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सन्निधाय्
०उपस्थिति दृष्टिगोचर होना।
०ग्रहण करना।
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०उत्तमविधान भण्डार (सुद० ४०४) ०सम्मिश्रण, समष्टि।
सन्निधाय् (सक०) स्थापित करना, उपस्थित करना। (जयो० २/३१)
सन्निधिः (स्त्री०) (सम्+नि+धाइक] ०धनराशि (जयो० २१/५३)
० निकटवर्ती (जयो० २०/८८ )
० समागम । (दयो० ७२ )
० दर्शन करना। यद्यसि शान्ति समिच्छकस्त्वं सम्भज सन्निधिमस्य । (सुद० ७१ )
सन्निपातः (पुं० ) [ सम्+नि+पत्+घञ् ] 'संसारे पतनं सन्निपातः '
(जयो० २ / ६८)
० गिरना उतरना, नीचे आना। ०सम्पर्क, संघर्षण, टकराहट। ०मिश्रण, मेल, संचय |
० संघात, समुच्चय, संग्रह ।
० रोग विशेष बात, पित्त और कफ इन तीनों के योग से जो दोष उत्पत्ति होती है वह विषम ज्वर रूप होता है। सन्निबन्ध: (पुं० ) [ सम्+नि+बन्ध्+घञ् ] ०आसक्ति, लगाव, जोड़ मेल
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० सम्बन्ध, कस कर बांधना।
सन्निबध्य (वि० ) [ सम्+नि+बन्ध् + ण्यत् ] बन्धन योग्य, जोड़ने योग्य (जयो० ११ / २६)
सन्निनादः (पुं०) कडकड शब्द (जयो० ८/१२) सन्निभ (वि०) [सम्+नि+भा+क] समान, सदृश, तुल्य। (जयो० ६/१८) स्मर चापसन्निभः कटुकं परमकंदलजातिः । (जयो० ६/१८)
सन्नियोगः (पुं० ) [ सम्+नि+युज्+घञ् ] ० नियुक्ति,
० परस्परिक योग, मेल।
सन्निभा (वि०) सादृशी । (जयो० १९ / ४६ ) सन्निमेष: (पुं०) सन्तो निमेषा यस्यां सा तया सन्निमेषकदृशा । (जयो०वृ० ५ / ६९) अनुराग रखने वाली दृष्टि, निश्चल दृष्टि |
० अनुराग ।
०बीच, मध्यस्थ। (जयो० २१ / ७) सन्निरोधः (पुं०) (सम्+नि+रुध्+घञ्] अड़चन, रुकावट।
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संयासः
सन्निविष्ट (वि०) उपस्थित। (जयो० १३/६३)
सन्निर्वृतः (पुं०) समीचीन निधि ।
सन्निवृत्तिः (स्त्री० [सम्+ निविश्+घञ्] ०रचना ०संरचना
(जयो०वृ० १/१७)
सन्निवेश: (पुं० ) [ सम्- विविश्+घञ् ] ०भाण्डागार (जयो०
+
१/१७)
० अवयव आखण्डलोऽयमथवा
सन्निवेषु (सक०) बिठाना, ठहराना (जयो० ५ / २२ ) सन्निहित (भू०क०कृ० ) [ सम् निधा+क्त] उपस्थित ०ताडित। (जयो० ९/१२)
सन्मङ्गलार्थ (वि०) उचितमंगल के लिए। (वीरो० ४ / ३७ ) सन्मति (वि०) महावीर का अपर नाम सन्मतिभा ( स्त्री०) यशोदा । (जयो० )
सन्मतिसंसद् (स्त्री०) विचारशील सभा सन्मतीनां विचारशीलानां या संसदि सभायां पतत्येव' (जयो० २५/४०) सन्मतिसम्प्रदाय: (पुं०) वीर प्रभु का सम्प्रदाय (वीरो० १५/६१) मृदुसन्निवेश (दयो० १०८)
● अनुराग, उत्कृष्ट भक्ति।
० स्थान, स्थल |
० अवस्था ।
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० रूप, आकृति ।
सन्मन ( वि० ) [ एतां मनः] सत्पुरुष का मन (जयो०वृ० २/६६) सतां विदुषां मनश्चित्तम्' (जयो० २ / ५२ ) शुद्धिचित्त गृही (जयो० २ / ९५)
सन्मार्ग: (पुं०) मुक्ति पथ ।
सन्मार्गगामी (वि०) मुक्तिपथगामी। (वीरो० १८/४२) सन्मार्गदर्शक (वि०) मुक्तिपथदर्शक |
सन्मार्गप्ररूपण (वि०) उचित मार्ग का कथन। (जयो०१८/८६) सन्मार्गप्रवृत्तिः (स्त्री०) मुक्ति पथ की प्रवृत्ति। (जयो० १८/८७) सन्मुख (वि०) सामने ( भक्ति० १४ )
सन्मञ् (सक० ) पोंछना, साफ करना। (वीरो० ५ / ११) सन्मार्जित (वि०) प्रमार्जित ।
सन्यसनं (नपुं०) [सम्+नि+अप् + ल्युट् ] ० विरक्ति, वैराग्य, त्याग । ० सौंपना, प्रदान करना ।
नीचे
सन्यस्त (भू०क० कृ० ) [ सम्+नि+अस्+क्त] डाला हुआ, रखा हुआ त्यागा हुआ।
संवासः (पुं० ) [ सम्+नि+अस्+घञ् ] छोड़ना, त्यागना।