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सङ्गराश्रयः
११२३
सङ्घटनं
०स्वीकृति।
दुर्भाग्य, संकट। विष। सङ्गराश्रयः (पुं०) युद्धाश्रय। (जयो० २१/३८) सङ्गरलेकमूर्ति (स्त्री०) पूर्ण विषभरी मूर्ति। (जयो० १/७) सङ्गरल (वि०) रण करने वाला। (जयो० १/७) सड़वः (पुं०) [संगता गावो दोहनाय अत्र] चरगाह का समय। सङ्गसुखं (नपुं०) गृहवास सुख। (जयो० २५/३१) सङ्गाढसंदेशिन् (वि०) सुदृढ़संदेशकारी। (जयो० २३/२८) सङ्गादः (पुं०) [सम्+गद्+घञ्] प्रवचन, वार्तालाप, समालाप। सङ्गामः (पुं०) समागमा
तत्रास्याः पुण्ययोगेनाप्यार्यिका। सङ्गालित (वि०) छाते हुए। सङ्गलिते वारिणि जीवजन्तु।
(वीरो० १९/२१ सङ्गीतशास्त्र (नपुं०) गायनशास्त्र। सङ्गीति (स्त्री०) विचारगोष्ठी, श्रुताचार्य की विचार गोष्ठी,
वाचना, आगम-विचार गोष्ठी। (सुद०८२)
उदय। (जयो० १४/६) दिगन्तव्याप्तकीर्तिमयः
प्रथिमतषट्चरण सङ्गीतिः। (सुद० ८२) सङ्गीतिपरायणः (पुं०) गोष्ठी में निपुण। (सुद० १२३) सङ्गीर्ण (भू०क०कृ०) [सम्+गु+क्त]
०सम्मत, स्वीकृत।
प्रतिज्ञात। समर्थित। (जयो० १/६९) युक्त। (जयो०
३/३९) सङ्गणित (वि०) पूर्वापेक्ष गुणवत्। (जयो०वृ० ११/१०) सङ्गप्त (वि०) निग्रहयुक्त। आवृत। (सुद० ७७) सङ्गष्ट (वि०) अंगुष्ट सहित। सङ्ग्रहः (पुं०) [सम्+ग्रह+अप्]
०समूह। (जयो० २१/५)
संचया (जयो० २/८२) 'को न संवदति सङ्गहे पुनर्मो, घृणोद्धरणमात्रवस्तुनः। (जयो० २/८२) उत्तम ग्रह। (जयो०वृ० ५/५१) सभासंघ-करसौम्यमूर्तिर्मम कौमुदाश्रयोऽस्मिन् सङ्ग्रहे स्यात्तु शनैश्चरात्यहम्। (जयो० ५/९१) ०भरना, संचय करना, संग्रह करना। ०अवधारणा, संकलन। सारांश, सार, संक्षेपण।
० जोड़, राशि। ०प्रयत्न, चेष्टा।
उल्लेख, संकेत। सङ्ग्रहणं (नपुं०) [सम्+ग्रह् ल्युट]
०संलन, संचय। (जयो० १/१६) ०मंढना, जड़ना। ०आशा स्वीकार। ०स्वीकार करना।
मैथुन, स्त्रीसंभोग ०व्यभिचार। ०पकड़ना, लेना। ०सहारा देना।
प्रोत्साहित करना। सङ्ग्रहणता (वि०) जकड़े रहने वाला। सङ्ग्रहिन् (वि०) संग्राहक। (जयो०वृ० २/२१, जयो० २/१०७) सङ्ग्रहीतृ (पुं०) [सं+ग्रह तृच] सारथि। सङ्ग्रहणानुरागः (पुं०) उपचर्याकरणानुराग। (जयो० २७०७) सङ्गणित (वि०) गुण सहित। (जयो० ११/१०) सङ्ग्रामः (पुं०) [सङ्ग्राम्+अच्] रण, युद्ध। (जयो० ६/३८)
०समाहव/युद्ध। (जयो०१०/३२) सनामकर (वि०) युद्ध करने वाला। (जयो० ७/११३) साहः (पुं०) [सम्+ग्रह्+घञ्] ग्रहण करना। पकड़ना, ले
लेना।
हाथ डालना। सङ्ग्राहक (वि०) ग्रहण करने वाला। (सम्य० ९६) सङ्ग्राहिन् (वि०) पकड़ने वाला, छीनने वाला।
संग्रहण तल्लीन, संगृह्णातीति संग्राही। (जयो०० २८/४५) सङ्ग्राहिणी (वि०) ग्रहण करने वाली।
'कविता च सम्यग्रूपाणां सुप्तिङन्तानां
पदानां शब्दानां सङ्ग्रहिणी' (जयोवृ० ३/४१) सङ्घः (पुं०) [सम्+हन्+अप्] समूह, समुदाय, संगठन,
झुण्ड, ०समुच्चये, ०संग्रह, चतुर्विध संघ। सङ्घगत (वि०) समूह युक्त। सङ्घचारिन् (वि०) साथ में चलने वाला। सङ्घटनं (नपुं०) समुदाय, समुच्चय, समूह, एकता, सामञ्जस्य।
(जयो० ५/९०) निर्माण। (जयो० ११/७५) पदयोर्निर्माणकाले संघटनेसमये' (जयो०वृ० ११/७५)
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