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शिक्षाभेदः
शिक्षाभेदः (पुं०) विद्या के प्रकार । शिक्षालय : (पुं० ) विद्यालय ! शिक्षाशक्तिः (स्त्री०) विद्या प्रवीणता।
शिक्षित (भू०क०कु० ) [ शिक्ष+क्त] अधिगत, अहीत।
० अध्यापित सिखाया गया।
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• प्रशिक्षित, अनुशीलन ।
* प्रवीण, निपुण, योग्य ।
० विनीत, लज्जायुक्त।
शिखण्ड (पुं०) [शिखाममति अभ्ड] मुण्डन, ०काकपक्ष ० मयूर पंख ।
शिखण्डकः (पुं० ) [ शिखण्ड + इव+कन्] चोटी मुण्डन के समय छोटी शिखा । बलगुच्छा, शेखर, शेखर, चूडा। ० मयूर पुंच्छ ।
शिखण्डिन: (पुं० ) [ शिखण्डिन् +कै+क: ] मुर्गा | शिखण्डिन् (वि० ) [ शिखण्डोऽस्त्यस्य इनि] शिखाधारी, चोटी धारी ।
शिखण्डिमंडलं (नपुं०) मयूर समूह। (जयो० २४/२२) शिखिण्डन् (पुं०) मयूर, मोर। ०मुर्गा, ०बाण। (जयो०वृ०३/११) ० चमेली, ०विष्णु।
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शिखण्डिबाल (पुं०) मयूर बालक शिखिण्डनां केकिनां बालाश्चचुक्ञ। (जयो० ८/८ )
शिखण्डिवंशः (स्त्री०) सरस्वती शिखण्डिना मयूराणां वेशो दया सा सरस्वती। (जयो० १९ / २६ )
शिखण्डिनी (स्त्री० ) [ शिखण्डिन् + ङीप् ] मयूरी, मोरनी। ० द्रुपद पुत्री।
शिरवत्व (वि०) शिखर युक्त (सुद० १ / १६ )
शिखर: (पुं०)
शिखरं (नपुं०) चोटी, कूट, पर्वत का उन्नत भाग। (सुद०१ / ३६ ) ० सम्मेदशिखर जी, जो बिहार के गिरीडीह क्षेत्र में है। जैनों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल ।
० कलगी, चूडा।
शिखरत (वि०) उपरिष्ट। (जयो० १ / ९८ )
शिखराग्रः (पुं०) शिखर का उन्नत भाग। ( २/३४) शिखरावलि (स्त्री०) शिखर समूह (चीरो० २/५० ) शिखरिणी (स्त्री० ) [ शिखरिन् + ङीप् ] महिलारत्न ।
० श्रीखण्ड । मल्लिका, मालती। (जयो० २१ / ३५ ) स्त्रियां शिखरिणो वृत्तभेदेतकुभभेदेयोः स्त्रीरत्ने मल्लिकायां च रोमावल्यामपि स्मृता । इति विश्व०
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शिखावल:
० एक छन्द विशेष यह सत्तरह अक्षरों वाला छन्द हैरसै रुद्रैश्छिन्ना यमनसभला गः शिखरिणी' ( वृत्तरत्नाकर- ३ / ९० )
155 (यगण ) 555 (मगण) II (नगण) 115 (सगण), 511 (भगण) और (1) एक लघु और एक अन्त्य (5) गुरु युक्त शिखरिणी छन्द है ।
अभूद् दारासारेष्वखिलमपि वृत्तं त्वनुवदन्, समालीनः सम्यक् सपदि जनतानन्द जनकः । तदेतच्छ्रुत्वाऽसौ विघटितमनोमोहमचिरात्, सुरश्चिन्तांचक्रे मनसि कुलटाया कुटितताम् ।। (जयो० २ / १४३)
शिखरिन् (वि० ) [ शिखरमस्त्यस्य इनि] ०चोटी, ०वाला, ० शिखाधारी ।
नुकीला, तीक्ष्ण, ०शिखरयुक्त । शिखरिन् (पुं०) पर्वत, पहाड़। ० पहाड़ी दुर्ग, वृक्ष, ०टिटिहरी ।
शिखरिवरः (पुं०) पर्वतराज। (जयो० २ / १५४ ) ० हिमगिरि । शिखा ( स्त्री० ) [ शि+ खक् ] चोटी, शिखर । ० शाखा (जयो० १३/६८) शीर्षबिन्दु
०धार, नोक, तीक्ष्ण भाग ।
० चूलिका । (वीरो० २ / ११)
० अग्नि, ज्वाला ।
० प्रकाश किरण।
शिखाघर : (पुं०) मयूर पंख । शिखाजं ( नपुं०) मयूर पंख । शिखाधार: (पुं०) मोर, मयूर
।
शिखान्त (वि०) चोटी पर्यन्त, शिखर तक। (जयो० ११ / ९० ) शिखामणिः (स्त्री०) चूडामणि ।
शिखामूलं (नपुं०) गाजर। मूली । शिखालु (स्त्री०) मोर की कलगी।
शिखालुता (वि०) चूडायुक्त, चोटीधारी, सिक्ख । (जयो० २८/२९)
शिखावत् (वि०) [शिखा+मतुप् ] कलगीदार |
० ज्वाला युक्त।
शिखावर : (पुं०) कटहल का पेड़ ।
शिखावल: (पुं०) मयूर, मोर, मयूर गण (वीरो० २१ / ११ ) समेति निष्ठां सरसे शिखावलः साद्रनगालवाले (वीरो० १२/१२)
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