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सद्गजः
११३३
सदम्भा
सद्गजः (पुं०) ऐरावत हाथी। (जयो० ७/१०१)
सदक्षिणा (वि०) दक्षिण पार्श्वस्य। 'दक्षिणया गौरवेण ०लेटना, आराम करना।
समर्पितोपहारेण सहिता सा बुद्धिः सदक्षिणाऽतिकुशला' ०खिन्न होना, दु:खी होना, निराश होना।
(जयो०वृ० ६/३) ०म्लान होना, नष्ट होना।
सदङ्कपातिन् (वि०) सज्जन समर्थक। (जयो० १२/१४५) सद्गात्रलता (स्त्री०) सुंदर काय रूपी लता। (जयो० ११/८) सताभके महतां मध्ये पततीति सङ्कपाती-'सत्सु भृङ्गीवदृग्धस्तिपुराधिपस्यावगाह्य सद्गात्रलतां च तस्याः।
प्रशंसायोग्येष्वङ्केषु ककरादिषु पतति' (जयोवृ० (जयो०११।८) 'सुलोचनायाः गात्रस्य शरीरस्य लतां यद्वा १२/१४५) गात्रमेव लता। (जयोवृ० ११/८)
सदशक्ति (स्त्री०) सुदर-शरीर शक्ति। (जयो० १६/४) सद्गुण (वि०) श्रेष्ठ गुण वाला।
सदङ्कर (नपुं०) सदाचार, रूपी अंकुर। जगत्यमृतापमानेभ्यः सद्गुणगान (वि०) उत्तम गुण गीति। (सुद० २/३९)
सदङ्करमीक्षमाणेभ्यः। (सुद० १२४) सद्गुणाम्वेषिणी (स्त्री०) गुणैषणा। (जयो० ७२/४३)
सदङ्ग (वि०) लावण्य युक्त शरीर वाली। (जयो० १/४४) सद्गुणगणिनी (वि०) गणनकीं। (जयो० )
सदञ्जनः (वि०) गाढ-मालिन्य (जयो० ६/१३१) सद्गृहीयस्व (वि०) उत्तम गृहस्थ वाला। (जयो०वृ० २/७३)
सदनं (नपुं०) [सद्+ल्युट] भवन, गृह, सदने गृहेऽपि। (जयो० सदृष्टि (स्त्री०) सम्यक् दृष्टि (सम्य० १३३)
२/१२३) घर।
०आवास, निलय। सद्गलनालः (पुं०) कण्ठकन्दल। (जयो० ५/५२) सद्भावः (पुं०) उचित भाव, अच्छा विचार। (सुद० ९५)
कुञ्ज, निकुञ्ज।
स्थान। (जयो० ३/७८) सद्भावधृत (वि०) उत्तम भाव वाला। (सुद०८२)
०म्लान होना, उदासीन होना, क्षीण होना। सद्भावना (स्त्री०) उत्तम कामना, अच्छा विचार। (सुद०९५)
०अवसार, श्रान्ति, क्लान्ति, हानि। सद्भाव वृद्धिः (स्त्री०) उच्छिति, सद्भावना की जागृति।
सदनकक्षं (नपुं०) गृहकक्ष। सदविषय (वि०) अच्छे विचार वाला। (सुद० ९१)
सदनगत (वि०) श्रान्ति युक्त, दुःख को प्राप्त हुआ। (जयो० २/१०५)
आवाज को प्राप्त हुआ। सद्हारगङ्गा (स्त्री०) उत्तम आधार भूत गंगा
सध्यानम् (नपुं०) उत्तम ध्यान। (भक्ति० ३०) 'सन् चासौ हारो गलभूषणमेव गङ्गा धारतीति
सदनस्थित (वि०) घर में रहता हुआ। तं तथैव सती धारा यस्यास्तां गङ्गा'
सदनाश्रमः (पुं०) गृहस्थाश्रम। (वीरो० १०/२१) (जयो० सद्विभव (पुं०) प्रसन्नभाव। (जयो० २१/१)
१२/१४२) सदृकन्यकां प्रददता भवता प्रपज्ये दत्तस्त्रिवर्ग सद्विहारः (पुं०) वन विहार, वनक्रीडा।
सहितः सदना श्रमश्चेत्। सदः (पुं०) [सद्+अच्] वृक्ष का फल।
सद्नाश्रयः (पुं०) आधारभूत, सदन स्थान। (जयो० ३/१०८) सदंशकः (पुं०) [दंशेन सह] केकड़ा।
(जयो० १२/१४२) सदंशवदनः (पुं०) [सदंशं वदनं यस्य] कंक पक्षी, बगुला का |
सदनग्रहः (पुं०) अनुरोध, निवेदन, कथन, आज्ञा। नाम।
कुरुतात् सदनुग्रहं हि तु स्वयमारोहणतः परीक्षितुम्। सदंसा (वि०) शोभन स्कंधवती। (जयो० १०/११३)
(समु०२/२३) सदक्ष (वि.) [दक्षेण सह] दक्षता युक्त, प्रवीणता, सहित। | सदधीति (स्त्री०) रची गई। (सुद०८२) सदक्ष (वि०) [इन्द्रियेन सह] इन्द्रिय सहित।
सदन्दुः (स्त्री०) अलंकृत स्त्री। 'सती समीचीना अदुरलङ्कृतिसदक्षर (वि०) सुस्पष्टाक्षर। (जयो० १७/५४)
यस्यास्तस्या सदन्दोः स्त्रियाः' (जयो० १७/५२) सदक्षला (स्त्री०) निर्दोष इन्द्रियवती। (जयो० ११४८३) | सदन्दुवसनं (नपुं०) वस्त्राभूषण। (जयो० १७/५२)
समीचीनान्यक्षाणि लालीति सदक्षला। निर्दोषइन्द्रियवती' सदपत्य (वि०) सज्जनात्मज। (जयो० ६/६४) (जयो०वृ० ११/८३) 'समीचीनाक्षक्षरवती-रलयोरभेदात्' सदम्भा (स्त्री०) मायाविनी स्त्री। 'दम्भेन छलेन सहिता सदम्भा (जयो०वृ० ११/८३)
मायाविनी सा रम्भां। (जयो०० २४/१०२)
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