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समाज:
११५०
समापनम्
समाजः (पुं०) [सम्+अ+घञ्] ०सभा, सम्मेलन।
मण्डल, गोष्ठी। (सम्य० १५६) ०समूह (जयो० १/५३)
समिति, परिषद् ०संग्रह, समुच्चय।
०दल, संगठन। समाजमान्य (वि०) समुदाय द्वारा मान्य। (वीरो० १/२१) समाजराजिब्याज (वि०) भ्रमर समूह के बहाने। (वीरो०२१/१६) समाजादुत्थित (वि०) समाज का अनुशासन। (हित० ५) समाजिकः (पुं०) सभा सद। समाजीजनः (पुं०) सामाजिक व्यक्ति। (जयो०१० ११/१९) समाज्ञा (स्त्री०) [सम्+आ+दा+ल्युट्] ०आसक्ति (सुद० १०२)
उपहार लेना, समीचीन ग्रहण।
विरति के प्रति अभिमुखता। 'समादानं समीचीनग्रहणे नित्यकर्मणि इति विश्वलोचने' (जयो०७० २१/५९)
नित्यकर्म, देवपूजनादिकर्म। 'समादानं नित्यकर्म देवपूजादि' समादरः (पुं०) उदार आशय, मनोऽभिलषित भाव। (जयो०३/९४) समादरणम् (नपुं०) आदर, सम्मान। (जयो० ४/२१) समादिश (अक०) आज्ञा देना। (समु० २/२१) (जयो०२७/५९) समादेशः (पुं०) [सम्+आ+दिश्+घञ्] ०आज्ञा, निर्देश। समाहत (वि०) बुलवाया हुआ। (समु० ४/१२) सम्मानित।
(जयो० १/२३) समाधा (स्त्री०) [सम्+आ+धा+अ+टाप्] समाधान। समाधानम् (नपुं०) [सम्+आ+धा+ल्युट्] निवारण, समस्या निदान। (वीरो० ११/१६)
गहनचिन्तन। ०प्रतिज्ञा करना। समाधारः (पुं०) उचित आश्रय। (जयो० ३/७५) समाधिः (स्त्री०) आत्म तल्लीनता, साम्यभाव। (जयो० ७/५२)
तपस्या, साधना, चित्त की एकाग्रता। 'मुनिगणतपः संधारणं समाधि' (त०वा० ६/२४) ०दर्शन, ज्ञान और चारित्र में स्थित होना। ०आत्म तल्लीनता। (भक्ति० २६)
समाधान, विशेष मनन-चिंतन (सम्य० १४०) 'निमज्य, निर्गुन्तुमशक्त इत्यतः समाधिमेव प्रवबन्ध संरसात्। (समु०४/३४)
मनोयोग, केन्द्रीकरण, (सुद० ४/२५) प्रतिक्षा, स्वीकार, अंगीकार।
समाधिगत (वि०) साधना रत। समाधिमरणं (नपुं०) एकग्रचित्त होकर मरण प्राप्त करना। समाधिवश (वि०) समाधि के कारण। (समु० ५/१४) समाधि-सिन्धु (पुं०) समाधि के समुद्र। (सुद० १/३) समाध्यात (भू०क०कृ०) [सम्+आ+धरा+क्त] ०फूंक मारा हुआ।
फुलाया हुआ। ०प्रफुल्लित, स्फीत, हवा युक्त। समाध (सक०) [सम्+धृ] धारण करना। समादधाना विबभौ
गृहाश्रमे। (वीरो० ५/४०) समान (वि.) [सम्+अन्+अण] सदृश, तुल्य, एक सा, एक
रूप, सवर्ण।
सामान्य, साधारण। समानः (अव्य०) समान रूप से, सदृश। समानमेवेति मतिप्रपंचः
(सम्य० ८५) समानकालः (पुं०) सदृश समय। •तुल्य काल। समानकालीन (वि०) सदृश, रूप, समकालीन, एक कालिक। समानगोत्रः (पुं०) एक ही गोत्र का। समानजातीय (वि.) एक अवस्था वाली। समानता (स्त्री०) सदृशता, ०एक रूपतप्ररसज्जलसन्ततिः
सतां हृदये चद्रिकया समानताम्। (वीरो० ७/३४) समानदयिः (स्त्री०) समान धर्मों के लिए। समानबुद्धि (स्त्री०) सदृशबुद्धि (सुद० ११७) समानभावः (पुं०) सदृशभाव, तुल्यभाव, समादर भाव।
(जयो० ४/६६) (वीरो० १८/६) समानयनम् (नपुं०) [सम्+आ+नी+ल्युट्] संचालन, संग्रह
करना, साथ लाना। समानवंशः (पुं०) तुल्यकुल। (जयो० २३/२५) समापः (पुं०) [समा आपो यस्मिन् ] आहूति देना। समापतत् (सम्+आ+पत्) गिरना। समापत्तिः (स्त्री०) [सम्+आ+पद+क्तिन्] ०मिलना, प्राप्त
होना।
दुर्घटना, घटना।
० मुठभेड़। समापद् (अक०) प्राप्त होना। (सुद० १२७) समापनम् (नपुं०) [सम्+आप+ल्युट्] ०उपसंहार, समाप्ति,
पूर्ति। ०अभिग्रहण।
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