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संहर्तृ
१११७
सकलजनः
संहर्तृ (पुं०) [सम्+ह+ तृच्] विनाशक, नष्ट करने वाला। ०लेना, ग्रहण करना, पकड़ना। संहर्षः (पुं०) [सम्+हरु+घञ्] आनन्द, हर्ष, खुशी।
प्रतिबन्ध, संचय। ०रोमांच।
संहृष्ट (भूक०कृ०) [समृ+हृष्+क्त] हर्षित, रोमांचित, ०पवन, वायु। ०रगड़ना।
पुलकित। संहातः (पुं०) [सम्+हन्+घञ्] संघात।
संहादः (पुं०) [सम्+हृद्+घञ्] चीत्कार, कोलाहल, होहल्ला। संहारः (पुं०) [सम्ह+घञ्] संकोचन, भींचना, संक्षेपण, संहीण (वि०) [सम्+ही+क्त] लज्जालु, शर्मीला, विनयशील। प्रतिबन्ध लगाना।
सकं (नपुं०) सुख, आनंद, हर्ष। ०विनाश, समाप्ति। उपसंहार।
'इत्येवं सकं सुखं ददातीति तत्प्रकार:' (जयो० ११/४३) संघात, समूह।
सकः (पुं०) अर्ककीर्ति राजा। (जयो० ८/७४) संहारक (वि०) विनाशक, घातक। (जयो० ६/६८) । सकज्जलं (वि०) [कज्जलेन सहति] कज्जल सहित। कालिमा ०संघातकाय (जयो०वृ० १/९४)
युक्त। (जयो० ७/९९) संहारकः (पुं०) महादेव, शिव। (जयो०१० ३/५४)
सकट (वि०) [कटेन अशुचिना शवादिना सह वर्तमानः] संहारकृत् (वि०) विनाश करने वाला, घातक। (वीरो० ९/४०) दुष्ट, बुरा, कुत्सित। संहार्यमतिः (स्त्री०) असमीचीन बुद्धि।
सकण्टक (वि०) [कण्टेन सह] कांटेदार, चुभने वाला। संहित (भू०क०कृ०) [सम्+धा+क्त हि आदेश:]
(दयो० २/९) ०संयुक्त, मिला हुआ, समाहित।
०कष्ट प्रद भयानका संचित, अन्वित, सहित, युक्त।
सकण्टकः (पुं०) शेवाल जलीय घास। सहमत, समनुरूप, अनुकूल।
सकन्दल (वि०) [कन्दलेन कलहेन सहितं] कलह सहित। संहिता (स्त्री०) [संहित+टाप] सम्मिश्रण, समायोजन।
आघात (जयो० १३/७०) ०संचय, संकलन, संग्रह।
सकम्प (वि०) ०कम्पेन सह, ०कांपता हुआ, ०कम्पमान। नियम, विधि।
(जयो० ८1८) डरता हुआ, ०थरथराता हुआ। संहिता शास्त्र-सूत्र की व्याख्या।
सकम्पन (वि०) [कम्पनेन सह] कांपता हुआ, थरथराता ०पद विन्यास, उच्चारण की विशेषता।
हुआ। शस्तमस्तु तदुताप्रशस्तकं
स-करुण (वि०) करुणया सह, करुणा युक्त, कोमल, व्याकरोति विषयं सदा स्वकम्।
दयालु। पारवश्यक विचारवेशिनी
सकर्ण (वि०) [कर्णेन सह] कान सहित, सकर्मक क्रिया। संहिता हि सकलाङ्गदेशिनी।। (जयो० २/४३)
जिसमें कर्ता के साथ कर्म को महत्त्व दिया जाता है। संहितासद्भावः (पुं०) कार्य प्रारम्भ। (जयो० ३/७१)
कर्म से युक्त, कर्म रखने वाला। ०संगठित शक्ति।
सकल (वि.) [कलया कलेन सह वा] संहितत्व (वि०) परम्परा युक्त। (वीरो० ११/२४)
समग्र, सम्पूर्ण, सब, समस्त। (जयो० १८/१६) संहूतिः (स्त्री०) [सम्+ ह्वे-क्तिन्] चीखना, चिल्लाना, शोरगुल भूरानन्दमयीयं सकला। (सुद० ८१) (जयो० २/१६) करना।
०कृत्स्नं। (जयो० १८/१६) संह (सक०) खींचना, दबाना।
०कोई भी-विश्वं सुदर्शनमयं विवभूव तस्या। नियंत्रण करना। नष्ट करना। (सुद० १२८)
रुच्या न जातु तमृते सकला समस्या।। (सुद०८६) संहृत (भू०क०कृ०) [सम्+ह+क्त] ०संचित, संगृहित।
कला सहित। (सुद० १/२८) ०पकड़ा हुआ। दबाया हुआ।
०भागो सहित, अंश युक्त। संहतिः (स्त्री०) [सम्+ह+क्तिन] सिकुड़न, भींचना।
सब अंकों से युक्त। विनाश, हानि, क्षति, संहार। (वीरो० ९/५) | सकलजनः (पुं०) सम्पूर्ण व्यक्ति, समस्त मानव। (सुद०९७)
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