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संलग्नकथा
० संहत, जुड़ा हुआ। (सुद० १ / ३१ ) ० घनिष्ट |
संलग्नकथा ( स्त्री० ) [ सम्+ली+अच्] ० लेटना, शयना करना, सोना। ०घुल जाना, मिलना।
संलप् (सक०) बोलना, कहना, समझाना। (जयो० ७ /६१) संलभ् (सक० ) थाना, ग्रहण करना। (जयो० ४ / ३९) संलयनं (नपुं० ) [ सम्+ली+ ल्युट् ]
०जुड़ना, मिलना, चिपकना । ०घुलना, संयुक्त होना।
संललित (भू०क० कृ० ) [ सम् + लल्+क्त] ० स्नेहित, प्रिय, प्यार किया हुआ ।
संलापः (पुं० ) [ सम्+लप्+घञ् ] ०बातचीत, वार्तालाप ।
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० प्रवचन, उपदेश । ( मुनि० ३) ● स्वाद, अन्योन्य वार्ता।
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० सम्भाषण |
संलापक: (पुं० ) [ संलाप+कन्] उपरूपक, संवादात्मक विचार | संलापादिवर्जित (वि०) वार्तालाप आदि रहित (मुनि० ६) संलीढ (भू०क०कु० ) [ सम्-लिह+क्त]
० चाटा हुआ, अवलेहित किया।
संलीन (भू०क० कृ० ) [ सम् + लीरुक्त] चिपका हुआ, जुड़ा
हुआ।
● मिलाया हुआ, छिपाया हुआ।
संलिखु (सक०) लिखना, समाचार होना। (जयो० २/१३) संलेखना ( स्त्री०) शरीर कृश करना, अच्छी तरह अपना प्रमार्जन करना।
संलोडनं (नपुं०) (सम्+लोइ ल्युट् ] बाधा डालना, व्यधान। ० अवरोध |
संल्लग्नता (वि०) अनुयोग से युक्त । मिला हुआ, संयुक्त हुआ।
संल्लभ् (सक० ) प्राप्त होना, ग्रहण होना ।
सं शब्दस्य इह अप्रशस्तार्थे ग्रहणं महत्तरवत्' (जयो०वृ० १२/२४)
संलमालित (भू०क०कु० ) (सम्+लाल+क्त] वर्द्धित, बढ़ाया हुआ, पालित, संरक्षित।
संवत् (अव्य० ) [ सम्+वय्+क्विप्]
० वर्ष, साल
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संवत्सरः (पुं० ) [ संवसंत ऋतवोऽत्र संवस्-सरम्] वर्ष, साल, अब्द। (जयो० २२/२९ )
०दो अयन या छह-छह माह का एक संवत्सर । संवत्सरतुल्यः (पुं०) अब्दप्रमाण, लवर्तमान (जयो० २२ / २९) संवदनं (नपुं०) [सम्+वद् + ल्युट् ]
० संवाद, वार्तालाप, शब्दोच्चारण) (जयो० १८/५०) ० परीक्षण, समाचार देन
संवरः (पुं० ) [ सम् + वृ+अप् वा अच्]
० निरोध, संपीडन, संकोचन । ०बांध, सेतु पुल
० रोकना, आत्मनियन्त्रण करना ।
० सहनशीलता, छिपाव ।
०रुक जाना, न होना। (त०सू०पृ० १३८)
० संवरण- कर्म संवरण।
● मिथ्यादर्शनादि परिणाम का निरोध।
० इन्द्रिय- नो इन्द्रिय गोपन
संवरकारक (वि०) इन्द्रिया निग्रह करने वाला (भक्ति० १५)
संवरणं (नपुं०) [सम्बृ+ल्युद्]
।
० आवरण, आच्छादन, संपीडन ० निरोध, रोक।
संवरानुप्रेक्षा ( स्त्री०) संवर के गुणों का विचार संवर्जनं (नपुं० ) [ सम्+ वृज् + ल्युट् ] ० रोकना, निरोध करना। ० आत्मसात्करण, संभुजन। संवर्त: (पुं० ) [ सम्+ वृत्+घञ् ]
० मुड़ना, घुलना।
० विनाश, क्षय, नाश।
संवर्धित
० मेघ, बादल ।
० वर्ष, संग्रह, समुदाय, समुच्चय। संवर्तकः (पुं० ) [ सम्+ वृत्+ णिच्+ण्वुल्]
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० प्रलयाग्नि, बडवानल। संवर्तकिन् (पुं०) बलराम ।
संवर्तिका ( स्त्री० ) [ सवर्तक+टाप्] कमलपर्ण, पारकुड़ी। संवद (सक०) कहना, समझना (जयो० ४/३०, ३/२३) संवर्धक (वि० ) [ सम्+ वृध्+ णिच्+ण्वुल् ]
०बढ़ने वाला वृद्धि करने वाला। संवर्धित (भू०क०कु० ) [ सम्+ वृध्+ णिच्+क्त]