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सकलज्ञ
१११८
सक्तिः
सकलजनानां निजवित्तस्य च
लुण्टाकेभ्यस्त्रात्री-यमायाताऽरमहो कलिरात्रि। (सुद०९७) सकलज्ञ (वि०) सर्वज्ञ, भगवान्।
सकलशं सर्वत्रं भगवन्तं
सम्प्रार्थयितुमाप्तवान्' (जयो० ८।८८) सकलज्ञता (वि०) सर्वज्ञता, सर्व वस्तु जानने वाला।
व्याख्याति तत्त्वं सकलज्ञतात:
बहिर्न किञ्चिद्यदुपेयतात:। (भक्ति० ३२) सकलङ्क (वि०) [कलङ्क सहितः] कलंक सहित।
सकलङ्कः पृषदङ्ककः
स क्षय सहितः सहजेन। (सुद० ८७) सकलजाति: (स्त्री०) सम्पूर्ण जाति। सकल-तापस् (वि०) समस्त तपस्वी। सकलदत्ति कारकत्व (वि०) महादान के दाता। (जयो०७०
१/१०८) सकलदानं (नपुं०) समग्रदान। सकलदोषः (पुं०) सम्पूर्ण सम्पत्ति। सकलधनं (नपुं०) समस्त धर्म। सकल परमात्मन् (पुं०) सकल परमात्मा। सकलभावः (पुं०) सम्पूर्ण परिणाम। सकलभेदः (पुं०) समस्त भेद। सकलयोनिः (स्त्री०) सम्पूर्ण उत्पत्ति स्थान। सकलराशिः (पुं०) समस्त राशिः सकलविद्या (स्त्री०) समस्त विद्याएं।
कुशल सद्भावनोऽम्बुधिवत्,
सकलविद्या सरित्सचिवः। (सुद० ३/३०) सकलव्यञ्जनं (नपुं०) समस्त पकवान्।
सकलानि व्यञ्जनानि। (जयो० १२/११५) सकलसम्मत (वि०) जनमान्य। (दयो० १/१४) सकलाङ्गदेशिनी (वि०) सांगोपांग वर्णन करने वाली।
सकलान्यङ्गनि दिशतीति
साङ्गोपाङ्गनिर्देशिनी भवति। (जयो० २/४३) सकलादेशः (पुं०) प्रमाण वृत्ति। (जयो० २८/४४) सकलाधर (वि०) कलायुक्त। (दयो० १०४) सकलित (वि०) सम्पादित। (जयो० १२/१३२) सकलेन्द्रियः (पुं०) समस्त इन्द्रियां, पंचेन्द्रिय।
यामि चेत्तु सकलेन्द्रियभोगभोगिनोनुरिह कोऽस्तु नियोगः। (समु० ५/७)
सकरङ्कः (वि०) कन्यादानार्थ कर झारी, शंङ्गारक। झारी युक्त
हस्त। (जयो० १२/५३) सकल्प (वि०) [कल्पेन सहितं] कल्प/क्रिया सहित। सकाम (वि०) [कामेन सह] कामना युक्त, कामी, लब्ध
काम, तुष्ट, तृप्त। सकामनिर्जरा (स्त्री०) निर्जरा का एक भेद। सकाय (वि०) [कायेन सह ) शरीर सहित, शरीरधारी। (जयो०
१५/३९) सकाल (वि०) [कालेन सहित:] काल सहित। ऋतु के
अनुकूल। समयोचित। सकालं (अव्य०) कालानुरूप, समय से पूर्व, ठीक समय पर। सकावशस्य (वि०) कंकर सहित धान्य। (जयो० २/१७) सकाश (वि०) [काशेन सह] दृश्य, प्रस्तुत निकटवर्ती।
'सकाशात् प्रतिष्ठां गतः' (जयोवृ० १/१६) सकाशः (पुं०) उपस्थिति, पड़ौस, सामीप्य।
निकट। सकुक्षि (वि.) [सह समानबुद्धि:] सहोदर, एक ही माता से
जन्म लेने वाले। सकुल (वि०) [कुलेन सह] कुल से सम्बंध रखने वाला। एक ___ही परिवार सका, सपरिवार। सकुलः (पुं०) सम्बंधी जन, निकटवर्ती लोग। सकुल्यः (पुं०) [समाने कुले भाव:] ०एक ही परिवार
सम्बंधी जन। सकूर्चक (वि०) [सहित सकूर्चक] दाढ़ी-मूंछ युक्त। (जयो०
२/१५३) सकृत् (अव्य०) एक बार, एक समय, एक अवसर, पहले
दफा का।
०साथ-साथ। (जयो० ४/४९) सकैतव (वि०) [कैतवेन सह] धोखा देने वाला, जालसाज। सकैतवः (पुं०) ठग, धूर्त। सकोप (वि०) [कोपेन सह] क्रोधित, क्रुद्ध, कुपित। सकोपं (अव्य०) क्रोधपूर्वक, गुस्से से। सकौतुक (वि०) जिनोदभाव युक्त। (जयो० १/८६) सक्त (भू०क०कृ०) [सज्+क्त] चिपका हुआ, संसक्त,
० जुड़ा हुआ। ०भक्त, अनुरक्त, आसक्त।
०सम्बन्ध रखने वाला। संलग्न। (सुद० १२७) सक्तिः (स्त्री०) [सञ्ज+क्तिन्] संपर्क, स्पर्श, मेल, सङ्गम। ___०अनुराग, आसक्ति, भक्ति। (जयो० २/२)
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