/६) (जयो० १/३२)
रसिक (वि०) [रसोऽस्त्यस्य ठन्] स्वादिष्ट रस से परिपूर्ण। ०रसना। (जयो० ३/२२)
आस्वादनशील। (जयो० ६/६९) निम्नतर, रसातल, निम्नस्थल, नरक।
स्वादयुक्त, गुणग्राही। नाटकीय प्रवेश।
विवेचका रसातलं (नपुं०) पाताललोक। (समु० २/४) नरक, अधोभाग। सुन्दर, ललित, प्रिय। (जयो० ३/९) (जयो० ५/९०)
आनन्द देने वाला, प्रसन्नता अनुभव करने वाला।
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