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शतशस्
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शनिप्रदोषः
शतशस् (अव्य०) [शत शस्] सैंकड़ों, सौ सौ करके। सौ । शत्रुजालं (नपुं०) प्रतिपक्षी का व्यूह।
बार। (जयो० ४१/२६) अनुभूता शतशो मयाऽहो दशा शत्रुञ्जयः (पुं०) एक तीर्थ, पालीताना में स्थिता परिभ्रमणस्य। (सुद०पृ० ९४)
०[शत्रु+जि+खच्] हस्ति, हाथी। शतसहस्रं (नपुं०) सौ हजार।
०एक पर्वत, गिरनार पर्वत। शतसाहस्र (वि०) सौ हजार से युक्त।
शत्रुत्व (वि०) शत्रुता, विरोधिता। (वीरो० १६/११, सुद०४/९) शतहृदा (स्त्री०) विद्युत, बिजली, चपला।
शत्रुदमन (वि०) शत्रुघातक। ०इन्द्र का वज्र।
शत्रुन्तप (वि०) [शत्रु+तप्+खच्] शत्रु को परास्त करने शतक्षी (स्त्री०) रात्रि, रजनी।
वाला, शत्रुजयी। दुर्गादेवी।
शत्रुपक्षः (पुं०) विरोधी का पक्ष। प्रतिपक्षी। शताग्रगण्य (वि०) सौ में अग्रणी। (वीरो० १८/४६)
शत्रुभूपः (पुं०) शत्रु नरटाट्। (जयो० ३/१०९) शताङ्गः (पुं०) गाड़ी, रथ, यान। (जयो० १३/२६) शत्रु विनाशन (वि०) विरोध नाशक। शताङ्ग (नपुं०) उन्नत अंग, समुन्नताङ्ग, (जयो०वृ० ८२५) शत्रुसदृश (वि०) शत्रु के समान। (जयो०वृ० १/३८) शताङ्गमाला (स्त्री०) [रथानां माला] रथपंक्ति, रथ तति। शत्रुसमूहः (पुं०) परचक्र। शत्रुदल। (जयो०३० २/१२१) (जयो० १३/२६)
शत्रुरूपी (स्त्री०) शत्रु की स्त्री। (जयो०वृ० १/२६) शतानीकः (पुं०) वृद्ध पुरुष, बूढ़ा व्यक्ति, सौ सिपाहियों का | शत्रुहत्या (स्त्री०) शत्रुघात। नायक।
शत्रुहन् (वि०) विरोधी का हनन। शतानकं (नपुं०) श्मशान।
शत्रुहानि (वि०) प्रतिपक्षी की समाप्ति। शतानन्दः (पुं०) जनकराज का पुरोहित।
शत्वरी (स्त्री०) रजनी, रात्रि, रात। शतायुस् (वि०) सौ वर्ष की आयु वाला।
शद् (अक०) पतन होना, नाश होना, क्षीण होना। शतावधानं (वि०) प्रहार बुद्धिशाला, तीव्र शक्तियुक्त. तीव्र मुझाना, म्लान होना। स्मरण
शद् (सक०) पहुंचाना, ठेलना, गिराना, फेंकना, डालना. वध शतवधानि (वि०) सौ का उदारक, सौ तक की संख्या का करना, नष्ट करना। ज्ञातक।
शदः (पुं०) [शद्+अच्] खाद्य, शाक भाजी, फल-सब्जी। शतावधिः (स्त्री०) सौ दिन की अवधि। (मुनि० ७) शद्रि (पुं०) [शद्+किन्] ०हस्ति, हाथी। मेघ (जयो० १५/२३) शतावर्तः (पुं०) विष्णु।
बादल। ०अर्जुन। शतिक (वि०) सौ से युक्त/सौ से प्रभावित।
शद्रिः (स्त्री०) विद्युत्, बिजली। शतिन् (वि०) [शत+इनि] सौ गुणा।
शुद्ध (वि०) [शद्+रु] गतिशील, प्रवाहमान। ०असंख्य।
०पतनशील, नश्वर, क्षीण होने वाला। शत्रिः (पुं०) [शद्+त्रिप्] हस्ति, हाथी।
शनकैः (अव्य०) [शनैः+अनच्] शनैः शनैः, धीरे धीरे, मंद शत्रुः (पुं०) [शद्+त्रुन्] वैरी, विरोधी, दुश्मन।
से मद। मन्दगत्या (जयो०वृ० १३/५१) प्रतिपक्षी। (सुद० ११८) शत्रुश्च मित्रं च न कोऽपि विनोदवार्तामनुसम्विधात्री लोके हृष्यज्जनोऽज्ञो निपतेच्च शोके। (सुद० ११०)
समं तयाऽगाच्छनकैः सुगात्री। (वीरो० ५/३७) शत्रुकर्षण (वि०) शत्रु का दमन करने वाला, शत्रु संहारक। शनकै! समितोऽपि तन्द्रिता शत्रुखण्डं (नपुं०) शत्रु समूह।
न शेते पुनरेष शायितः। (सुद० ३/२६) शत्रुगत (वि०) शत्रु भाव युक्त, दुष्ट भाव गत।
शनिः (पुं०) [शो+अनि] शनिग्रह। शत्रुजः (पुं०) सुमित्रा पुत्र, लक्ष्मण भ्राता।
सूर्यपुत्र। शनिवार! शत्रुनाशका
शनिपित (पुं०) सूर्य, दिनकर। (जयो० ६/३८) शत्रुचक्र (नपुं०) दुष्ट का चाक।
शनिप्रदोषः (पुं०) सन्ध्यार्चना।
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