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शिखावृक्षः
१०६८
शिथिल
शिखावृक्षः (पुं०) दीपाधार, दीवट।
शिक्षु (सक०) टनटनाना, झनझनाना। शिखावृद्धिः (स्त्री०) बढ़ने वाला ब्याज।
०खड़खड़ाना। शिखावृत (वि०) शिखाभिर्वृक्षशाखाभिर्वृत-शाखाओं से | शिञ्जः (पुं०) [शिञ्ज+घञ्] टंकार, झनझनाहट।
आच्छादित वृक्षा (जयो०१३/६८) ०शाखा युक्त तरु। | शिञ्जञ्जिका (स्त्री०) कटिबंध, करधनी, कंदौरा। शिखिन् (वि०) [शिखा अस्त्यस्य इनि] शिखाधारी, चोटी | शिञ्जा (स्त्री०) [शिञ्ज+अ+टाप्] टंका, झंकार। युक्त, कलगीदार।
____०धनुष की डोरी। घमण्डी।
शिञ्जित (भू०क०कृ०) [शिञ्ज+क्त] टंकृत, झंकृत, ध्वन शिखिन् (पुं०) अग्नि, आग।
युक्त। मुर्गा।
शिञ्जिनी (स्त्री०) [शिञ्ज+णिनि+ङीप्] धनुष की डोरी। ०बाण। मयूर। (जयो० १२/५१)
____झांवर, नुपूर। ०वृक्ष, ०दीपक।
शिट् (सक०) घृणा करना, तिरस्कार करना, तुच्छ समझना। सांडा०अश्व।
शिडी (स्त्री०) उन्मत्त-शिडीति देश भाषायाम् (जयो०वृ० ०पर्वत। ब्राह्मण।
८/१५) साधु, केतु, चित्रक वृक्षा
शित (भू०क०कृ०) [शो+क्त] तेज किया हुआ, पैना किया शिखिकण्ठः (पुं०) तूतिया, नीला थोथा।
हुआ। शिखिग्रीषं (नपुं०) नीला थोथा।
०पतला, कृश, दुबला। शिखिजनः (पुं०) मयूरवर्ग। हिन्दू लोग। (जयो० ४/६७) कलुषित। (जयो० ९/६६) शिखिध्वजः (पुं०) कार्तिकेय। ०धुआं।
०क्षीण, बलहीन, दुर्बल। शिखिपत्रं (नपुं०) मोरपंख। (दयो० २५) (जयो० १३/४९) ०श्यामल। (जयो० ७/१०४) शिखिपुच्छं (नपुं०) ०दुम, मोर पुंच्छ।
शितद् (स्त्री०) सतलज नदी। शिखियूपः (पुं०) बारह सिंगा।
शिताग्रः (पुं०) कंटक, कांटा। शिखिवर्धकः (पुं०) लौकी-गोल लोकी।
शिति (स्त्री०) भुर्जवृक्षा शिखिवाहनः (पुं०) कार्तिकेय।
शिति (वि०) [शि+क्तिच्] ०श्वेत, शुभ्र, धवल। शिखिशिखा (स्त्री०) ज्वाला। अग्नि लौ। ०दीपक लौ। शितिकण्डः (पुं०) शिव, शंकर। ०मयूरकलगी।
०जल कुक्कुट। शिग्रु (स्त्री०) सागभाजी।
शितिकृत (वि०) श्यामलता। (जयो०१५/११) ०सहजन तरु।
शितिछदः (पुं०) हंसा शिव (सक०) जाना, पहुंचना।
शितिपक्षः (पुं०) हंस। प्राप्त होना।
शितिरत्नं (नपुं०) नीलम। शिङ्घ (सक०) सूंघना, गन्ध लेना।
शितिवायसः (पुं०) बलराम। शिवाण: (पुं०) [शिव+आणक] पपड़ी, झाग।
शिथिल (वि०) [श्लथ् किलच्] धीमा, ढीला। ०बलगम, कफ।
सुस्त, विश्रान्त। शिकणं (नपुं०) नाक का मैल।
खुला हुआ, मुक्त। ०लोहे की जंग।
निढाल, निश्शक्त, असमर्थ। ०शीशे का बर्तन।
दुर्बल, कृश, क्षीण, बलहीन। शिडाणकः (पुं०) [शिधु+अणक] नासिकामल, सिणक। पिलपिला, ढीलाढाला। शिवाणकं (नपुं०) कफ, बलगम।
मुाया हुआ। शिङ्ग (वि०) उन्मत्त, प्रोन्मत्त। (जयो० ८/१५)
निष्क्रिय, निरर्थक, व्यर्थ।
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