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शुण्डाल:
१०७७
शुद्धस्वभावः
शुण्डाल: (पुं०) हस्ति, हाथी। शुण्डावत् (पुं०) हस्ति, हाथी। (जयो० ८/६७) शुण्डिका (स्त्री०) [शुण्डा+कन्+टाप्] हस्ति, हाथी, सूंड। शुण्डिन् (पु०) [शुण्ड्+णिनि] कलाल।
०हस्ति, हाथी, बाज। शुण्डि-शुण्डः (पुं०) हस्ति सूंड, हाथी की सुंड। (जयो०
१/२५) शुद्ध (भू०क०कृ०) [शुव्+क्त]
विमल, निर्मल, स्वच्छ।
रागांश रहित। (सम्य० १०९) किन्तुपयोगो नहि शुद्ध एव
प्राहेति सम्यग् जिनराजदेवः। ०श्वेतरूप, कलुषतारहित, मात्सर्यादिरहित, पारदर्शकस्वभाव। (जयो०१९/०३) पुनीत, पवित्र, निष्कलंक। यथार्थ, वास्तविक, सही, स्वच्छ (जयो० २४/८२) विशुद्ध, श्रेष्ठतम, सित। (जयो०व० ३/२९) ०वीतराग स्वरूप। (सम्य० ११९) अर्थ एवं शब्दगत दोषों से रहित।
स्पष्ट। (जयो०२/१५) शुद्धकोपहितः (पुं०) संसर्ग से रहित अन्नादि। शुद्धचेतना (स्त्री०) ज्ञान का अनुभव।
जीवस्य ज्ञानानुभूतिलक्षणा शुद्धचेतना।( पंचा० अमृ०
शुद्धपरिहारः (पुं०) पंच महाव्रत रूप क्रिया। शुद्धपर्यायः (पुं०) स्पष्ट पर्याय। शुद्धप्रज्ञा (स्त्री०) श्रेष्ठ बुद्धि। शुद्धभावः (पुं०) विशुद्धभाव, आत्मगत परिणाम। (सुद०
२/९) श्री श्रेष्ठिनो मानसराजहंसीव। शुद्धभावा खलु वाचि वंशी।। (सुद० २/९)
हेयोपादेय से रहित परमोदासीन भाव। (सम्य०१०८) शुद्ध भावना (स्त्री०) उत्तम भावना, यथेष्ठ चिन्तन।
०पवित्राशय-सा शुद्ध भावनया पवित्राशयेन सहिता
बुद्धिनाम्नी साजी। (जयो०६/४) शुद्धमतिः (स्त्री०) निर्दोष बुद्धि।। शुद्धलेश्या (स्त्री०) विशुद्धतेश्या, शुक्ललेश्या। (सम्य० ११५) शुद्ध वचनं (नपुं०) पुनीत वचन, मधुर वचन, पवित्रवाणी। शुद्ध वाचनोच्चारणं (नपुं०) शुद्धार्थ प्रतिपादक वचन रूप
कथन। (जयो०वृ० २/५२) शुद्धवर्णः (पुं०) शुद्धजाति। (जयो० २४/१२५) शुद्धवर्णका (स्त्री०) स्वच्छ मणि, श्रेष्ठ भाषा। (जयो० २४/८२)
'शुद्ध स्वच्छो वर्ण एव वर्णको येषां ते'
(जयो०७० २४/८२) शुद्धसंग्रहः (पुं०) सत्ता सामान्य का विषय-शुद्ध संग्रहनय। शुद्धसंप्रयोगः (पुं०) परमेष्ठियों के प्रति भक्ति भाव। शुद्ध सर्पिषः (पुं०) शुद्ध घी, ताजा घी।
शुद्ध सर्दिषः कर्पूरस्याप्युत
माणिक्यकलायाः। (सुद० ७२) शुद्ध स्वभावः (पुं०) विशुद्ध स्वभाव, आत्म ज्ञान से समन्वित
स्वभाव। शुद्धात्मन् (वि०) समस्त दोषों से रहित आत्मा।
सुद्धो जीव सहावो जो रहिदो दव्वभावकम्मेहि सो सुद्धणिच्छवादो समासिओ शुद्धणाणीहिं।। (जैन वृ० १०६३) निकल परमात्मन्।
(सम्य० १०८) शुद्धात्मस्वरूपः (पुं०) शुद्ध आत्मा का स्वरूप। शुद्धस्वभावः (पुं०) विशुद्ध आत्मा का परिणाम।
वृ०१)
शद्धचेता (स्त्री०) शुद्ध चेतना, ज्ञानजन्य आत्मा। (वीरो०
१४/३५) शुद्धजाति (स्त्री०) उत्तम जाति। शुद्धजीविन् (वि०) सुजीवन वाला, अच्छे जीवन वाला।
(जयो०वृ० २/१०) शुद्धत्व (वि०) विशुद्धत्व, रागदि रहित पना। (सम्य० ११०) शुद्धद्रव्यं (नपुं०) यथार्थ द्रव्य, सही पदार्थ। शुद्धद्रव्यार्थिकनयः (पुं०) कर्मोपाधिरहित।
०द्रव्य की प्रमुखता करने वाला नय। शुद्धध्यानं (नपुं०) आत्म स्वरूप का ध्यान, ०आत्म ज्ञान
की प्राप्ति। शुद्धनयः (पुं०) द्रव्य की मूल, विशेषता वाला पय, शुद्धनीतिः (म्त्री०) श्रेष्ठतम नीति। शुद्धपदं (नपुं०) विशिष्ट पद, अच्छा स्थान।
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