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सन्यास-आश्रमः
११४२
सप्तधातु
वैराग्यभाव, विरक्ति परिणाम। ०धरोहर, निक्षेप।
योगी। (जयो० २/११७) सन्यास-आश्रमः (पुं०) योगी आश्रम। (जयो० २/११७)
(जयो०वृ० १८/४८) सन्यासाश्रमः (पुं०) योगी आश्रम, तपस्वी स्थल। सन्यासिन् (पुं०) त्यागी, विरक्ति। (जयो० २६/१०३)
विरागी (दयो० २५) सन्यासोपनिषद् (वि०) सन्यास सम्बंधी उपनिषद। (दयो० २५) सन्योगुणः (पु०) सज्जन गुण। (समु०१/२४) सन्विहर (वि०) साथ में विहार करने वाला। (समु० ३/८) सप् (अक०) सम्मान करना, पूजा करना। सपक्ष (वि०) पक्षेण सह-पंखों वाला।
०पक्षवाला, दलवाला।
०बन्धु, सदृश, समान। सपक्षः (पुं०) समर्थक, अनुगामी, पक्षपाती।
सजातीय, सम्बंधी। सपक्षता (वि०) पक्षपना-रुचि। (जयो० २८/३२) सपक्षयुक्तता (वि०) पक्षसहितपन। (जयो० २८/३२) सपत्नः (पुं०) [सह एकार्थे पतति पत् न सहस्य सः] शत्रु, |
विरोधी। सपत्नी (स्त्री०) [समानः पतिः यस्याः]
०अपनी भार्या, निजाङ्गना। (जयो०८/६४) प्रतीयत्नी-सौत। (जयो० १४/३०)
सहपत्नी, सौत। सपत्नीक (वि०) [सपत्नी+कप्] पत्नी सहित। सपत्नीगणः (पुं०) स्त्रीसमूह। (जयो०१० २३/२७) सपत्राकरणं (नपुं०) [सह पत्रेण सपत्र+डाच्+कृ+ल्युट्]
अत्यंत पीड़ाजनक। कष्टदायी। सपत्राकृतिः (स्त्री०) [सपत्र+डाच्+कृ+क्तिन्] वेदना, पीड़ा,
सन्ताप, दु:ख। सपदि (अव्य०) [सह+पद्+इन् सहस्य सः] इस समय, अब
(सुद०८१) (जयो० १/९५) ०अधुना। (जयो० ५/४) (जयो० ३/५)
शीघ्र, तुरंत। (सुद० ४/३०)
०तत्काल, तत्क्षण। सपर्ण (वि०) पर्ण सहित-पत्र सदश। (जयो०८/४१) सपर्या (स्त्री०) [सपर+यक+अ+टाप] पर्युपासना (जयो०
२२/३६)
अर्चना, पूजा, प्रार्थना। (वीरो० ५/६)
०सम्मान, आदर। सपर्यापर (वि०) पूजा में तत्पर। (वीरो० ५/६) सपाद (वि०) [सहपादन] पैरों वाला। एक चौथाई बड़ा हुआ। सपिक्ष (वि०) पिक्ष सहित-पार्श्व पिच्छया मयूर पक्ष निर्मिता
(जयो० २१/२८) सपिण्डः (पुं०) [समानः पिंडा मूलपुरुषो निवापो वा यस्य]
पिण्डदान देने वाला। सपिण्डिकरणं (नपुं०) पिण्डदान करना। सपीतिः (स्त्री०) [सह एकत्र पीति:-पानं+पा+क्तिन] सहपान,
मिलकर पान करना। सपूत (वि०) पुत्र युक्त। (समु० ९/२) सप्रकाशकर (वि०) स्व प्रकाशक। (हित० ४३) सप्त (नपुं०) सात। (जयो० १/१९) सप्तक (वि०) [सप्तानां समूह:] सातवां, सात की संख्या वाला। सप्तकी (स्त्री०) [सप्तभिः स्वरैः इव कायति शब्दायते
सप्तन्+कै+क+ङीष] 'करधनी 'ति प्रसिद्धा मेखला। (जयो०
१५/४६) करधनी, कंदौरा, तगड़ी। सप्ततिः (स्त्री०) [सप्तगुणिता दशतिः) सत्तर। सप्तधा (अव्य०) [सप्तन्+धाच्] सात प्रकार से, सात गुणा। सप्तन् (सं०वि०) [सदैव बहुवचनान्त] सात, सात संख्या।
(सुद० १०८) सप्तचत्वारिंशत् (स्त्री०) सैंतालीस। सप्तच्छ्रदः (पुं०) सप्तपर्ण। (वीरो० १३/११) सप्तच्छदगन्धवाहः (पुं०) सप्तपर्ण वृक्षों की सुगन्ध-ते शारदा
गन्धवहाः सुवाहा वहन्ति सप्तच्छदगन्धवाहाः। (वीरो०
२१/२४) सप्तजिह्वः (पुं०) आग, अग्नि। सप्तज्वालः (पुं०) आग, अग्नि। सप्ततत्त्व (नपुं०) सात तत्त्व। जीवाजीवादि ज्ञान। सप्तत्रिंशत् (स्त्री०) सैंतीस। सप्तदशन् (वि०) सत्रह। सप्तदीधितिः (स्त्री०) अग्नि, आग। सप्तद्वयोदारः (पुं०) चौदह। (वीरो० ११/५) सप्तद्वीपा (स्त्री०) पृथ्वी। सप्तधातु (पुं०) सात प्रकार की शारीरिक धातुएं। अन्नरस,
रुधिर, मांस, चर्बी, हड्डी, मज्जा और वीर्य।
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