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संस्थः
१११६
संहरणं
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०समाप्त, मृत, नष्ट। स्थिर, अचल।
सूख गया। (वीरो० १२/३१) संस्थः (पुं०) निवासी, वास्तव्य पड़ौसी, स्वदेशी। ०गुप्तचर। संस्था (स्त्री०) [सम्+स्था+अङ्कटाप्]
सभा, समुदाय, समूह, समिति। ०परिषद्। ०धन्धा, व्यवसाया ०अन्त, पूर्ति, क्षति, नाश।
०प्रलय, राजकीय आज्ञा। संस्थान (नपुं०) [सम्+स्था ल्युट्]
संचय, राशि। ०आकार-प्रकार। (सुद० ८३) ०आकृति विशेष।
विन्यास, अनुकृति। ०रूप, आकृति, दर्शन, सूरत। संरचना, निर्माण, संस्थिति। निशान, चिह्न। ० नाश।
समचतुरस्रनादिलक्षण, औदारिक शरीर का आकार। संस्थानविचयः (पुं०) द्रव्य, क्षेत्र आकारादि का चिंतन।
(समु० ८/३९) संस्थापनं (नपुं०) [सम्+स्था+णिच+ल्युट] निर्धारण, जमाना, बिठाना, स्थपित करना। नियंत्रण करना, दमन करना।
संचय करना, संग्रह करना। संस्थापना (स्त्री०) नियंत्रण, दमन। संस्थापकार्थ (वि०) मारणानार्थ, उपनिवेश, रोकने के लिए। __ (जयो० ८/५४) . संस्थित (वि०) स्थित, विद्यमान।
संचित, स्थापित, रखा हुआ। मृत, उपरत।
निष्पन्न समाप्त। संस्थितिः (स्त्री०) [सम्+स्था+क्तिन्]
निवासस्थान, आवासस्थल, विश्रामगृह। निकटता, समीपता। संचय, ढेर। ०अवधि, कालावधि।
अवस्थान, स्थिति, जीवन की दशा।
प्रतिबंधा संस्पर्शः (पुं०) [सम्+स्पृश्+घञ्] ०संपर्क, छूना, सम्मिलन,
मिश्रण।
०संवेदन, प्रत्यक्षज्ञान। संस्पर्शी (स्त्री०) [समृ+स्पृश्+अच+ङीष] गंध युक्त पौधा। संस्पृत्यालु (वि०) अभिलाषी। (जयो० २७/२३)। संस्फालः (पुं०) [सम्यक् स्फाल स्फुरणं यस्य] ०मेंढा।
मेघ, बादल। संस्पुरं (सक०) प्रकट करना, व्यक्त करना। (जयो० १६/७६) संस्फेटः (पुं०) संग्राम, युद्ध लड़ाई। संस्मरणं (नपुं०) [सम्+स्म् ल्युट्] याद करना, मन में लाना,
विचारना, चिन्तन करना। (जयो० २७/५५) संस्मारक (वि०) स्मरण। (जयो० १९/२) संस्मृ (सक०) चिन्तन करना, याद करना, स्मरण करना।
(जयो० ४/६२) स्मरण (मुनि० १७) संस्मृत (वि.) [समृ+स्मृ+क्त] याद किया हुआ।
स्मरित, स्मरण किया हुआ। (दयो० ३९) संस्मृति (स्त्री०) स्मरण, याद चिंतन, (जयो० ४/६२) विचार।
(जयो० ९/४८)
'स्वं यशोऽग्रजननाम संस्मृतिः' (जयो०२/१०५) संस्रवः (पुं०) [सम्+मु+अप्] बहना, टपकना, रिसना, झरना।
०सरिता। संहत (भू०क०कृ०) [सम्+हन्+क्त] ०बन्द, अवरुद्ध।
०समुदित, एकत्रित। (जयो० २/२०) ०सम्पृक्त, संबद्ध, युक्त, जुड़ा हुआ।
संघात, संचित। संहतता (स्त्री०) [संहत+तल+टाप्] मेल, मिलन, संहति।
०संपर्क, घनिष्ट मेल।
०संयोजन, सहमति, एकता। संहतिः (स्त्री०) [सम्+हन्+क्तिन्] संपर्क, मेल।
०संचय, समुदाय, ढेर।
पिण्ड, समवाय। संहननं (नपुं०) [सम्+हन्+ल्युट्]
सघनता, दृढ़ता, सामर्थ्य शक्ति।
अस्थि-निबन्धन, हड्डियों की बनावट। ०हड्डियों का संचय। ०देह रचना। संहरणं (नपुं०) [समृ+हल्युट] लेना, ग्रहण करना।
मिलाना, संचय करना।
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