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समुच्चलच्चरणम्
११५५
समुत्पन्न
संग्रह, समूह, संघात, राशि, पुंज। (जयो० १३/७९) समुत्कर (वि०) उच्छिष्टांश। (जयो० ११/४३) ०अवशेष। ०शब्द संयोग।
समुत्कर्षः (पुं०) [सम्+उत्+कृष्+घञ्] ०समुन्नत प्रगति। ०अलंकार विशेष।
समुत्क्रमः (पुं०) [सम्+उत्+क्रम्+घञ्] समुच्चलच्चरणम् (नपुं०) समुच्चलन्ति चरणानि चलायमान ऊपर उठना, चढ़ाई करना। चरण। (जयो० १३/२६)
०सीमातिक्रमण। समुच्चरः (पुं०) [सम्+उत्+च+अच्] ०चढ़ना, आरुढ़ होना। | समुत्क्रोशः (पुं०) [सम्+उद्+क्रुश्+घञ्] चिल्लाना, गर्जरा, गमन करना, प्रयाण करना, प्रस्थान करना।
तीव्र आक्रोश करना। समुच्चल् (सक०) चलना, गमन करना। करद्वयी | समुत्थ (वि०) [सम्+उद्+स्था+क] उठता हुआ, जागृत होता
कुडमलकोमला सा समुच्चलापि तदैव तासाम। (वीरो० हुआ। ५/२५)
०जगा हुआ, प्रबोध गत। समुच्छ्व सन् (वि०) उच्छवास। (जयो० १३/४६)
उड़ती हुई। (जयो० ५/८) समुच्छल (वि०) उछलती हुई। (सुद० १/१७)
उत्पन्न, जन्मा। समुच्छेदः (पुं०) [सम्+उद्+छिद्+घञ्] समूलोन्मूलन, उखाड़ना, समुत्थरज (वि०) उड़ती हुई धूली। (जयो० ५/८) हटाना।
समुत्थात (वि०) उपस्थित हुआ। (सुद० ९६) समुच्छलतरंगः (वि०) उद्भूत तरंग। (जयो०१० ५/३४) समुत्थानम् (नपुं०) [सम्+उद्+स्था ल्युट्] ०उठना, जागना। समुच्छ्रयः (पुं०) [सम्+उद्+श्रि+] विरोध, शत्रुभाव।
जीवन प्राप्त करना, दूर हटना। (दयो० ६५) ____ उत्तुंगत, ऊंचाई।
परिश्रमशील होना, उद्यम करना। समुच्छ्रायः (पुं०) [सम्+ उद्+श्रि+घञ्] उत्तुंग, ऊंचाई। समुत्थित (भू०क०कृ०) [सम्+उद्+स्था+क्त] उर्ध्वगत (जयो० समुच्छ्वासितम् (नपुं०) [सम्+उत्+श्वस्+क्त] गहरी सांस १३/६६) उपस्थित हुआ, मच गया, व्याप्त हुआ। लेना, दीर्घ सांस लेना।
(जयो०वृ० १/५) अनुभूतमतः समुत्थित। समुज्जगर्ज (वि०) गर्जनायुक्त। (सुद० २/३६)
उत्थापितं (जयो०८/४) पुरि कोलाहल मा निवेदितम्। समुज्जवल (अक०) चमकना। (जयो० ११/६८)
(समु० २/२४) समुज्ज्वल (वि.) [सम् उत्+ज्वल] निर्दोष, निर्मल। (जयो० समुत्थापित (वि०) अभ्युदय, उत्पन्न हुआ। (जयो०वृ०
२।८१) शुक्लवर्ण। (जयो० ३/११२) 'सम्यक् १२/१२२) प्रकाशयुक्तम्' (जयो० वृ० ११/२)
सुमुत्तर (वि०) निकला हुआ, तीर्ण हुआ। (जयो०वृ० १२/१२२) समुज्ज्वलज्वालः (पुं०) बड़ी-बड़ी ज्वालाएं, उन्नत ज्वाला। ०संशोधन किया। (जयो० १३/१६) (सुद० २/१७)
सुदा सहितं समुदधिक: समुत् समुत्तर वर्तते। अधिक गुण समुज्ज्वलरूपः (पुं०) विशदस्वभाव। (जयो०वृ० १७/४९) वाली। (जयो० ५/८९) समुज्ज्वलाकारः (पुं०) निर्मलाकृति। (जयो० ५/९६) समुत्तरन्-संशोधयन (जयो० १३/१६) समुज्ज्वलाम्बरः (पुं०) परिरब्ध पूतवेष, मञ्जुलवेष, सुंदर परिधान। समुत्तरंती-पार करती हुई, निकलती हुई। (जयो०वृ० १४/८८) (जयो० १२/१२१)
समुत्तर्तुम् ( ) पार करने के लिए, पार पहुंचने के लिए। यैः समुज्झ (सक०) छोड़ना, त्यागना। 'मदं समुच्झंति हिमोदयेन शास्त्राम्बुनिधेः पारं समुत्तर्तुं महात्मभिः। (दयो० १/५) ___ तम्' (वीरो० ९/२७)
समुत्तानित (वि०) समुपलब्ध, व्याप्त हुए। (जयो० १७/५५) समुज्झित (वि०) [सम्+उज्झ्+क्त] ०त्यागा हुआ, छोड़ा समुत्पतनम् (नपुं०) [सम्+उदृ+पत्+ल्युट्] ०उठना, ऊपर हुआ। (जयो० ११/७५)
चढ़ना। विसर्जित, मुक्त, परित्यक्त। (जयो० १५/१२)
प्रयत्न, चेष्टा। समुत् (वि०) सहर्ष। (जयो० १/१११)
समुत्पत्तिः (स्त्री०) [सम्+उद्+पद्+क्तिन्] जन्म, उत्पत्ति। समुत्कण्ठित (वि०) उत्कण्ठा युक्त। (जयो० १/११) समुत्पन्न (वि०) उत्पन्न हुई। (जयो० ५/७७)
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