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शनिप्रियं
१०५०
शब्दयोनिः
शनिप्रियं (नपुं०) नीलम। शनिवारः (पुं०) शनिवार का दिन। शनैस् (अव्य०) [शण+डैस्] धीरे से, चुपके से। मंद से मंद।
(जयो० १/८९)
उत्तरोत्तर, उपयुक्त कर्म से। प्रत्युक्तया शनैरास्यं
सनैराश्यमुदीरितम्' (सुद० ८४) शनैश्चरः (पुं०) शनिग्रह। शनैश्चर (वि०) धीरे-धीरे चलने वाली। मंद यामि। __ (जयो०५/९१) शनैःशनैः (अव्य०) धीरे धीरे, अहिस्ता, आहिस्ता। श्रयन्
गोपपति। प्राप गोपुरं स शनैः शनैः' (जयो० ८/१०७) शन्तनुः (पुं०) [शं मंगलात्मका तनुर्यस्य] एक वंशी नृप। शप् (सक०) शपथ लेना, प्रतिज्ञा करना, कोसना, विरोध
करना-शयन्ति क्षुद्रजन्मानो (वीरो० १०/३४) सौगन्ध उठाना। विश्वास को उत्पन्न करना। विशाखनन्दी शपति स्म भूरि
ततोऽगमं रोषमहं च सूरिः। (वीरो० ११/१५) शपः (पुं०) [शप्+अच्] अभिशाप, कोसना।
०शपथ, सौगन्धा शपथः (पुं०) [शप्+अथन्] प्रतिज्ञा. घोषणा।
सौगंध लेना। ०कोसना, अभिशाप।
आक्रोश, फटकार। शपथपूर्वक (वि०) सौंगन्धपूर्वक। (दयो०४७) शपन (नपुं०) [शप्+ल्युट्] शपथ, सौगन्ध, प्रतिज्ञा। शप्त (वि०) उष्ण। (वीरो० १२/८) शफः (पुं०) [शप्+अच्] वृक्ष की जड़। शर्फ (नपुं०) खुर। (जयो० ८/१६) शफरः (पुं०) [शफ-राति-रा+क] चमकीली मछली। शफरता (वि०) झषता, मछली युक्त-रसयोरभेदात् सफलता
झषेत वा कुत। (जयो० ९/१४) शफराजयः (पुं०) खुररेखा, खुरचिह्न। 'वैरीश-वाजि- |
शफराजिभिरप्यगम्याम्' (जयो० ३/२७) शबरः (पुं०) भीलजाति, आदिवासी व्यक्ति। भिल्ल। (जयो०
७/७८) शबरनायक (पुं०) म्लेच्छ राजा। (जयो० २१/४१)
शिव. शंकर। (जयो० २०/६०)
शबरी (स्त्री०) भीलनी, भील स्त्री। शबरालयः (पुं०) पर्वतीय स्थल। शबल (वि०) मिश्रित, मिला हुआ। (जयो० २३/५७) शब्द् (सक०) शब्द करना, ध्वनि करना, शोर करना। शब्द (सक०) बुलाना, पुकारना, आवाज देना। (जयो०वृ०१/३८) शब्दः (पुं०) [शब्द+घञ्] ध्वनि, स्वर, गूंज। (जयो०वृ०१/१९)
राव-रव (जयो० ५/७०) निश्वन। (जयो० १९/९३) ०वचन, सार्थक प्रयोग। ०कलरव, कोलाहल। •आकाश गुण। ज्ञानाचार का एक भेद-शब्दाचार। (भक्ति० ८)
शब्द-अर्थ को बतलाना। ० श्रोत्रेन्द्रिय की विषयभूत ध्वनि। ०शब्दनमभिधानम्। ० श्रवणेन्द्रियगोचर।
०वर्ण, पद एवं वाक्यात्मक ध्वनि। शब्द कोशः (पुं०) अभिघान, शब्दसंग्रह। ०ज्ञाननिलय, ___* शब्दागार, ०शब्दनिचय। शब्दगत (वि०) शब्द के अन्दर रहने वाला। शब्दग्रहः (पुं०) शब्द पकड़ना, श्रवण, श्रोत्र, कर्ण, करन। शब्दचातुर्यं (नपुं०) वाक्पटुता, वचन प्रवीणता। शब्दचित्रं (नपुं०) कर्णमधुर आभास। शब्दचोरः (पुं०) साहित्य चोर। शब्दच्छल (नपुं०) शब्द का कारण। (जयो०वृ० १/१५) शब्दतन्मात्र (नपुं०) ध्वनि का सूक्ष्म तत्त्व। शब्ददोषः (पुं०) मौन तोडकर बोलना। शब्दन (वि०) शब्द करने वाला, ध्वनि करने वाला। __ (वीरो०१५/६) शब्दनयः (पुं०) शब्दार्थ ग्राह्य नय। (त०सू० १/३३) शब्दपातिन् (वि०) शब्दवेधी, शब्द पर निशाना लगाने वाला। शब्दप्रमाणं (नपुं०) मौखिक प्रमाण। शब्दबोधः (पुं०) ध्वनि ज्ञान। शब्दब्रह्म (नपुं०) वेद, शब्द निहित आध्यात्मिक ज्ञान। शब्दभेदिन् (वि०) निशाने में प्रवीण, शब्दपूर्वक निशाना
साधने वाला। ०ध्वनि पर लक्ष्य साधने वाला। शब्दभेदिन् (पुं०) अर्जुन। शब्दयोनिः (पुं०) धातु, मूल शब्द।
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