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सत्यानुगत
११३२
सद्
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सत्यानुगत (वि०) अनेकान्तमार्ग युक्त। (वीरो० २०/२३) सत्यवर्मन् (नपुं०) सत्यमार्ग-मुहुः प्रयतमानोऽपि सत्यवम न सत्यान्वित (वि०) सत्य युक्त। (समु० ३/७)
विन्दति। (वीरो० १०/१६) सत्यापिर (अव्य०) ससि स्त्री। (सुद० ८८)
सद्धयान (वि०) उत्तम ध्यान वाला, प्रशस्त ध्यान युक्त। सत्याभिसन्धिः (वि०) निष्कपट, अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने (सम्य० ११५) वाला।
सद्वाक्यं (नपुं०) सदाचरण युक्त वचन। ज्ञनाद्विना न सद्वाक्यं सत्यारम्भः (पुं०) समीचीनारम्भ। (जयो० २३/९०)
ज्ञानं नैराक्ष्यमञ्चतः। (वीरो० २०/२४) सत्यार्थता (वि०) अन्वर्थता, यथार्थता। (जयो० १८/९) । सद्विधुबिम्ब (नपुं०) शरच्चन्द्रबिम्ब। (वीरो० २२/३५)
5 (वि०) सत्य के रहस्य को प्रकट करने | सवृत्तभावः (पुं०) सदाचारण का भाव। वाला। (जयो० १८/६४)
विप्रोऽपि चेन्मांसभुगस्ति निन्द्यः सवृत्तभावाद् सत्याशंसा (स्त्री०) सत्य भामा सती। (सुद० ११२) कृष्ण वृषलोऽपि वन्द्यः। (वीरो० १७/१७) की अर्धांगिनी।
सवृत्तिः (स्त्री०) सदाचरण। (सम्य० १२८) कृतकं सभयं सततमिङ्गितं यस्य बभूव धरायाम्। सवंशजः (पुं०) कुलीन। (जयो०वृ० ६/३३) इह सत्याशंसा पायात्।। (सुद० ११२)
सत्त्वरं जितभावान (वि०) सत्त्व गुण से अनुरक्त मनोवृत्ति सत्येश्वरधामः (पुं०) पुण्य धाम। (मुनि० ३) सत्य रूप वाले। सन् सत्त्वेन नामगुणेन रञ्जिता भावना मनोवृत्तिर्यस्य परमेश्वर का स्थान।
सः' (जयो०वृ० २८/१५) सत्योत्कर्षः (पुं०) सत्य की प्रमुखता।
०शीघ्र ही नक्षत्रों के रक्षण को जीतने वाला-सत्त्वेन सत्योद्य (वि०) सत्य बोलने वाला, सत्यभाषी।
शीघ्रमेव जितं भानां नक्षत्रामाभवनं रक्षणं येन सः' (जयो०७० सत्योपयाचन (वि०) प्रार्थना पूर्ण करने वाला।
२८/१५) सत्र (वि०) मौन (जयो० १९/३१) छदम् सत्रं यज्ञे सदादनि । सत्वरं (अव्य०) शीघ्र, जल्दी से, तुरन्त-शीघ्र ही, (जयो० कैतवे बसने पने इति विश्व। (जयो० १५/५९)
१२/१३२) नरराट् पररावैरी सत्वरं सत्त्वरञ्जितः। (जयो० सत्रप (वि०) [सह त्रपया] लज्जाशील, विनयी।.
३/१०९) सत्राजित् (पुं०) निघ्न का पुत्र, सत्य भामा के पिताश्री। सत्वाद (वि.) सात्विक। (सुद० १२४) सतृष (वि०) पिपासित। (जयो० १२/१११)
सत्सङ्गः (पुं०) सत्संगति, सहवास। (दयो० २/१) सत्सङ्गत सतृणाशिन् (वि०) तृण भक्षण युक्त। (जयो० २/२०)
प्रहीणोऽपिपूततामेति भूतले। सत्व (वि०) सत्, चित् और आनंद रूप। (सुद० १३३) सत्सङ्गतः (वि०) अभिराम, मनोज्ञ। (जयो०वृ० १/२७) सत्वर (वि.) [सहत्वरया] द्रुतगामी, शीध्रगामी, चुस्त। सत्समयः (पुं०) उत्तम समय, योग्य समय। (जयो०१४/८९) शीघ्रता (जयो० २१/१)
सत्समागमः (पुं०) सज्जन सहवास। (सुद० १०४) इत्थमाह समनीकिनीश्वरो गत्वरसमयातिसत्वरः।
सत्सम्प्रयोगः (पुं०) सन्त प्रयोग। (सुद० ४/३०) सन्तजनो का सत्वरः शीघ्रताकरः।
संयोग-सत्सम्प्रयोगवशतोऽङ्गवतां महत्त्वं सम्पद्यते सपदि सत्याग्रह (पुं०) सत्य पर दृढ़ होना। (वीरो० ११/३९) तद्वदभीष्टकृत्वम्। (सुद०४/३०)
सत्याग्रहप्रभावेण महात्मात्वनुकूलयेत्। (वीरो० १०/३४) सत्सुरतः (पुं०) देवभाव, दिव्य आभास। (जयो० २०/८७) सत्यानुकूलः (पुं०) सत्य के अनुकूल।
सत्सुलता (स्त्री०) उत्तम लता-'सम्येषु लता ख्याता वल्लरी सत्यानुकूलं मतयात्मनीनं कृत्वा समन्ताद् विचरन्नदीनः। प्रसिद्धा' (जयो० ११/९५) (वीरो० १७/२३)
सत्सुषमा (स्त्री०) सुश्री। (जयो० ५/११) सत्यसमूहः (पुं०) सज्जन समूह। (वीरो० २१/५)
सत्सौधसमूहयुक्त (वि०) उत्तम सौध युक्त। (सुद० १/२७) सत्सामान्यः (पुं०) सत्सामान्य, वस्तु की सामान्य सत्ता। जो सस्थितिः (स्त्री०) सौस्थ्य, स्वस्थता। (जयो०वृ० १/३०)
वस्तु सत्सामान्य की अपेक्षा एक प्रकार की है, वही चेतन | सद् (सक०) बैठना, स्थित होना, रहना, बसना, निवास और अचेतन से दो प्रकार की है।
करना, स्थिर होना। (सुद० ९२)
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