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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शुक् १०७५ शुक्षि शुक् (सक०) जाना, पहुंचना। शुक्रकर (वि०) वीर्य सम्बन्धी। शुकः (पुं०) [शुक्+क] तोता। शुक्रल (वि०) वीर्य सम्बन्धी। शुक्र/वीर्य बढ़ाने वाला। सिर तरु, कीर। (जयो० १/६१) शुक्रवार:/शुक्रवासरः (पुं०) शुक्रवार, जुमा। शुकं (नपुं०) वस्त्र, कपड़ा। शुक्रशिष्यः (पुं०) राक्षस। लोहे की टाप। शुक्ल (वि०) [शुच्+लुक्] उज्ज्वल, स्वच्छ, सफेद, विशुद्ध। ०पगड़ी, शिरस्त्राण। धवल। (जयो० ३/११४) शुकतरु (पुं०) सिरस वृक्ष। शुक्ल: (पुं०) धवल, शुभ्र। शुकद्रुमः (पुं०) सिरस वृक्ष। __०शुक्लपक्ष। सुदी पक्षा (जयो० १/१०१) शुकदेव मुनिः (पुं०) शुकदेव नामक साधु। (जयो०वृ० १/६१) शक्लं (नपुं०) रजत, चांदी, वर्ण। (जयो०७० ३/८०) शुकनास (वि०) तोते जैसी नाक वाला। ०ध्यान, निष्कषाय। (जयो० ३/११४) शुकनासिका (स्त्री०) तोते जैसी नाक। शुक्ल ध्यान, शुक्ललेश्या। (भक्ति० ३२) शुकनासोपदेशः (पुं०) एक नाम विशेष। शुक्लकण्ठकः (पुं०) सद्गुणी, शुद्धाचारी। शुकसन्निचयः (पुं०) वीरसमूह। (जयो० १३/६०) शुक्लकुष्ठं (नपुं०) सफेद कोढ़। शुक्त (भू०क०कृ०) [शुंच्+क्त] उज्ज्वल, स्वच्छ, साफ, शुक्लधातु (पुं०) सफेद मिट्टी। विशुद्ध। शुक्लता (वि०) धवलीभाव वाला। (जयो० १५/६९) ०अम्ल, खट्टा। शुक्लत्व (वि०) श्वेतत्व, शुभ्रता। (जयो० १/२५) ०विशुद्धत्व। कर्कश, खरखरा, कड़ा, कठोर। ०परित्यक्त, छोड़ा गया। शुक्लध्यानं (नपुं०) शुचिगुण का योग, शुचित्व पूर्वक ध्यान। चार ध्यानों में तृतीय ध्यान (भक्ति० ३२) ०संयुक्त. जुड़ा हुआ। ०कषायमलविच्छेद, निष्कषाय भाव। शुक्तं (नपुं०) मांस। ०कांजी। ०मलरहितात्मपरिणामोद्भवं शुक्लम्। ०खट्टा तरल पदार्थ। शुक्लपक्षः (पुं०) मास का शुभ्रपक्ष, सुदी पक्ष, जिस पक्ष में शुक्तिः (स्त्री०) [शुच्+क्तिन] सीप। (सुद० २/४२) चन्द्र क्रमश: बढ़ता हुआ पूर्णिमा/पूनम तक पहुंचता है। मोक्तिकोत्पादिकसीप। (जयो० ५/१०२) (समु० १/३०) ०पुट्ठा। शंख, घोड़े की छाती। कषायमलविच्छेद निष्कषायभाव। शुक्तिका (स्त्री०) [शुक्ति कनृ+टाप्] सीपी। मोती बनने ०मलरहितात्मपरिणामोद्भवंशुक्लम्। की सीप। (सुद०८४) ०दो इन्द्रिय जलचर जीव। शुक्ललेश्या (स्त्री०) राग-द्वेष एवं मोह रहित होना, छह शुक्तिकोदरः (पुं०) सीप। (दयो० २/७) लेश्याओं में अन्तिम लेश्या। शुक्तिजं (नपुं०) मोती, मुक्ताफल। मौक्तिक। शुक्तेर्जातं शुक्लवर्णः (पुं०) समुज्ज्वल, स्वच्छवर्ण। (जयो०१० ३/११२) शुक्तिज। (जयो० ९/६०) शुक्लवस्त्रं (नपुं०) श्वेतवस्त्र। शुक्तिपुटं (नपुं०) सीप का पुट, सीप का खुला हुआ मुंह। शुक्लवायसः (पुं०) सारस। शुक्तिपेक्षी (स्त्री०) सीप पुट। शुक्लस्थानं (नपुं०) शुभ्रस्थान। शुक्तिमुक्ता (स्त्री०) सीप का मोती। (जयो० ११/६०) शुक्ला (स्त्री०) [शुक्ल+टाप्] सरस्वती। शुक्तिवधूः (स्त्री०) मोती का सीप। काकोली का पौधा। शुक्तिबीजं (नपुं०) मोती। श्वेतवर्णा स्त्री। शुक्रः (पुं०) शुक्रग्रह। ०ज्येष्ठमास। शुक्लिमन् (पुं०) [शुक्ल+इमनिच्] सफेदी, धवलता, स्वच्छता। अग्नि । शुक्लीकृत् (वि०) धवलता करने वाला। (जयो० १/१५) शुक्र (नपुं०) वीर्य। शुक्लैकवस्त्रं (नपुं०) एक मात्र शुभ्र वस्त्र। (सुद० ११५) ०वस्तु का निचोड़, सत्। मज्जा से उत्पन्न वीर्य। | शुक्षि (स्त्री०) [शुस्+क्सि] हवा, वायु। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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