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शेवलिनी
१०८६
शैलतनया
एक पादप। कमल के साथ उगने वाली घास।
०पानी के ऊपर हरे रंग की रेशेदार घास। शेवलिनी (स्त्री०) नदी, सरिता। शेवालः (पुं०) घास, पानी के ऊपर हरे रंग की रेशेदार घास।
चोई (मुनि० ६) शेष (वि०) [शिष्+अच्] बाकी, बचा हुआ।
अवशिष्ट। (जयो० ३/८०) अवशेष, रिक्त, खाली। (सम्य० १८) ०समवशिष्ट। ०शेष अन्य। प्रणेभि शेषानपि तीर्थ भगवान्,
समस्ति येषां गुणर्गुणगाथा। (जयो० ११/४३) शेषः (पुं०) शेषनाग, सर्पराज। 'शेष: नागपतिः लोकख्यातः' (जयो० ११/४३)
परिणाम, प्रभाव। ०अन्त, समाप्ति, उपसंहार।
मृत्यु, विनाश। शेषं (नपुं०) चढ़ावे से बचा हुआ। शेषक्रिया (स्त्री०) क्रिया की समाप्ति। शेषकीर्तिः (स्त्री०) कीर्ति का विनाश। शेषखण्डं (नपुं०) अवशिष्ट हिस्सा। शेषगत (वि०) अवशिष्टता को प्राप्त। शेषग्रन्थिः (स्त्री०) गांठ की समाप्ति। शेषजरस् (स्त्री०) जन्म का शेष रहना। शेषजातिः (स्त्री०) उत्पत्ति का अन्त। शेषभागः (पुं०) शेष हिस्सा। शेषभोजनं (नपुं०) जूहन, अवशिष्ट आहार। शेषनागः (पुं०) ०शेषनाग, ०एक प्रसिद्ध साधिराज, सहस्त्र
कलीन्द्र। (वीरो० २/२३) शेषनागधारित्व (वि०) शेषनाग के नप को धारण करने ___ वाला। (जयो०वृ० १/३०) शेषमय (वि०) विशेषकर। (सुद० १०४) शेषयोनिः (स्त्री०) योनि का अन्त। शेषविद्वेषपरायणं (नपुं०) शेषनाग से विद्वेष करने में तत्पर।
(जयो० ७/८८) 'शेषस्य तस्यैव नागराजस्य विद्वेषणे विरोधे परायण इति' (जयो०११/४४)
शैक्षः (पुं०) [शिक्षां वेत्त्यधीते अण वा] शिक्षा को ग्रहण
करने वाला विद्यार्थी। मुनिचर्या में उद्यत शिष्य। शिक्षाशील। पठन बगैर शिक्षा पाना ही जिनका काम हो। (स.सू० ९/२४), (त०सू०पृ० १५२) 'अचिरप्रव्रजितः शिक्षायतव्यः शिक्षः, शिक्षामहतीति शैक्षो वा' (त०भा० ९/२४)
शास्त्राभ्यासी। ०अभिनव प्रव्रजित। शैक्षिकः (पुं०) [शिक्षा+ठक्] शिक्षा शास्त्र में निपुण। शैक्ष्यं (नपुं०) शिक्षाशील, शास्त्राभ्यासी।
अधिगम, प्रवीणता। [शिक्षा+यत्] शैध्रयं (नपुं०) [शीघ्र+ष्यञ्] स्फूति, तत्परता, शीघ्रता, सत्वरता। शैत्यं (नपुं०) [शीत+ष्यञ्] ठंडक, ठंडा। (जयो० १२/१२०)
शैत्यमुपेत्य सदाचरणेषुकलहमिते द्विजगणेऽत्र में शुक्। (वीरो० ९/४३) शैथिल्यं (नपुं०) [शिथिल+ष्यञ्]
०ढीलापन, शिथिलता, नरमी। (वीरो० २/४९)
मन्थरता, मंदता। ०कमजोरी, भीरुता। शैथल्य (वि०) शिथिलता। (वीरो० १२/९) शैलः (पुं०) [शिला+अण] गिरि, पर्वत, पहाड़।
०चट्टान, प्रस्तर खण्ड। (वीरो० २/३) शैलं (नपुं०) सुहागा, धूप, गुग्गुल।
शिलाजीत।
अंजन विशेष। शैलकं (नपुं०) [शैल+कन्] धूप, शैलेय गन्ध। शैलकटकः (पुं०) पर्वत ढलान, गिरि ढलान, पर्वत उतार। शैलकर्मन् (नपुं०) प्रस्तर कर्म, पत्थर पर उत्कीर्ण कार्य।
'सेलो पत्थरो, तम्हि घड़िदपउिमाओ सेलकम्म' (धव०
९/२४९) शैलगन्धं (नपुं०) एक चन्दन विशेष। शैलजं (नपुं) धूप, शैलयगन्ध।
शिलाजीत। शैलजा (स्त्री०) गौरी, पार्वता। शैलजात (वि०) पर्वत से उत्पन्न हुई। शैलतति (स्त्री०) पर्वत माला। (सुद० १/१३) शैलतनया (स्त्री०) गौरी, पार्वती, शिवाना।
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