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सभा
११४४
समक्षता
शोभावती (जयो० १०/११४) परिषद्, समिति, संगठन। सभ्य (वि.) [सभायां साधु:-यत्] सुसंकृत, संस्कारयुक्त, पक्षति (जयो०१० ३/७)
परिष्कृत। गोष्ठी (जयो०वृ० १/१२) सदस। (जयो०वृ० १/४३)
सुशील, विनम्र, शिष्ट। सभाज् (सक०) प्रणाम करना, नमस्कार करना।
विश्वस्त, विश्वसनीय। ०अर्पित करना, बधाई देना।
सभ्मनिकायः (पुं०) सुसंस्कृत समूह। (जयो० १४/४५) ०पूजा करना, आदर देना।
सभ्यता (स्त्री०) [सभ्य:+तल्+टाप्] विनम्रता, सुसंस्कारित, ०अलंकृत करना, सुशोभित करना।
सुशीलता, कुलीनता। (सम्य०७०) कष्ट सहन सभ्यतयैति सभाजनं (नपुं०) [सभा+ल्युट]०प्रणाम करना, अभिवादन वासः। (दयो० ६१) करना।
सम् (अक०) विक्षुब्ध होना, अव्यवस्थित होना। ०स्वागत करना, बधाई देना।
___खिन्न होना, उदासीन होना। सभामण्डपम् (नपुं०) सभास्थल, सभावनि। (जयो० ५/९०) सम् (अव्य०) [सो+उमु] धातु या कृदन्त शब्दों से पूर्व लगने सभामध्य (वि०) सभा के बीच के। (समु० ३/३९)
वाला प्रत्यय। सभावनः (पुं०) [सह भावनेन] शिव, शंकर।
०बहुत, अधिक, अत्यंत। (सम्य० ५३) सभाव (वि०) भाव सहित। (जयो०व०५/९०)
उत्कृष्ट, उत्तम। (जयो० १/१३) सभावनि (स्त्री०) सभा मण्डप। (जयो० ५/९०)
निकट, समीप। परम। (सुद० २/४२) सभासमारोहः (पुं०) परिषद का आयोजन। (जयो०५/२६) पूर्व जैसा। समयुक्त। (सम्य०८८) समङ्कित (वि०) व्याप्त। (वीरो० २/२९)
समः (पुं०) समभाव। 'सन्तः सदा सभा भान्ति मर्जूमतिनुतिप्रिया। समङ्गनावर्गः (पुं०) समीचीन अंगना समूह। (जयो० १/६९) (वीरो० २२/४०) समञ्च् (सक०) प्रदान करना, फैलाना। तयोरुदङ सुरभि समञ्चत् । सम (वि०) [सम्+अच्] समभाव, समान। समं समन्ता दुपयोगि। (सुद० २/२८)
(सम्य० ४, वीरो० १७/८) एक जैसा। समञ्चनक्षत्रपतिः (पुं०) समीचीन गति से युक्त नक्षत्र स्वामी। निष्पक्ष, तर्कसंगत, न्याय संगत
सम्यगञ्चनमाचरणं यस्य तस्य क्षत्रपतेः क्षत्रियशिरोभागे: मित्र-बांधवभाव। (जयो० ३/९६) सम संख्या विशेष। (जयो०वृ० १९/६) सम्यगञ्चनं येषां तानि समञ्चनानि, (जयो०वृ० १/१९) तानि च तानि नक्षत्राणि तेषां पतिः स्वामी तस्य' (जयो०व० ०सब, प्रत्येक, सारा, सम्पूर्ण। स्वयं। (सुद० ९६) १९/६)
समः (पुं०) समभाव प्रथम भाव। (जयो० २८/३३) सभानिवेद्वणः (पुं०) सभापति। (जयो०० ६/२३)
समं (अव्य०) के साथ, मिलकर। समं समालोच्य (जयो०७० सभानिवासिन् (वि०) सभा में रहने वाला। (जयो० ३/१३) ३/६६) सादृश्यता। (जयो० ३/४३) सभापति (पुं०) अध्यक्षा
समकन्या (स्त्री०) उपयुक्त कन्या, विवाह योग्य कन्या। सभाशा (स्त्री०) आशा, अभिलाषा। (सुद० ११५)
समकर्णः (पुं०) चतुष्कोण। सभासदः (पुं०) सदस्य। (जयो०वृ० ४/५०)
समकारि (वि०) यथावत् स्थिर रहने वाला। (वीरो० २२/८) सभाह (भूतकालिक प्रयोग) उत्तर दिशा। (सुद० ३/३२) समकालः (पुं०) सही समय, वही काल। सभासारः (पुं०) सभासा रजन्या निशाया सारः। (जयो० समकालं (अव्य०) उसी समय, युगपत्। १७/४)
समकालीन (वि०) समसामायिक। सभिकः (पुं०) [सभा द्यूतं प्रयोजनमस्य] जुआ खेलने वाला। समकोलः (पुं०) सर्प, अहि। सभामण्डपः (पुं०) स्वयम्बर मण्डप। (जयो० ३/७१) समक्ष (वि०) [अक्ष्णो समीपम-समक्ष अच] दर्शनीय। सभिद (वि०) भेद सहित। (जयो० २३/ )
प्रत्यक्षा (वीरो० ७१/३९) सभीति (वि०) भयपूर्ण। (जयो०१/३५) भान्वित। (जयो० । समक्षः (पुं०) वर्तमान। सर्वसाधारणांतर गोचरः यद्वा सम्यक्। २७/६१)
समक्षता (वि०) साक्षात्कारी। (जयो० २०/८०)
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