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समारोहः
११५२
समास्वादनम्
रक्खा गया, प्रतिष्ठित, किया हआ। (जयो० ३/९७)
निश्चित, स्थिर किया हुआ, बिठाया हुआ। रौंदा गया।
छीना हुआ, पराभूत। समारोहः (पुं०) [सम्+आ+रुह्+घञ्] अभिनायक। (जयो०वृ० | समावृत्त (भू०क०कृ०) [सम्+आ+वृ+क्त] आच्छादित, ४/१३)
आवृता ०अभिनय, सभासङ्घटन।
पर्दे से युक्त, ढका हुआ। उत्सव (जयो० ५/२६) 'अस्मिन्नभिनये समारोहे सच्चित्तेन समावृत्तं च गुरुणाऽचित्तेन वा संवृतम्।' सभासङ्घटने (जयो०वृ०६/२०)
(मुनि०११) ०बढ़ना, आरुढ़ होना।
गुप्त, छिपाया हुआ। संचरण करना। (जयो०वृ० २/१३२)
समाव्रज् (सक०) आना, पहुंचना। (जयो० १३/१४) सवारी करना, समहत होना।
समावेशः (पुं०) [सम्+आ+विश्+घञ्] ०साहचर्य, मिलना, समार्द्र (वि०) स्नेह युक्त। (जयो० २४/९९)
प्रविष्ट होना। समार्दता (स्त्री०) स्निग्धता। (जयो० ९/४०)
०सम्मिलित करना। समालम्बनम् (नपुं०) [सम्+आ+लम्ब+ल्युट] आश्रय लेना
समावृत (वि०) लुप्त हो गई। (सुद० १०१) घिरा हुआ। सहारा लेना।
(सुद० ११०) समालम्बिन् (अव्य०) [सम्+आ+लभ+घञ्] ००पकड़ना,
समाश्रमः (पुं०) समताश्रम, त्यागमार्ग। (जयो० २७/५४) छीनना, ग्रहण करना।
समाश्रयः (पुं०) [सम्+आ+श्रि+अच्] ०शरण, आश्रय, आधार। समालिङ्गित (भू०क०कृ०) [सम्+आ+लिङ्ग+क्त] आलिंगन
घर, आवास, निवास स्थान। की गई। (दयो० १७/७३)
समाश्लिष्ट (वि०) स्पष्ट। (जयो० ३/८२) समालिङ्गनम् (नपुं०) [सम्+आ+लिङ्ग+ल्युट्] आलिंगन,
समाश्लेषः (वि.) [सम्+आ+श्लिष्+घञ्] प्रगाढ़ आलिंगन। परिरम्भ। (जयो०वृ० १०/६४)
समाश्वनम् (नपुं०) आश्वासन, धैर्य देना। समालोक्य (सं०कृ०) देखकर। (सुद० ९९)
समाश्वासः (पुं०) [सम्+आ+श्वस्+घञ्] सुख चैन, राहत, समालोकि (वि०) समदर्शी। (जयो० १०)
तसल्ली। समालोकत्व (वि०) अच्छी तरह देखने वाला। सम्यक् प्रकारेण दर्शकत्वं दधति अनुरागपूर्वकं पश्यति। (दयो० २२। )
समासीन (वि०) उपविष्ट, बैठा हुआ, (जयो० २/१४३) समालोच्य विचार करके। (जयो० ३)
समासोक्तिलंकारः (पुं०) अलंकार विशेष (जयो० ७/९०) समावर्तनम् (नपुं०) [सम्+आ+वृत्+ ल्युट्] वापसी, लौटना,
(जयो०२४/७९, ८/२४, ८/४७, ५१, ५०.८/५४, ५३) प्रत्यावर्तन करना।
(वीरो०६/१२) समवर्तित (वि०) रहता हुआ। (दयो० १०)
उच्यते वक्तुमिष्टस्य प्रतीतिजनने क्षमम्। समावायः (पुं०) [सम्+आ+अव+इ+अच्] ०साहर्च, सम्बन्ध।
सधर्म यत्र वस्त्वन्यत् समासोक्तिरियं यथा।। (वाग०४/९४) समष्टि।
विवक्षित अर्थ में प्रीति उत्पन्न करने के लिए जिस एक दूसरे से सम्बन्ध।
अलंकार में उसके योग्य समान धर्म वाले किसी अन्य समवायरीतिः (स्त्री०) परस्परिक सम्बन्ध की पद्धति।
अर्थ की उक्ति की जाती है उसे समासोक्ति अलंकार (वीरो० १७/५) समावासः (पुं०) [सम्+आ+वस्+घञ्] निवास स्थान, आवास वीर श्रियं तावदितो वरीतुं भर्तुळपायादथवा तरीतुम्। भवन।
भटाग्रणी: प्रागपि चन्द्रहास यष्टिं गलालङ्कृतिमाप्तवान् समाविष्ट (भू०क०कृ०) [सम्+आ+विश्+क्त] व्याप्त, पूर्ण, सः।। (जयो० ८/२४) भरा हुआ।
समास्वादनम् (नपुं०) अच्छा स्वाद होना, चूसना। (जयो०वृ० प्रविष्ट, समाहित।
१२/१२७) परिचुम्बन (जयो० १२/७८)
कहते हैं।
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