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शब्दविद्या
१०५१
शमीगर्भः
शब्दविद्या (स्त्री०) शब्दशास्त्र, व्याकरण ग्रंथ।
निराकरण, लघुकरण। शब्दविरोधः (पुं०) शब्दों के प्रति विरोध।
प्रथम, प्रशांत, उन्नयन, प्रशमन। शब्दविशेष: (पुं०) ध्वनि भेद।
०कषायेन्द्रिय जय शब्दवृत्तिः (स्त्री०) शब्द प्रयोग।
निर्विकारमन। शब्दवेधिन् (वि०) ध्वनि सुनकर निशाना लगाने वाला। शमथः (पुं०) [शम्+अथच्] शन्ति, स्थिरता, धैर्य, प्रशान्त मुद्रा। शब्दवेधिन् (पुं०) अर्जुन।
शमनं (नपुं०) [शम-ल्युट्] प्रशमन, शान्त, निराकरण, उपशमन, शब्दव्युत्पत्ति (स्त्री०) सूक्त विग्रह। (जयो०वृ० १८/९१)
क्षय, शान्ति। (जयो०वृ० १८/९९) शब्दशक्तिः (स्त्री०) शब्दों का प्रयोग, स्थान, प्रयत्नादि पूर्वक ०बुझाना- लग्नस्य वाश्रयभुजः शमनेऽपि शापम्' (वीरो० प्रयोग। (जयोवृ० १०/५२)
२२/२४) शब्दशास्त्रं (नपुं०) व्याकरण शास्त्र। (जयो० २/५२)
प्रसन्न करना, निराकरण करना, उन्नयन करना। शब्दशुद्धि (स्त्री०) शब्दों की शुद्धि, प्रयत्नादि पूर्वक शुद्धि। स्थैर्य, स्थिरता, व्याकुलता का अभाव। (मुनि० १०) शब्दसंग्रहः (पुं०) शब्दकोश। (जयो०वृ० १/२४)
शमनः (पुं०) यमराज, अन्तक। शमनमेष शिरः स्थितमीक्षतां शब्दसञ्चारणं (नपुं०) पदरीति। (जयो०वृ० १/३१)
नहि पुनः कवलेऽपि रुचिस्तता। (जयो० २५/४०) बालोऽस्तु शब्दसौष्ठवं (नपुं०) पद लालित्य। प्राञ्जल शैली।
कश्चित्स्थविरोऽथवा तु न पक्षपातः शमनस्य जातु। शब्दाकुलित (वि०) शब्द की आलोचना करने वाला।
(सुद० १२१) शब्दातीत (वि०) अनिवर्चनीय, शब्दों से परे।
शमनी (स्त्री०) [शमन+ङीप्] रजनी, रात्रि। शब्दाधिष्ठानं (नपुं०) कर्ण, कान, श्रवणेन्द्रिय।
राक्षस, पिशाच, भूत-प्रेत। शब्दाध्याहारः (पुं०) शब्दपूर्ति।
शमलं (नपुं०) [शम्+कलच्] मल, विष्ठा, लीद। शब्दानुपात (पुं०) शब्द की मर्यादा तोड़ना।
गोमय, गोबर। शब्दानुशासनं (नपुं०) व्याकरणशास्त्र।
पाप, नैतिक मलिनता। 'शमलं च मलं शकृत् इत्यमरकोषे' शब्दार्थः (पुं०) शब्द और अर्थ।
(जयो०वृ० २५/२६) शब्दालंकारः (पुं०) एक अलंकार विशेष, जो शब्द सौंदर्य पर | शमश (वि०) कल्याण सहि-शम एव शो धर्मो यस्य स
निर्भर रहता। भ्रमन्ति ययं परितो मदोत्कटाः। कटा श्रयन्ते (जयो० २६/) ननु चेतनात्मनाम्। (जयो० २४/१८)
शमितं (भू०क०कृ०) [शम् णिच्+क्त] ०प्रशान्त किया गया, शब्दित (वि०) ध्वनित। उच्चरित, ०कथित।
प्रसन्न किया गया। शब्दोच्चारणं (नपुं०) संवेदन, प्रवचन, कथन। (जयो०७० ०समझाया गया। १८/५०)
विश्राम दिया गया। शम् (अव्य०) [शम्+क्विप्] ०कल्याण, आनंद, हर्ष, खुशी। सौम्य, शान्त। (जयो० ३/२२)
शमितविवाद (वि०) विसंवादरहित। (जयो०२/१३७) समृद्धि, मंगल कामना।
शमिन् (वि०) [शम्+इनि] सौम्य, शान्त। शम् (अक०) शांत होना, प्रसन्न होना, खुश होना।
०प्रशान्त। (सुद० १२४) ०थमना, ठहरना. विश्राम लेना, रुकना।
आत्मनियन्त्रित। प्रशान्त होना।
शमिना (स्त्री०) भूमि, भू, धरा, पृथ्वी। (मुनि० ६) ०धीरज रखना, सान्त्वना देना।
'संतापादिविवर्जितेन शमिनामीशेन संपश्यता' (मुनि०६) शमः (पुं०) [शम+घञ्] ०धैर्य, शान्ति, प्रसन्नता। | शमी (स्त्री०) [शम्+इन्+ङीप्] प्रशमभाव, प्रशान्त भाव शमाम्बुधिर्मेरुरिवेद्धधैर्य (भक्ति० २३)
(सुद० ११७) विश्राम, आराम, ठहराव।
फली, सेम, छीमी। ०शान्त। (जयो० ९/२३)
शमीगर्भः (पुं०) अग्निहोत्री ब्राह्मण।
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