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शुद्धिः
१०७८
शुभतपः
शुद्धिः (स्त्री०) विशुद्धि, चित्त का प्रसन्न रहना।
निर्मल ज्ञान और दर्शन का आविर्भाव। प्रायश्चित्त परिशोधन। समाधान, संशोधन। संकलकर्मोपाय।
चमक, कान्ति। शुद्धिसम्पादक (वि०) निर्मल करना, स्वच्छ करना। (जयो०
२/७७) शुद्धोदनः (पुं०) बुद्ध के पिता, गौतम बुद्ध के पिता। शुद्धोपयोगः (पुं०) विशुद्धोपयोग,
रागादि रहित उपयोग, रागित्वमुज्झित्य तदुत्तरत्र शुद्धत्वमाप्नोति गणनाष्टमादि, सूक्ष्मस्थलान्तं विभुनान्यगादि।
(सम्य० ११०) शुध् (अक०) पवित्र होना, शुद्ध होना।
०अनूकल होना, स्पष्ट होना। ०संदेह रहित होना।
शुभ होना। शुध् (सक०) पवित्र करना, स्वच्छ करना। निर्मल करना,
प्रक्षालन करना। ०धोना, प्रमार्जन करना।
०परिशोधन करना। शुन् (सक०) जाना, पहुंचना। शुनःशेपः (पुं०) एक ऋषि विशेष। शुनकः (पुं०) [शुन्+क] भृगुवंश में उत्पन्न ऋषि।
कुत्ता, श्वान। शुनाशीरः (पुं०) उल्लू।
०इन्द्र। शुनिः (पुं०) [शुन्+इन्] कुत्ता, श्वान। शनि (स्त्री०) कुत्ती, कूकरी, कुत्तिया। (वीरो० १७/३२) शुनीरः (पुं०) [शुनी+र] कुतियों का समूह। शुन्ध्युः (स्त्री०) हवा, वायु। शुभ् (अक०) शोभित होना, सुंदर होना, अच्छा लगना।
(सुद० ३/७) (जयो० ५/२६) शुभभे शुशुभे छविरस्य साऽन्विताऽरुण, माणिक्य-सुकुण्डलोदिता। (सुद० ३/१९)
० उपयुक्त होना, योग्य होना। शुभ् (सक०) सजाना अलंकृत करना, संवारना। चमकाना। शुभ (वि०) [शुभ+क] सुंदर, रमणीय, मनोहर, यथेष्ट,
अच्छा। मांगलिक, सौभाग्यशाली, प्रसन्नता। ०भद्र, सद्गुणी, प्रमुख।
०अनुकूल। शुभं (नपुं०) प्रशस्त। (जयो० १/१८)
उद्गम स्थान। अङ्गीकृता अप्यमुनाशुभेन पर्यन्तसम्पत्तरुणोत्तमेन। (सुद० १/१८)
अच्छी चेष्टा। (सुद०वृ०६९) दृढ़ मजबूत। (जयो० ३/३९) कल्याण। (जयो० २/१५८) ०पुण्य, मंगल।
सद्भावना। शुभकर (वि०) कल्याणकारी। आनंदवर्धक। शुभंकर देखो ऊपर। शुभगः (पुं०) सुंदर, मनोहर। (सुद० १०४) शुभगेहिनी (स्त्री०) उत्तम गृहिणी। शुभगेहिनी-नीति (स्त्री०) अच्छी गहिणी की नीति। (सुद०
१०४) सुभगे शुभगेहिनीतिसत्समयः
शेषमयः स्वयं निशः। (सुद० १०४) शुभग्रहः (पुं०) अनुकूल ग्रह। शुभचर (वि०) अच्छा आचरण करने वाला। शुभचर्या (स्त्री०) शुभ राग से युक्त चारित्र। अहरतादि के
प्रति गुणानुराग। शुभचारित्रं (नपुं०) प्रशस्तत्ररित्र। शुभचन्द्रः (पुं०) आचार्य शुभचन्द्र, जिन्होंने ज्ञानार्णव जैसे
योगशास्त्र की रचना की। (जयो० २८/४८) ज्ञानार्णवोदयायासीदमुष्य शुभचन्द्रता।
योगतत्त्व समग्रत्वभागजायत सर्वतः। (जयो० २८/४८) शभचन्द्रसिद्धांतः (पुं०) ज्ञानार्णवकर्ता। (वीरो० ३८) शुभतत्त्वं (नपुं०) यथार्थ तत्त्व। शुभ-तत्त्वार्थ (नपुं०) पदार्थों के अर्थ की अनुकूलता। (सुद०) शुभतपः (पुं०) श्रेष्ठतप।
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