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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सप्तनवतिः ११४३ सभा सप्तनवतिः (स्त्री०) सत्तानवे। सप्तनाडीचक्रं (नपुं०) ज्योतिष सम्बंधी रेखा। सप्तपर्णः (पुं०) सप्तच्छदवृक्ष। (वीरो० ४/१८) सप्तपलाशकीयः (पुं०) सप्तपर्ण। (वीरो० २१/१८) सप्तपदी (स्त्री०) सात पग चलना, वैवाहिक क्रिया का एक रूप जिसमें दूल्हा एवं दुल्हन को सात वचन साक्षी पूर्वक ग्रहण करने को कहे जाते हैं। सप्तपरिक्रमा (स्त्री०) सात प्रदक्षिणा, सात फेरे। (जयो०१२/७३) सप्तप्रवृत्तिः (स्त्री०) सात अंग। सप्तप्रकारः (पुं०) सात भेद, सप्त भंग। (वीरो० १९/७) सप्तप्रकारत्व (वि०) सात भंग वाले। सप्तप्रकारत्वमुशन्ति भोक्तुः फलानि च त्रीण्यधुनोपयोक्तुम्। (वीरो० १९/७) सप्तभङ्गात्मक (वि०) सप्त भंग रूप। (भक्ति० ९) सप्तभद्रः (पुं०) सिरस तरु। सप्तभूमिक (वि०) सात खण्ड वाला। सप्तभौम (वि०) सात खण्ड वाला। सप्तम (वि.) [सप्तानां पूरण: सप्तन्+डट्] सांतवां। (सम्य० १२८) सप्तमक (वि०) सांतवा। (सम्य० १४०) सप्तमलम्बका (नपुं०) सांतवां लम्ब। ०चम्पूकाव्य में प्रयुक्त सांतवां अध्याय। सप्तरात्र (नपुं०) सात रात का समय। सप्तर्षि (पुं०) एक ऋषि विशेष। सप्तला (स्त्री०) चमेली। सप्तविंशतिः (स्त्री०) सत्ताईस। सप्तविध (वि०) सात गुना, सात प्रकार का। सप्तशतं (नपुं०) सात सौ। सप्तसप्तिः (पुं०) सूर्य। सप्तस्वरं (नपुं०) सात स्वर-निषाद, ऋषभ, षड्ज, गान्धार, मध्यम, पञ्चम और धैवत। (जयो०वृ० ११/४७) सप्ताङ्ग (वि०) सप्त प्रकृति। सप्तार्चिस् (वि०) सात जिह्वा वाला। अशुभ दृष्टि वाला। सप्तार्चिस् (पुं०) अग्नि, आग। शनि। (जयो०७/२४) सप्ताशीतिः (स्त्री०) सतासी। सप्ताश्रमः (पुं०) सतकोन, सात कोने। सप्ताश्वः (पुं०) सूर्य, दिनकर। (जयो०वृ० १५/१६) सप्ताश्वकः देखो ऊपर। सप्ताहः (पुं०) एक सप्ताह। सप्तिः (पुं०) अश्व, घोड़ा। (जयो० ३/११०) सप्तिसमूहः (पुं०) अश्व समूह। (जयो० २/११०) सप्रणय (वि.) [सह प्रणयेन] स्नेहपूर्ण, मित्रतापूर्ण। सप्रतिपत्तिक (वि०) विश्वास उत्पन्न करने वाला-प्रतिपत्या सहित, विश्वासुत्पाद्य। सप्रत्यय (वि०) [प्रत्ययेन सह] विश्वस्त, विश्वास योग्य। निश्चित। सप्रीति (वि.) प्रीति युक्त। (सुद० ८२) सफरः (पुं०) चमकीली मछली। सफल। (जयो० ४/१५) सफरसमूहः (पुं०) मछली समूह। (दयो० ९) सफल (वि.) [सह फलेन] सम्पन्न, पूर्ण, पूरा किया हुआ। (जयो० ४/१५) फलवान् (जयो० १६/१५) ०फलों से परिपूर्ण। उपजाऊ। सफलता/सफलत्व (वि०) सम्पन्नता, पूर्णता। (सुद० ७२, समु० १/२) सफलीकृत (वि०) सफलता युक्त। (जयो० २६/८१) सफल प्रयत्नः (पुं०) कृतार्थ। (जयो०वृ० १२/४७) सबन्धु (वि०) [सह बन्धुना] मित्रयुक्त, मित्रता से परिपूर्ण। ०परिजन सहित। सबन्धुः (पुं०) बन्धुवर्ग, परिजन। माता-पितादि सहित। सबन्धुवर्गः (पुं०) माता-पितादि सहित। स्थातुं समिच्छामि __सबन्धुवर्ग: पुरेऽत्रतत्सम्भविनो भवन्तु। (समु० ३/२५) सबला (स्त्री०) लक्ष्मी। (जयो०१५/५४) ०धनश्री। सबलिः (पुं०) [सह बलिना] सन्ध्याकालीन समय, गोधूलिबेला। सबहुमान (वि०) सम्मान रहित। (दयो० १०८) सबाध (वि०) [सह+बाधया] आघातपूर्ण, ०पीड़ाजनक, कष्टदायक, बाधायुक्त। सब्रह्मचर्यम् (नपुं०) [समानं ब्रह्म आत्मज्ञानग्रहणकारिन् व्रतं चरति-चर+णिनि] सहपाठी, साथ में अध्यन करने वाला। सभ (वि०) कान्ति युक्त, प्रकाश सहित, नक्षत्र सहित। (जयो० ३/४५) सभय (वि०) भय सहित। (सुद० ११२) सभया (स्त्री०) त्रपा, लज्जा। सभायां लज्जा न कार्या विद्वद्धिरिति (जयो०१७/३३) सभा (स्त्री०) [सह भान्ति अभीष्ट निश्चयार्थमेकत्र यत्र गृहे] For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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