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सदय
११३४
सदेकसंसत्
सदय (वि०) [सह दयया] कृपालु, सुकुमार, दयापूर्ण, दयान्वित।
(जयो० १२/१०२) सदयं (अव्य०) कृपा करके, दया करके। सदर्चिष (वि०) जठराग्नि जन्य। सदर्थिनी (स्त्री०) शोभनाभिप्रायवती, सम्यग्वाच्यवती।
(जयो०३/१८) सदस् (स्त्री०) सभा। स्वयं वर मण्डप। (जयो० ४/२२) सदर्प (वि०) अहंकार युक्त। (सुद० १/२०) सदसत् (वि०) स्वच्छ-मलिन, सत्य, असत्य। 'सच्च असच्च
सदसमुखमीयते' (जयो० २/४६) सदश्वराज (वि०) श्रेष्ठ अश्वराज। (जयो०८/१६) सदस्यः (पुं०) [सदसि साधु वसति वा यत्] सभा का चयनित ___ व्यक्ति, सभासद्। (जयो० ४/५६) (जयो० १/४३) । सदा (अव्य०) [सर्वस्मिन् काले-सर्व-दाच सादेशः] हमेशा,
निरंतर, नित्य। (सुद० ९९) सदागतिः (स्त्री०) शाश्वत प्रगति, नित्य प्रगति। सदागतिशील (वि०) प्रगति युक्त। सदाचरणं (नपुं०) उत्तम आचरण, श्रेष्ठ चरित्र-कार्यसिद्धि
मुपयात्वसौ गृही नो सदाचरणतो व्रजन बहिः। (जयो०२/३५) सदाचरणशील (वि०) सुवृत्त। (जयो०७० ३/४६) सदाचरणवृत्तिः (स्त्री०) उत्तम आचरण पूर्वक प्रवृत्ति करना। सदाचारः (पुं०) ध्यान, स्वाध्यायादि युक्त आचरण। (सम्य०९८) | सदाचारपर (वि०) सदाचार में तत्पर। (सुद० १३०) सदाचारजन्य (वि०) उत्तम आचरण युक्त। सदाचारभुत् (वि०) समीचीनचरणशील। (जयो० १७/६) सदाचारपरायणः (पुं०) ध्यान स्वाध्यायादिलक्षणे परायणः
तत्परे। (जयो० २८/५) सदाचारविहीन (वि०) निरंतर भ्रमण रहित। सदा निरंतरं
यश्चारः पर्यटनं व्यर्थं भ्रमणं तेनविहीनः' (जयो०वृ० २८/५) सदाचारवृत्तिः (स्त्री०) सुरीति । (जयो०वृ० ११/८८) सदाज्ञः (पुं०) स्वामी आज्ञा, (सुद० ९२) दासस्यास्ति
सदाज्ञस्यासौ स्वामिजनान्वितिरिति चरणेन। सदात्मन् (वि०) सम्यङ्मनोवत् (जयो० २३/५२) सदादान (वि०) सदैव दान देने वाला, निरंतर उपहार देने वाला।
निरंतर मद बहाने वाला। सदादानः (पुं०) गन्धद्विज, उन्मत्त हस्ति। सदारम्भः (पुं०) पूर्ण रूप से आरम्भ। (सुद० ४/३२) सदानन्द (वि०) पूर्णानन्द युक्त। (जयो० १८/९६)
सदानन्दा (स्त्री०) सर्वदा आन्ददायिनी, मधुरा। (सुद० १०९)
(जयो० ६/८८) सदानुरागिणी (वि०) सदा लालिमा सहित। (जयो० २२।८८) सदापि (अव्य०) सर्वदैव। (जयो० २२/४५) सदाफल (वि०) हमेशा फैलने वाला। सदाफलः (पुं०) बिल्व तरु। ०कटहल। गूलर।
नारिकेल। सदायक (वि०) माप का उत्पादन। (जयो० २४/५५) सदामलक्षण (वि०) सदैव माला के लक्षण से युक्त- सा च
बाला तस्य वक्षः स्थलं सदामलक्षणं-दाम्ना माल्येन सहितं सदाम, तदेव लक्षणं यस्य तत्तथा-सदैवामलं शुद्ध प्रकाशरूपं
क्षणं यत्र तं दिवसमिव पवित्रम्।। सदायक (वि०) सन्मार्ग दायका (जयो० १/१०८) (जयो०१०
१७/११९) सदालिः (स्त्री०) [सज्जनानामालिः पंक्तिः] सज्जन समूह।
(जयो० १०) सदाशिवावति (स्त्री०) उत्तम अभिलाषा युक्त। (जयो० २३/३८) सदिन्दीवरः (पुं०) समुत्कृष्टनीलोत्पल, उत्तम नीलकमल।
(जयो०१५/६५) सदिष्टशकुनं (नपुं०) अभीष्ट सूचक विघ्न, अभीष्ट शकुन।
(जयो० १३/८९) सदीशः (पुं०) श्रेष्ठ चक्रवर्ती। (जयो० १९/८९) सदीशगौ (स्त्री०) चक्रवर्ती की वाणी-'सदीशस्य श्रेष्ठचक्रवर्तिनो
गौर्वाणी' (जयो०१० ९/६६) सदृक्ष (वि.) [समानं दर्शनमस्य] तुल्य, समान। सदृश/सदृशी (वि०) तुल्य! (जयो० २/१२)
•तुल्य, समान, एक सा। तुलित। (जयो०वृ० ६/१०) योग्य, उपयुक्त, समानरूप।
ठीक, उचित, संतोषप्रद। सदृशस्थ (वि०) समानता युक्त। (जयो० ६/२) सद्रससागरः (पुं०) शृंगार सागर। (जयो० ११/३) सद्रसस्य
शृंगारस्य सागरे समुल्वणे वृद्धि गते सति' (जयो० ११/३) सदुपदेश (वि०) श्रेष्ठ उपदेश। सदुवी (स्त्री०) प्रसन्नता युक्त। (जयो० २८/५) सदपापः (पुं०) उचित उपाय। (सुद० ७५) सदेकसंसत् (स्त्री०) सज्जन सभा। (सुद० २/१)
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