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शिशिरकालः
१०७२
शीकरः
शिशिरकालः (पुं०) सर्दी के समय।
मुख्य, प्रमुख, प्रधान। (सुद० १२५) शिशिरकिरणः (पुं०) चंद्रमा, शशि।
उत्तम, योग्य, सज्जन, पूज्य। (समु० १/२१) शिशिरदीधितिः (स्त्री०) चन्द्र, शशि।
शिष्टः (पुं०) विशिष्ट व्यक्ति, सज्जन पुरुष। सभ्यजन। शिशिररश्मिः (स्त्री०) चन्द्र, शशि।
(जयो०वृ० १/३२) योग्य पुरुष (जयो०१२/१४२) 'किं शिशिरात्ययः (पुं०) सर्दी का अन्त, वसंत ऋतु।
वावशिष्टमिह शिष्टसमीक्षणीयम्' (जयो० १२/१४२) शिशिरापगमः (पुं०) सर्दी का अंत।
शिष्टसभा (स्त्री०) विद्वत्सभा, सज्जन सभा। राज्यसभा। शशिरांशुः (पुं०) चन्द्र, शशि। (जयो० १०/९)
शिष्टस्तवनं (नपुं०) श्रेष्ठ स्तवन। (समु० ४/४) शिशिरोचित (वि०) अनुष्णोचित। (वीरो० १५/७४, वीरो०९/२०) शिष्टाचारः (पुं०) सच्चरित्र, उत्तम आचरण। (जयो०वृ०२/४०) शिशुः (पुं०) [शो+कु-सान्वद्भावः, द्वित्वम्] (दयो०१७, सम्पादनीयानीति (जयो०वृ० ३/२२) (जयो०वृ०७/४७) भक्ति०१६)।
शिष्टात्मन् (पुं०) विशिष्ट व्यक्ति। (समु० १/३८) बालक।
शिष्टिः (स्त्री०) [शासक्तिन] राज्य, शासन। ०पुत्र। (जयो० १/५५) बाल। (जयो० २/३०)
आज्ञा, आदेश। छोटा बच्चा (हित० सं०४९) भान्ति क्रीडनकतो यतः ०सजा, दण्ड। शिशोः (जयो० २/३०)
शिष्यः (पुं०) [शास्+क्यप्] छात्र, चेला, विद्यार्थी। ०वत्स, बछड़ा, छौना।
शिष्यता (वि०) शिष्यत्व, शिष्यपना। ०स्तमंप। (जयो० १७/१५)
एवं पर्यटतोऽमुष्य देशं देशं जिनेशिनः। शिशुकः (पुं०) लघुतर बालक। (वीरो० १/८) (सुद० १/५) शिष्यतां जगृहु पा बहवश्चेतरे जनाः।। (वीरो० १५/१५) शिशुक्रन्दः (पुं०) बच्चे का रुदन।
शिष्यत्व (वि०) शिष्यपना। (वीरो०१५/४६) शिशुक्रन्दनं (नपुं०) बच्चे का रुदन।।
शिष्यपरम्परा (स्त्री०) शिष्यपना की विशेषता। (जयो० २/४२) शिशुपालः (पुं०) दमघोष का पुत्र, चेदि देश के राजा का छात्रपने की योग्यता। पुत्र।
शिष्यभावः (पुं०) छात्रभाव, विद्यार्थी रूप। (जयो०वृ० १/५५) शिशुभावः (पुं०) बाल रूप। (जयो० ११/१२)
शिष्यशिष्टिः (स्त्री०) छात्र अनुसंधान, छात्रचयन। शिशुमती (स्त्री०) छोटी बच्ची। (मुनि० ११)
शिष्यसंचालनं (नपुं०) छात्रानुशासन। शिशमारः (पुं०) संस नामक जन्तु।
शिष्या (स्त्री०) छात्रा (वीरो०१५/३८) शिशुवाहकः (पुं०) जंगली बकरा।
जाकियव्वे सत्तरस-नागार्जुनस्य भामिनी। शिश्नं (नपुं०) पुरुष की जननेन्द्रिय।
श्रीशुभचन्द्रसिद्धान्त-देवशिष्या बभूव या। (वीरो० १५/३८) शिश्विदान (वि०) [श्वित्+सन्+आनच्] सद्गुणी, पुण्यात्मा। | शी (अक०) शयन करना, आराम करना, लेटना, सोना, दुष्ट, पापी।
विश्राम करना। दर्भे शयानं (जयोवृ० ११/५०) दृग्यामितः शिष् (सक०) चोट पहुंचाना, मार डालना
पञ्चशरः स्मरोऽतिशेते विधिं तौ सफलीकरोति (जयो० बचा देना।
११/६५) 'क्वचित् स शेतेऽथ शुचेव तूर्णम्' (वीरो०१२/१७) शिष्ट (भू०क०कृ०) [शास्+क्त] छोड़ा हुआ, बचा हुआ। शी (स्त्री०) शयन, विश्राम, सोना। शान्ति। शिष्टाचार। (जयो० २/४०)
परस्त्री-शी स्त्रीषु स्व-परस्त्रीषु इति वि० (जयो० १६/६६) प्रशिक्षित, शिक्षित, अनुशिष्ट।
समान। (सुद० १/४३) अवशिष्ट, बाकी, बचा हुआ।
शीक् (सक०) तर करना, छिड़कना। प्रशंसनीय। (जयो० ३/२३)
आर्द करना, गीला करना। बुद्धिमान्, विद्वान्।
शीकरः (पुं०) [शीक्+अरन्] बौछार, तुषार। ०सभ्य। (जयो० १४/७)
जलकण, वृष्टिकण। (जयो०१३/१९) जलांश (वीरो० शिष्य, नम्र।
४/६६)
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