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शुगस्थानं
१०७६
शुण्डारः
प्रकाश, कान्ति।
शयनीयोऽसि किलेति क्षायितः। ०अग्नि।
(सुद०३/२२) शुगस्थानं (नपुं०) बाणासन।
शुचिरश्मिन् (पुं०) चन्द्र, शशि। (जयो० ११/४९) शुङ्गः (पुं०) बड़ का पेड़, पेबंदी बेर।
शुचिराट (पुं०) उत्तम राजा। (सुद० १००) शुङ्गा (स्त्री०) [शुङ्ग+टाप्] जौ की बाल, किशारु।
शुचिर्वाक्यं (नपुं०) हर्षयुक्त वाक्य, मन्दहास युक्त वचन। शुङ्गिन् (पुं०) [शुङ्गा+इनि] वट वृक्ष। बड़ का पेड़।
'शुचिरवदाता चेति मदीयमिदं वाक्यमस्तीति' (जयो० शुच् (अक०) खिन्न होना, दु:खी होना। शोक करना, विलाप
११/५३) करना। (जयो० ५/२३)
शुचिवारि (नपुं०) निर्मल जल। (जयो० १२/३२) ०पछताना, खेद करना।
पुनीतवाक्य। शुच्शुचा (स्त्री०) शोक, संताप। (सुद० १/४१)
शुचिव्रत (वि०) सद्गुणी, पुण्यात्मा। ०कष्ट, दु:ख, रंज।
शुचिशर्वरी (स्त्री०) चन्द्र से युक्त चांदनी रात। शुचमापन्न (वि०) दुःखी, कष्ट को प्राप्त। (जयो०७० १२/३) शुचिस् (नपुं०) प्रकाश, कान्ति। (सुद० ३/१६) शुचि (स्त्री०) सफेद, धवल, शुभ्र।
शुचिसन्निवेशः (पुं०) शुचिता का प्रवेश, पवित्रता का स्थान। शुचिनिशानमुदेति अदो बल्। (समु० ७/२)
(सुद० १/१५) विमल, विशुद्ध, निर्मल। (जयो० १/६)
शुचिस्मित (वि०) मधुर मुस्कान। निर्दोष, विशुद्ध। (जयो० २/८०)
शुचिहास (वि०) प्रेमस्मित, प्रेमपूर्ण हंसी। (जयो० १६/२०) सम्प्रपश्यति हि किन्न
शुचेव-चिन्तयेव (जयो० ) साधुचिद्वारिचारितमुदूखलं शुचि। (जयो० २/८०) शुच्य (सक०) स्नान करना, नहाना। निष्कलंक, निष्पाप, पवित्रात्मा। सद्गुणी।
०प्रक्षालन करना, धोना। पुनीत, पूत, सच्चा, निश्छल।
निचोड़ना, निकालना। ०मानस-शुद्ध।
अर्क सींचना। ०भद्रता, शुद्धता, यथार्थता।
शटीरः (पुं०) वीर, योद्धा। शुचिः (पुं०) सूर्य चन्द्र।
०नायक। ०अग्नि।
शुल् (अक०) लड़खड़ाना, लंगड़ा होना। शचिचित्तं (नपुं०) विशुद्ध चित्त। (समु० २/१६)
०बाधा डाला जाना। शुचिचित्रकः (पुं०) उत्तम चित्र, अच्छा चित्र। (जयो०१०/१०) | शुण्ठ् (सक०) पवित्र करना, शुद्ध करना। स्वच्छ-साफ एवं स्पष्ट चित्र।
सूखना। शचित्व (वि०) निर्दोषत्व, निर्मलत्व। (जयो० ४/६५) शुण्ठिः (स्त्री०) सोंठ, सूखा अदरक। (जयो०वृ० २८/२९) __०पवित्रत्व, पवित्रता। (जयो० १९/४४)
शुष्ठः (पुं०) [शुण्ड्+अच्] हाथी की सूंड। शुचिनाम्बरं (नपुं०) स्वच्छ वस्त्र-शुचिना पवित्रेण स्वच्छेन
उन्मत्त हाथी का मद। चाम्बरेण वस्त्रेण। (जयो०वृ० १९/११)
शुण्डकः (पुं०) शराब सींचने वाला कलाल शुचिनिशानं (नपुं०) सफेद निशान, सफेदी युक्त बालों के ०वाद्यमन्त्र। चिह्न। (समु० ७/२)
शुण्डा (स्त्री०) हाथी की सूंड। शुचिपक्षः (पुं०) शुक्लपक्ष। (वीरो० ४/२)
मद्यालय, मद्यपान गृह, मधुशाला। शुचिपात्रं (नपुं०) स्वच्छपात्र। (जयो० १२/११५)
वेश्या, रण्डी, कुटनी, दूती। शुचिबोधः (पुं०) उत्तम बोध, अच्छा ज्ञान। (सुद० ३/२२) ०कमन नाली सम्यग्ज्ञान।
शुण्डारः (वि०) शराब खींचने वाला, कलाल। शुचिबोधवदायतेऽन्वितः
हाथी की सूंड।
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