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समितिप्रसारः
११५४
समुच्चय
संग्राम, युद्ध, लड़ाई।
समीचन (वि.) [सम्+अञ्च+क्विन्+ख] सही अच्छा। ०सादृश।
०सत्य, श्रेष्ठ। ०समानता, समभाव।
०योग्य, समुचित। सम्यक् अयन, सम्यक् प्रवृत्ति।
सुसंगत। प्रशस्त चेष्टा।
०औचित्य। आगम के अनुसार गमन। (त०सू० पृ० १४१) अच्छी समीचीनवाक्यसमूहः (पुं०) सम्पदास्पद, समुचित वाक्य समूह।
चाल चलन करना, जिससे किसी जीव को पीड़ा न हो। (जयो०१० २/४२) समितिप्रसारः (पुं०) पञ्च समितियों की छाया। (सुद० १३२) समीन (वि०) वर्ष सम्बन्धी। 'श्रीमान् स जीयात्समितिप्रसारः'
समीनिका (स्त्री०) [समां प्राप्य प्रसूते समा+ख कन्+टाप्] समितिभावः (पुं०) समानता का भाव, सम्यक् प्रवृत्ति का भाव। प्रतिवर्ष व्याहे वाली गाय। समीक्ष (वि०) प्रेक्षण, प्रतीक्षा करते हुए। (जयो० १२/२४) । समीप (वि.) [संगता आपो यत्र] निकट, नजदीक, पास, समिद्ध (भू०क०क०) [सम्+रन्ध्+क्त] जलाया हुआ, सुलगाया सटा हुआ। (जयो० १/४) (सुद० २/३३) हुआ।
समीपक (वि०) सन्निटकता (जयो० ९/२४) प्रज्वलित, उत्तेजित। (भक्ति०१)
समीपम् (नपुं०) सामीप्य, पड़ौस। (वीरो० ) निकटता, उपकण्ठ समिध् (स्त्री०) [सम्+इन्ध्+क्विप्] ईंधन, लकड़ी, समिधा। (जयो० वृ० १३/७)।
'समिधो यज्ञार्थं चन्दनादीनां काष्ठखण्डाः ' (जयो०७० समीरः (पुं०) [सम्+ई+अच] पवन, हवा। (सुद० १२०) १०/१०९)
(जयो० ९/४५) समिधः (पुं०) [सम्+इन्ध्+क] अग्नि, आग।
समीरणः (पुं०) पवन, हवा, वायु। (समु०६/३३) (दयो०३८) समिन्धनम् (नपुं०) [सम्+इन्ध्+ल्युट्] ईंधन, आग सुलगाना।
समीरित (वि०) प्रार्थित। (जयो०१२/५१) प्रेरित, आन्दोलित। समियत्-समागच्छत् (जयो० १०/६४)
समीरोत्थरजः (पुं०) समीरेणोत्तिष्ठति रजः। (जयो० १३/८९) समिरः (पुं०) पवन, वायु, हवा।
____०पवन से उठी धूली। समिष्टिवाक्यं (नपुं०) पूजा वाक्य, पजा पद्धति। (जयो०२/२९)
समीह (सक०) आकांक्षा, वाञ्छा करना, इच्छा करना। (वीरो० समी (वि०) समताभावी। (जयो० २४/८०)
९/६२) समीहमानः स्वयमेष। समीकम् (नपुं०) [सम्+ईकक्] संग्राम, युद्ध, लड़ाई।
समीहा (स्त्री०) [सम्+ईह+अ+टाप्] प्रबल इच्छा, वाञ्छा, समीकरणम् (नपुं०) [उत्तमः समः क्रियतेऽ नेन-सम+च्चि+
__ आकांक्षा, चाह। कृ+ल्युट्] पूरा अन्वेषण, समस्त खोजबीन।
समीहित (भू०क०कृ०) [सम्+ईह+क्त] इच्छित, अभिलषित, समीक्ष (सक०) अन्वेषण करना। (जयो० ११/८४)
अभीष्ट। समीक्षणीय (वि०) दर्शनीय, देखने योग्य। (जयो० १२/१४२)
समीहितम् (नपुं०) कामना, वाञ्छा, इच्छा, अभिलाषा। चाह। समीक्षा (स्त्री०) [सम् ईक्ष+अ+टाप्] उपदेश (सुद०७४)
समीह्य (वि०) अभिलाषा युक्त। (जयो० २१/१८) अनुसंधान, अन्वेषण, खोज।
समुक्तवान् (वि०) कहने वाला। (सुद० ११३) विचार, निरीक्षण, समालोचन।
समुक्षणम् (नपुं०) [सम्+उ+ल्युट्] ढालना, बहाव, प्रसार। ०मीमांसा पद्धति, विचार विश्लेषण।
समुच्च (वि०) समान उन्नत। (जयो०वृ० १/५) समीक्षकाम् (नपुं०) देखना, निरीक्षण करना। (सुद० १/१३)
समुच्चयालङ्कारः (पुं०) समुच्चय नामक अलंकार। (जयो०व० समीक्षित (भू०क०कृ०) [सम्+ईक्ष+ क्त] प्रत्यवेक्षित,
७/१००) समालोचित। (जयो०वृ० ५/४९)
समुचित (वि०) ०संकोचशील विनम्रशील। (जयो० समीचः (पुं०) [सम्+इ+चट] समुद्र। सागर, उदधि।
१/१००, २/८०) समीचकः (पुं०) [समीच कन्] रतिक्रिया, मैथुन। समीची (स्त्री०) [समीच्+ङीप्] हरिणी।
समुचितसमाधान (नपुं०) उद्धार करने वाला। (जयो० ३/६६)
समच्चय (वि०) [सम+उत+चि+अच] समदाय। (सुद० ४/९) प्रशंसा।
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