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शुद्धिसम्पादक
१०८४
शृङ्गवत्
समाधान, संशोधन।
शूष (सक०) पैदा करना, उत्पन्न करना। संकलकर्मोपाय।
०जन्म देना, सृजन करना। ०चमक, कान्ति।
शृकालः (पुं०) गीदड़। शुद्धिसम्पादक (वि०) निर्मल करना, स्वच्छ करना। (जयो० | शृगालः [असृजं लाति-ला+क] गीदड़। २/७७)
०ठग, धूर्त, उचक्का । शूल: (पुं०) त्रिशूल। (जयो० ८/१५)
० भीरु, दुष्ट प्रकृति वाला। कटुभाषी। शूलं (नपुं०) [शूल+क] पैना, नुकीला।
०कृष्ण। त्रिशूल, तीक्ष्ण, बी, भाला।
शृगालकेलिः (स्त्री०) एक प्रकार का बेर। अयस्क शलाका।
शृगालजम्बु (स्त्री०) ककड़ी, खीरा। ०पीड़ा, कष्ट, व्याधि।
शृगालजम्बु गठिया, जोड़ा का दर्द।
शृगालिका/शृगाली (स्त्री०) [शगाल+ङीष्) गीदड़ी, लोमड़ी। झण्डा, ध्वजा।
०पलायन, प्रत्यावर्तन। शूलकः (पुं०) [शूल+कन्] घड़ियल घोड़ा।
शृङ्खलः (पुं०)शृङ्खला (स्त्री०) [शृङ्गात् प्राधान्यात् स्खल्यते शूलग्रन्थि (स्त्री०) एक घास विशेष, दूर्बा, दूब।
अनेन] शूलघातनं (नपुं०) लोह चूर्ण।
शृङ्खला (स्त्री०) ०करधनी, कंदौरा। शूलन (वि०) शामक औषधि, वेदनाहर।
श्रेणी, परम्परा। शूलधन्वन् (वि०) शिव, महोदव।
०सांकल। (वीरो० ६/२६) शूलधर देखो ऊपर।
शृङ्खलकः (पुं०) [शृङ्खल+कन्] जंजीर। शूलधारिन् (पुं०) महादेव, शिव।
ऊंट। शूलधृक् देखो ऊपर।
शृङ्खलित (वि०) [ शृङ्खला+इतच्] जंजीर में बंधा हुआ, शूलपाणि (पुं०) शिव, महादेव।
जकड़ा हुआ। शूलभृत् (पुं०) शिव, महादेव।
पंक्तिबद्ध। (जयो०१०/५५) शूलशत्रु (पुं०) एरण्ड।
शृङ्गं (नपुं०) [शृ+गन्] सींग। शूलस्थ (वि०) सूली पर स्थित।
शिखर, चोटी, कूट। (सम्य० ११६) शूलहन्त्री (स्त्री०) एक जौ विशेष।
'ग्रीष्मे गिरेः श्रङ्गमधिष्ठित्' (वीरो० १२/३५) शलहस्तः (पुं०) भालाधारी. बीधारी।
उत्तुंग भाग, ऊंचाई। शूला (स्त्री०) [शूल+टाप्] वेश्या।
उन्नत, सर्वोत्तम, सर्वोपरि। शूलाकृतं (नपुं०) [शूल+अच्-कृ+क्त] भुना हुआ मांस। ०अग्रभाग, नोक्त। शूलिक (वि०) [शूल+ठन्] शूलधारी, त्रिशूल युक्त। सलाक ०सानु शिखर। (जयो० १५/१३) पर भुना हुआ।
शृङ्गकः (पुं०) सींग। शूलिकः (पुं०) खरगोश, शश।
०चन्द्रचूडा। शूलिकं (नपुं०) भुना हुआ मांस।
शृङ्गकं (नपुं०) बाण। शूलिन् (नपुं०) [शूलमस्त्यास्य इनि] बींधारी, शूलधारक, शृङ्गकं (नपुं०) उदर शूल से पीड़ित।
शृङ्गजः (पुं०) बाण। शूलिन् (पुं०) खरगोश। शिव, महादेव।
शृङ्गप्रहारिन् (वि०) सींग से मारने वाला। शूलिनः (पुं०) [शूल+यत्] सूली पर स्थित।
शृङ्गप्रियः (पुं०) शिव, महादेव। सलाख पर भुना हुआ।
शृङ्गमोहिन् (पुं०) चम्पक वृक्ष। शूल्यं (नपुं०) भुना हुआ मांस।
शृङ्गवत् (वि०) चोटी वाला।
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