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सन्ध्यान
११४०
सन्निधानं
सन्ध्यान (वि.) पर्व आदि पर ध्यान करने वाला।
सन्मार्ग। (सुद० १३६) सन्ध्यानपरायणत्व (वि०) सन्ध्यासु सन्ध्यानपरायणत्वादेन च पृष्ठभाग।
पर्वण्युपवास-मृतत्वात्। (वीरो० ११/२९) सन्ध्याकालीन | संन्यासित् (वि०) संन्यास युक्त। (वीरो० ११/२४) कर्त्तव्य में परायण रहने वाला।
सन्नहनं (नपुं०) [सम्+नह ल्युट्] उद्यम, परिश्रम, उद्योग, सन्ध्यानुचरी (वि०) सन्ध्या के पीछे पीछे चलने वाली। प्रयत्न। (दयो० १११)
०सन्नद्ध होना, सुसज्जित होना। सन्ध्यारुणिमा (स्त्री०) सन्ध्या कालीन लालिमा। (जयो०० ०कवच। १५/१३)
सन्नहनकः (पुं०) कवच, उरश्छद, वक्षस्थलावरणक। (जयो० सन्ध्यावन्दना (स्त्री०) सन्ध्याकालीन ध्यान, सामायिकादि की ७/९३) क्रिया। आलोचना करना। (जयो०वृ० १५/७)
सन्नहनरोधि (वि०) कवच धारण में बाधक। (जयो०७/९५) ०सदाचरण प्रवृत्ति। (जयो०वृ० १/७८)
कवच धारणे बाधकंसन्ध्यावन्दनकारिन् (वि०) सन्ध्या वन्दन करने वाले। (जयोवृ० । सन्नाहः (पुं०) [सम्+नह+घञ्] कवचित होना, युद्ध के लिए १५/३१)
तैयार होना, सुसज्जित होना। (जयो०८/५७) सन्ध्यासमयः (पुं०) सन्ध्याकालीन समय। सांझ का समय। सन्नाहकः (पुं०) कवच पहनना। (दयो० १२०) तेभ्योऽतिवर्तनं (दयो० २/५) आप्रदोष (जयो०वृ० २/१२२)
कस्मात् त्यागसन्नाहकं विना। सन्न (भू०क०कृ०) [सद्+क्त] आसीन, स्थित, बैठा हुआ। सन्नाह्यः (पुं०) [सम्+नह+ण्यत्] युद्ध का हाथी। खिन्न, दुःखी, व्याकुल, उदास।
सन्निकर्षः (पुं०) [सम्+नि+कृष+घब] समीप लाना, निकटस्थ विश्रान्त, थका हुआ, म्लान।
करना। ०क्षीण, दुर्बल।
सम्बन्ध, इन्द्रिय विषय से सम्बन्धित। नष्ट, लुप्त।
उत्कर्ष-अनुत्कर्ष का विचार करना, एक वस्तु में किसी गतिहीन, स्थिर।
एक धर्म के विवक्षित होने पर शेष धर्मों के उसमें सत्त्वसन्न: (पुं०) पियाल तरु।
असत्त्व का विचार करना। ०चारोली तरु।
०पड़ौस, सामीप्य। सन्नं (नपुं०) अल्पमात्रा, थोड़ा सा।
सन्निकर्षणं (नपुं०) [सम्+नि+कृष्+ल्युट्] निकटस्थ करना, सन्नक (वि०) [सन्न+कन्] नाटा, छोटे कद का।
समीप लाना। सन्नत (भू०क०कृ०) [सम्+नम्+क्त] नम्रीभूत, नत, पहुंचना, आना। झुका हुआ।
०सामीप्य करना। ०प्रणत।
सन्निकृष्ट (भू०क०कृ०) [सम्+नि+कृष्+क्त] ०सींचा हुआ, सन्नतर (वि०) [सन्न+टाप्] विषण्ण, अपेक्षाकृत धीमा।
आकृष्ट किया हुआ। सन्नतिः (स्त्री०) [सम्+नम्+क्तिन्] प्रणति, अभिवादन, नमन। समीपवर्ती, सटा हुआ। ०सादर प्रणम्यभाव, सम्मान।
निकटस्थ, समीपस्था ०ध्वनि, कोलाहल।
सन्निग्रहणं (नपुं०)[सम्+नि+ग्रह ल्युट्] अच्छी तरह निग्रह सन्नद्ध (भू०क०कृ०) [सम्+न+क्त] ०कटिबद्ध, उद्यत, करना, भली-भांति निग्रह करना। हृषीकसन्निग्रहाणैकवित्ताः तत्पर।
स्वभाव सम्भावनमात्रचित्ताः। (सुद० ११८) सुसज्जित, सुव्यवस्थित।
सन्निचयः (पुं०) [सम्+नि+चि+अच्] ०संग्रह, संचय। निकटस्थ, सीमावर्ती।
सन्निधातु (पुं०) [सम्+नि+धा+तच] निकट लाने वाला, सन्नपि (अव्य०) होने पर भी। (जयो० १/१२)
जमा करने वाला। सन्नयः (पुं०) [सम्+नी+अच्] ०संचय, समुच्चय, परिमाण। | सन्निधानं (नपुं०) [सम्+नि+धा+ल्युट] सामीप्य, पडौस!
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