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सङ्घटना
११२४
सजनः
सङ्टना (स्त्री०) सम्मेल, सम्मिलन।
सचकित (वि०) विस्मित, आश्चर्यजनक। एकता, एकरूपता।
भयभीत। सङ्घटित (वि०) [सम्+घत्+णिच्+क्त]
सचकितं (अव्य०) चौकन्ने होकर, विस्मित होकर। ०सम्मिलित, एकत्रित, समूहगत।
सचिः (पुं०) [षच्+इन्] मैत्री, मित्र। 'स्वाहितार्थमेव धर्माचरणे सङ्घटिता भवन्ति। (जयो०१० | सचित्त (वि०) सजीव, चेतनतन युक्त। २/२०)
धूलिः पृथिव्याः कणशः सचित्तास्तत्कायिकैराहतसूक्तवित्तात्। सङ्घटिता (वि०) घटित होती हुई।
(वीरो० १९/२८) उद्धृलिता धूलिरहस्करा याप्यपेत्य
सचिल्लक (वि०) [सह क्लिन्ने, सहस्य स+कप्] चकाचौंध सा मूर्ध्नि नुरस्त्विलायाः।
युक्त अक्षिा इमां सदुक्ति वलये प्रसिद्धा
सचिवः (पुं०) [सचिवा+क] ०मन्त्री। (समु० ३/२१), मुपैति मे संघटिता सुविद्धा।। (दयो० ९६)
(जयो०वृ० ३/१४) परामर्शदाता। सङ्घट्टः (पुं०) [सम्+घट्ट+अच्]
मित्र, सहचर, अनुगामी। ०टक्कर, मुठभेड़।
तत्र तस्य सचिवेन सदक्तं वाच्यमेव समये खलु युक्तम्। ०संघर्ष, भिडंत।
(जयो० ४/२२) ०सम्मिलन, मेल, मिलन।
०सम्पन्न। (सुद० ३/३०) आलिंगन, भेंट।
सचिहितकृत (वि०) मैत्री पूर्ण व्यवहार करने वाला। (दयो०) सट्टनं (नपुं०) [सम्+घट्ट ल्युट्]
सचेतन (वि०) जीवधारी, प्राणवान्। (मुनि० २५) ०संघर्षण, रगड़ना।
विवेकपूर्ण। संपर्क, मेल।
सचेतस् (वि०) [सह चेतसा] प्रज्ञावान्। विचाशील (जयो० ०पारस्परिक चिपकना।
१४/३५) मिलना।
भावुक, ०एकमत। चेतनायुक्त। सङ्घतः (पुं०) [सम्+हन्+घञ्] हत्या, वध।
जाग्रत। ०समुदाय, समुच्चय, समूह।
सचेता (स्त्री०) विचारशीला स्त्री। (जयो० १४/३५) संघ, मिलाप, समाज।
सचेल (वि.) [सह चेलेन] वस्त्रों में सुसज्जित, वस्त्र सहित। सङ्घशस् (अव्य०) [संघ+शस्] झुंडों में, दल बनाकर। सचेलकत्व (वि०) सचेकता, वस्त्र सहित। सङ्घर्षः (वि०) [सम+घृष्+घञ्]
सचेष्टः (पुं०) [सच्+अच्, तथा भूतः सन् इष्टः] आम्र वृक्षा ०टक्कर, भिडंत, जूझना।
सचेष्ट (वि०) चेष्टा सहित। लड़ना, भिड़ना।
सच्चमरीचय (वि०) अरण्य गाय के संग्रह युक्त। प्रतिद्वन्द्विता, प्रतिस्पर्धा।
सतीना चमरीणां वनगवां च यस्य संग्रहस्य। (जयो० २४/२४) ०होड़।
सच्चवचा (स्त्री०) सत्यवादी। (समु० ६/३७) ०ईर्ष्या, डाह।
सच्चाक्ष (वि०) सत्काम। (जयो० १०/४५) सङ्घाटिका (स्त्री०) [सम्+घट्+णिच्+ण्वुल्+टाप्] जोड़ा, | सच्चितत्त्व (वि०) सौमनस्य। (जयोवृ० ११/७४) सम्पत्ति।
सच्चिदानन्दः (पुं) सम्यक् आनन्द रूप आत्मा। (सुद० ४/१) दूती, कुटनी।
सच्छिर (वि०) शिरसहित। (जयो० २/१३८) सङ्घधाणकः (पुं०) नाक का मल, सिणक।
सच्छिद्रकर (वि०) मन्दफल। (जयो०वृ० १२/१३१) सङ्घृणा (स्त्री०) निरादर। (जयो० २१/७९)
सच्छकुन (वि०) शोभन लक्षण। (जयो० ३/८६) सङ्घर्ण (अक०) हिलना। (जयो० १८/९१)
सजन (वि०) [सह जनेन] प्राणियों सहित। सधूर्णमान (व०कृ०) हिलता हुआ। (जयो० १८/४१) सजनः (पुं०) बन्धु, कुटुम्बीजन, पारिवारिक लोग।
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