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शिलातलं
१०७०
शिवं
शिलातलं (नपुं०) प्रस्तरखण्ड। (जयो० २४/३८)
हस्तादि कौशलं शिल्पमाहवस्तुविभावने। शिलात्मकं (नपुं०) लोहा।
शूद्राणां वृत्तये साधु, साधनं स महीशिता।। शिलादद्गु (पुं०) शिलाजीत।
(हित०सं०पृ०९) शिलाधातुः (पुं०) खड़िया मिट्टी।
शिल्पकर्मन् (नपुं०) दस्तकारी, यान्त्रिक कला, कारीगर। शिलापट्टः (पु०) पत्थर की शिला, एक सा चौकोर प्रस्तर। शिल्पकारः (पुं०) दस्तकार, कलाविंद। शिलापुत्र (पुं०) सिल, मशाला पीसने की सिल।
शिल्पकारकः (पुं०) दस्तकार, कारीगर। कलाकार। कलाविद, शिलाप्रतिकृतिः (स्त्री०) प्रस्तरमूर्ति।
विद्यानिपुण। शिलाफलकं (नपुं०) प्रस्तर सिल।
शिल्पकारिन् (पुं०) शिल्पकार, कलाकार। शिलाभवं (नपुं०) शैलेयगन्धद्रव्य।
शिल्पकृत् (वि०) निर्मापक। (जयो० १७/५२) शिलाभेदः (पुं०) छैनो, टांकी।
शिल्पगत (वि०) दस्तकारी को प्राप्त हुआ। शिलामूलः (पुं०) प्रस्तर भाग। (जयो० १७/४७) शिलापट्ट। शिल्पशाला (स्त्री०) शिल्प विद्या केन्द्र, शिल्पग्रह. निर्माणकला शिलारसः (पुं०) धूप। शैलेयगन्धद्रव्य।
_ केंद्र। (जयो०८/३७) शिलावल्कलं (नपुं०) शिला पर जमी हुई काई।
शिल्पशास्त्रं (नपुं०) शिल्पविज्ञान, वास्तुकला, दस्तकारी आदि शिलावृष्टिः (स्त्री०) प्रस्तर वर्षा।
का शास्त्र। यान्त्रिक एवं ललितकला आदि का ग्रन्थ। शिलावेश्मन् (नपुं०) गुफा, दरार।
०अभियान्त्रिक ग्रन्थ। शिलाव्याधिः (स्त्री०) शिलाजीत।
शिल्पिन् (वि०) शिल्प+इनि] दस्तकारी, कलाकारी, कारीगरी। शिलासति (स्त्री०) शिलासंचालन-शिलायाः श्रुतिश्चालनं भवति कारू। (जयो०वृ० २/१११) (जयो० ५/५८)
शिल्पिन् (पुं०) विधाता, सृष्टा। (वीरो०वृ० ३/२९) शिलिः (स्त्री०) भुर्जवृक्षा
शिल्पिजन: (पुं०) शूद्रजन। यस्यां द्विजो बाहुज एव नासाद्वैश्योऽपि शिली (स्त्री०) [शिलि+ङीष] चौखट के नीचे की लकड़ी। वा शिल्पिजन: शुभाशी। (वीरो० १४/४८) भूकीट।
शिव (वि०) [श्यति पापं-शो+वन] शुभ, मांगलिक, श्रेष्ठ केंचुआ।
(जयो० १२/१) ०भाला।
स्वस्थ्य, प्रसन्न, समृद्ध, सौभाग्यशाली। ०बाण, गण्डूपद, मेंढकी।
शिवः (पुं०) महादेव, शंकर, आदिनाथ। नेमिनाथ, शिवोऽथैव शिलीमुखः (पुं०) भ्रमर, भौंरा।
नाम चन्द्रस्य वामन। (दयो० २९) ०बाण। (जयो० ८/१९) (जयो० १/९२, जयो० १४/५०) रुद्र। (वीरो० १७/२१) शिलीन्ध्रः (पुं०) [शिली धरति-धृ+क] मछली। ०वृक्ष विशेष। ०हस्तिनापुर के एक राजा का नाम। (वीरो० १५/२०) शिलीन्धं (नपुं०) कुकुरमुत्ता।
हस्तमागाधिपः शिवः। ___०सांप की छतरी। ०ओला।
वेग। शिलीन्ध्रकं (नपुं०) [शिलीन्ध्र-कन्] कुकुरमुत्ता, खुंद।
मोक्ष, मुक्ति। ०सांप की छतरी।
०कल्याण। शिलीन्ध्री (स्त्री०) [शिलीन्ध्र+ङीष्] मृत्तिका, मिट्टी।
गुग्गुल, पारा, काला धतूरा। शिलोच्चयः (पुं०) प्रस्तरखण्ड, प्रस्तरसमूह। (जयो० २४/४४) | शिवं (नपुं०) कल्याण, समृद्धि, मंगल, आनन्द, परमानन्द, शिलोत्तानिभ (वि०) प्रस्तर सदृश। (जाये० १७/५२)
मोक्ष। 'शिवं मोक्षे सुखे जले' इति विश्वलोचन (जयो०व० शिल्पं (नपुं०) [शिल्+पक्] कला, ललितकला, यान्त्रिक, १४/४६) कला।
सेंधा नमक। कारीगरी, कुशलता, पटुता। (जयो० ११/३७)
शुद्ध सोहागा। ०कृत्य, अनुष्ठान।
०जल। (जयो०वृ० ४/७९)
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