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शृङ्गवत्
१०८५
शेवलं
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शृङ्गवत् (पुं०) पर्वत, गिरी। शृङ्गाट:/शृङ्गाटकः (पुं०) [शङ्गप्रधान्यं अटति-शृङ्ग+अट्+अण]
पर्वत, पहाड़।
०एक पौधा। शृङ्गागः (पुं०) शिखर प्रान्त। (वीरो० २/३३) शुङ्गाग्रसंलग्नः (वि०) शिखर के अग्र भाग से जुडी हई।
(सुद०१/३१) शृङ्गारः (पुं०) [ शृङ्ग कामोदेकमृच्छत्यनेन ऋ+अण्] प्रेम, प्रीति, प्रणय, संभोगेच्छा।
मैथुन, ललित प्रसंग।
चिह्न। शृङ्गारं (नपुं०) लौंग, लवंग।
सिंदूर। ०अदरक। शृङ्गारकः (पुं०) प्रेम। शृङ्गारकं (नपुं०) सिंदूर। शृङ्गारकृतः (नपुं०) काम भावना युक्त। शृङ्गारचेष्टा (स्त्री०) कामानुक्ति की भावना। शृङ्गारदेवी (स्त्री०) परमार वंश में उत्पन्न राजा धारावंश की ____ भामिनी। (वीरो० १५/५२) शुङ्गारभाषितं (नपुं०) प्रणयलीला की अभिव्यक्ति। प्रणयकथा। शृङ्गार भूषणं (नपुं०) सिंदूर/सुहाग। शृङ्गारयोनिः (स्त्री०) कामदेव। शृङ्गाररसः (पुं०) प्रणयरस, रस का एक भेद। शृङ्गारवादः (पुं०) सयसुरत बेला। (जयो० १५/५९) शृङ्गारविधिः (स्त्री०) प्रेमालाप। शृङ्गारवेशः (पुं०) प्रेमालाप का सहयोगी व्यक्ति। शृङ्गारित (वि०) [शृङ्गार+इतच्] प्रेमाविष्ट, प्रणयोन्मत्त।
सिंदूर से लाल।
०अलंकृत, सजा हुआ। शृङ्गारिन् (वि०) [शृङ्गार+इनि] प्रेमासक्त, प्रणयोन्मत्त शृङ्गारप्रिय। शृङ्गारिन् (पुं०) प्रणयोन्मत्त।
प्रेमी। ०प्रेमी, ०लाल, हस्ति, हाथी। ०वेशभूषा, सजावट।
सुपारी का वृक्षा ०पान का बीड़ा। शृङ्गिः (स्त्री०) सिंगी मछली। शृङ्गिकं (नपुं०) [शृङ्ग ठन्) विष विशेष।
शृङ्गिणी (स्त्री०) [शृङ्गिन् ङीष्] गाय, गऊ।
मल्लिका, मोतियां। शृङ्गिन् (वि०) [शृङ्ग+इनि] सींगों वाला।
शिखाधारी, चोटीवाला। शृङ्गिन् (पुं०) पर्वत, पहाड़, गिरि। ___हस्ति, शिव। शृङ्गी (स्त्री०) सिंगी मछली। शृङ्गीपात्त (वि०) शिखरों पर लगी हुई। (जयो० ३/७४) शृणिः (स्त्री०) [शृ+क्तिन्] अंकुश, प्रतोद। शृत (भू०क०कृ०) [शृ+क्त] पकाया हुआ, उबाला हुआ। शृध् (अक०) अपान वायु छोड़ना, पाद मारना।
आर्द्र करना, गीला करना। प्रयत्न करना, लेना, ग्रहण करना। ०अपमान करना, नकल करना। शृधु (स्त्री०) बुद्धि। गुदा। शेखरः (पुं०) [शिख्+अरन्] चूड़ा, कलगी, फूलों का गजरा।
किरीट, मुकुट।
चोरी, कूट, शिखर। ०शृंग। शेखरं (नपुं०) लवंग, लौंग। शेपः (पुं०) लिंग, पुरुष की जननेन्द्रिय।
अण्डकोष। शेफालि: (स्त्री०) [शेफाः शयनशलिनः अलयो यत्र] निर्गुण्डी,
नीलिका, नील पादप। शेमुली (स्त्री०) [शी+क्वि-शै: मोहः तं मुष्णाति-शे+मुष्+क+
ङीष् मति (जयो० २५/२७, जयो० ११/१८) बुद्धि, धी। (जयो० १६/३४) विवेक बुद्धि। (मुनि० ३३)
०प्रज्ञा, ज्ञान। (जयो० २।८१) शेल (सक०) जाना पहुंचना। शेवः (पुं०) [शुक्रपाते सति शेते-शी+वन्] ०सर्प, सांप,
विषधर। लिंग, उन्नत।
आनन्द, ०धन, सम्पत्ति, वैभव। शेवं (नपुं) लिंग।
आनन्द। शेवधिः (स्त्री०) मल्यवान, कोष। शेवलं (नपुं०) [शी+विच् तथा भूतः सन् वलते वल्+अच्]
पा
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