________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
शून्यघोष
१०८३
शूल
शून्यघोष (वि०) उद्घोष का निरर्थकता। शून्यचेतना (स्त्री०) चेतनता रहित। शून्यजीव (वि०) जीवों का अभाव हुआ। शून्यज्ञान (वि०) श्रुतज्ञान का अभाव। शून्यटंकार (वि०) अतिक्षय निर्जनता। (जयो० ५/२) शून्यतप (वि०) तप की कमी। शून्यतमता (वि०) अतिशय निर्जनता। (जयो० ५/२) शून्यता (वि०) क्षणिकता, अभावपना। शून्यदान (वि०) दान का अभाव। शुन्यदासत्व (वि०) दासता का अभाव वाला। शून्यदैन्य (वि०) दीनतात से रहित। शून्यधन (वि०) धन के अभाव वाला, निर्धन। शूनयधैर्य (वि०) धीरता की कमी। शून्यनन्दभावः (पुं०) आनन्द का भाव का अन्त। शून्यपत्रं (नपुं०) ट्रॅट, सूखा वृक्षा शून्यप्रीति (वि०) प्रीति का अभाव। शून्यप्रीति (वि०) प्रेम भाव से रहित। शून्यफल (वि०) फल की निरर्थकता। शून्यभक्ति (स्त्री०) भक्ति का अभाव। शून्यभाव (वि०) निराधार परिणाम। शून्यभावना (स्त्री०) चिन्तन की कमी। शून्यभेद (वि०) भेदों से रहित, विकल्प रहित। शून्यमति (स्त्री०) बुद्धि की कमी, मूढमति, अज्ञनता। शून्यमन्त्रं (नपुं०) मन्त्र का अभाव। शून्ययोनिः (स्त्री०) उत्पत्ति रहित। शून्ययौवन (वि०) क्षीण यौवन वाला। शून्यरहित (स्त्री०) रति/राग भाव से रहित। शून्यवादः (पुं०) बौद्ध की एक विचारधारा।
०शून्यवाद नाम यमतमुपयामि' (जयो०७० ५/४३) शून्यं वदतीति शून्यवादम्। (जयो०वृ० ५/४३) मुक्तिस्तुशून्यता दृष्टे: तदर्थ शेषभावना। (प्रमाणवार्तिक
१/२५६) ०वह वाद जो ईश्वर, जीवादि की सत्ता को स्वीकार
नहीं करता है। शून्यवादिन् (पुं०) नास्तिक। ०शून्यवाद का कथन करने वाले माध्यमिक मतानुयायी
बौद्ध। शून्यशाला (स्त्री०) निर्जन स्थान, एकान्त स्थल। शून्यागार।
शून्यस्थानं (नपुं०) एकाकी स्थान। शून्यहृदयं (वि०) अन्यमनरक, व्याकुलता युक्त। शून्या (स्त्री०) [शून्य+टाप्] बांझ स्त्री। शून्यागारः (पुं०) शून्य गृह, निर्जन स्थान, एकाकी स्थल।
(मुनि० २९) ०धर्मशाला। (दयो० ८८) विपीदामीव भो भार्ये शून्यागारप्रपालकः। (दयो०८८)
०सूना मुक्त मकान, देवस्थान। शून्यायतनं (नपुं०) शून्यागार। (भक्ति०१६) (दयो० २२) शूर् (अक०) प्रबल उद्यमी होना, शक्तिशाली होना, बलिष्ठता
युक्त होना। शूर (वि०) [शूर्+अच्] वीर, योद्धा, पराक्रमी। शक्तिशाली।
(सुद०१/२७) शूरः (पुं०) शूरवीर व्यक्ति, वीर पुरुष। (जयो०वृ० ५/९१)
०सूर्य, सिंह, सूअर, ०सालवृक्ष। ०कृष्ण के दादा।
०सूर्यग्रह। (जयो० ५/९१) शूरकीट: (पुं०) तिरस्कार योग्य योद्धा। शूरणं (नपुं०) [शूर्+ल्युट्] कन्दमूल, शूरण। शूरमानं (नपुं०) अहंकार, अभिमान। शूरशिरोमणि (पुं०) वीर कुञ्जर। (जयो०वृ० १३/२७) शूर्पः (पुं०) एक माप विशेष, दो द्रोण का एक तोल। शूर्प (नपुं०) [शृ+प+ अश्च नित्] छाज। शूर्पकर्षः (पुं०) हस्ति, हाथी, करि। शूर्पणखा (स्त्री०) रावण की बहन, रावण भगिनी। शी (स्त्री०) [शूर्प+ङीष्] ०पंखा, सोपडा, सूपड़ा, छोटा
छाज। शूर्मः (पुं०) [सुष्ठः ऊर्मि अस्ति अस्याः] लोह प्रतिमा,
अयस्क मूर्ति।
घन, निहाई। शूमिः/शूमिका (स्त्री०) घन, निहाई।
अयस्क प्रतिमा। शूल (अक०) ०बीमार होना, व्याधि ग्रसित होना, कोलाहल
करना, दु:खी होना।शुद्धिः (स्त्री०) विशुद्धि, चित्त का प्रसन्न रहना। निर्मल ज्ञान और दर्शन का आविर्भाव। ०प्रायश्चित्त परिशोधन।
For Private and Personal Use Only