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शिवकः
१०७१
शिशिरकरः
१८४७)
शिवकः (पुं०) [शिव+कन्] खूटा। शिवकर (वि०) आनन्दप्रद, कल्याणकारक। शिवकीर्तनः (पुं०) भंगी।। शिवकेलिः (स्त्री०) जलकेलि। जलक्रीडाशिवस्य जलस्य या
केलि: क्रीडा। शिवगतिः (स्त्री०) मोक्ष गति। शिवघोषः (पुं०) शिवघोष नामक मुनि। शिवता (वि०) कल्याण। (सम्य० ३७) (जयो०२३/८८) शिवतातिः (स्त्री०) कल्याण परम्परा। (जयो० १२/५) (सुद०
१२३) भूरानन्दस्येयमतोऽन्या काऽस्ति जगति खलु शिवतातिः। शिवद्रमः (पुं०) बेल का वृक्षा (सुद० १२३) शिवधर्मजः (पुं०) मंगलग्रह। शिवधवनु (पुं०) पारा। शिवध्वन् (नपुं०) मोक्षमार्ग। (भक्ति० ४५) शिवपत्तनं (नपुं०) मोक्ष नगर, मुक्तिपुरी। (समु० ८/४१) शिवपक्षा (स्त्री०) कल्याण पथ का यात्री। (जयो० ६/२) शिवपुरं (नपुं०) मोक्षपुर, मुक्तिनगर। शिवपुरी (स्त्री०) मुक्तिपुरी। शिवपुराणं (नपुं०) अठारह पुराणों में एक पुराण शिवपुराण।
(दयो० ३१) शिवपूः (स्त्री०) काशी, मुक्ति, वाराणसी। शिवपौरुस (पुं०) चरम पुरुषार्थः (जयो० १२/२ (जयो०
३/११४) मोक्षा . शिवप्रापणं (नपु०) कल्याण प्राप्ति। (मुनि० ३१) शिवप्रियः (पुं०) धतूरा।
०स्फटिक। शिवमल्लकः (पुं०) अर्जुनवृक्ष। शिवमा (स्त्री०) मोक्षलक्ष्मी, सुख लक्ष्मी। शिवराजधानी (स्त्री०) वाराणसी, बनारस, काशी। शिवराज्यपदं (नपुं०) मोक्षपद। (वीरो० ४/५२) शिवरात्रिः (स्त्री०) फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि। शिवलिङ्गं (नपुं०) शिव पिण्ड। शिवलोकः (पुं०) कल्याणगृह, सुख स्थान, सुखागार। शिववल्लभ (पुं०) आम्र तरु। शिववाहनः (पुं०) सांड, वृषभ, नन्दी। शिवशेखरः (पुं०) चंद्र, धतूरा। शिवकी (स्त्री०) मोक्षलक्ष्मी। (सुद० ३/१९) 'सुमचया रुचया
च शिवश्रिया इव दृशां नभसो विभवाः प्रियाः। (जयो० १/३३)
शिवा (स्त्री०) उज्जैनी नगरी के राजा प्रद्योत की प्रिया
(वीरो०१५/२३) ०भंगाल, गीदड़। ०पार्वती।
आंवला, दूर्वाघास। दूव।
०हल्दी । शिवाक्ष (नपुं०) रुद्राक्षा शिवानी (स्त्री०) [शिव+ङीप] पार्वती, गौरी। शिवाप्तिः (स्त्री०) शिव प्राप्ति, कल्याण की प्राप्ति। (सुद०
१/३५) शिवाभ्युपं (नपुं०) कल्याण, भला। (समु० २/६) शिवायनं (नपुं०) शिवपथ, मोक्षमार्ग। (सुद० ८३) शिवारातिः (पुं०) कुत्ता, श्वान। शिवारि (पुं०) शिव का शत्रु। (जयो० १२/२) शिवारुत (वि०) गीदड़ के रोने की आवाज। शिवार्यः (पुं०) भगवती आराधना के रचयिता शिवार्य। (जयो०
२८/४७)
मोक्षनिमित्त, पार्वतीनिमित्त। (जयो०७० २८/४७) शिविका (स्त्री०) डोली, पालकी। (जयो० ६/९०) शिविकावंशः (पुं०) पालकी का मानदण्ड। (जयो०६/४०)
डोले के बांस। 'अंसोपरिस्थशिविकावंशैर्मितमिङ्गितञ्च वारायाः'
(जयो० ६/४०) शिविकावाहकः (पुं०) पालकी वाहक, कहार, वोढाजन।
(जयो० ६/९०)
न्यान्यजन। (जयो० ६/२६) शिविरः (पुं०) तम्बू, पटभवन। शिविराणि पटभवनानि। (जयो०
१३/६५) शिविरप्रगुणः (पुं०) तम्बुओं का रज्जूबल।
०तम्बुओं की सरलता-शिविराणामुपकार्याणां प्रगुणउपचय
स्तस्य रज्जूवलस्या (जयो० १३/६७) शिशिञ्ज (वि०) संशब्दित। (जयो० १७/७०) शिशिर (वि०) [शश+किरच्+नि] शीतल, ठंडा, सर्द। भूगर्भमन्ये
शिशिरं विशन्ति (वीरो० १२/१४) शिशिरं (नपुं०) ओस, तुषार, बर्फ, पाला।
सर्दी, सर्दी का मौसम।
ठंडक, शीतलता। शिशिरकरः (पुं०) चन्द्रमा, शशि।
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