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शण्डं
१०४८
शतवर्ष
शण्डं (नपुं०) संग्रह, समुच्चय।
०खण्ड। शण्ढः (पुं०) [शाम्यति ग्राम्यधर्मात् शम्+ढ] हिजड़ा, नपुंसक।
०टहलुआ, अन्तःपुर का सेवक। ०सांड।
उन्मत व्यक्ति। शतं (नपुं०) [दश दशतः परिमाणस्य दशन् त, श आदेश:]
सौ, सौ की संख्या। (जयो० ३/९३) सञ्जातानि मनोहराणि शतशो मुक्ताफलानि स्वयम्। (जयो० ३/९३) शतानि
(सम्य० ३) शतक (वि०) [शत कन्] सौ से युक्त। शतकं (नपुं०) शताब्दी, सौ श्लोकों का संग्रह। 'नीतिशतकं,
वैराग्यशतकं, श्रमणशतकम्' शतकार्यः (पुं०) सैकड़ों कार्य। शतकेन्द्रः (पुं०) सौ केंद्र। शतकुम्भः (पुं०) सौ घट। शतकृत्यः (अव्य०) सौ गुणा। शतकोटि (स्त्री०) सौ करोड़। शतक्रतु (पुं०) इन्द्र। (जयो० २४/४०)
सैकड़ों यज्ञ में तत्पर। (जयो० २२/६६)
पूर्व दिक्पाल। (जयो० २२/६६) शतखण्डं (नपुं०) सोना, स्वर्ण। शतगु (वि०) सौ गायों का स्वामी। शतगुण (वि०) सौ गुणा। शतग्रन्थिः (स्त्री०) दूर्वाघास। शतघ्नी (स्त्री०) गले का रोग।
०एक शिला।
०एक अस्त्र विशेष। शतच्छदं (नपुं०) कमल। (जयो० १७/७१) शतजिह्वः (पुं०) शिवा। शततम (वि०) सौंवा। शततारका (स्त्री०) शतभिषा नक्षत्र। शतत्व (वि०) सौ संख्या वाला। (जयो० १/२६) शतदल (नपुं०) कमल, अरविंद, पद्म। शतदला (स्त्री०) सफेद गुलाब। शतधा (अव्य०) [शत+धाच्] सौ तरह से, सौ भागों से। शतधामन् (पुं०) विष्णु। शतधार (वि०) सौ का धारक।
शतधारं (नपुं०) वज्र। शतधृतिः (स्त्री०) ०इन्द्र।
०ब्रह्मा। शतपत्रं (नपुं०) कमल, पद्म। (जयो० २६/८१) खुटबढ़ई। शतपत्रकं देखो ऊपर। ०अरविंद, सरोज। शतपत्रनीति (स्त्री०) शतपत्र रूप कथन। पत्राणां शतं तदेवैकी
भूयं शतपत्रं कमलमिति कथन रूपा सत्या। दार्शनिक दृष्टि-अङ्ग और अङ्गी, अवयव और अवयवी में ऐक्य अभेद नहीं हैं, पृथक्ता ही है, ऐसा कहना ठीक नहीं जान पड़ता, परन्तु अभेद कथन शतपत्र के समान सत्य है। जैसे कि सौ पत्रों-कलिकाओं का समूह शतपत्र/कमल कहलाता है। यहां सौ पत्रों और कमल में भेद नहीं है, अभेद है, क्योंकि एक एक पत्र के पृथक् करने पर शतपत्र/कमल ही नष्ट हो जाता है। यही बात गुण और गुणी में है। प्रदेश भेद न होने से गुण-गुणी में अभेद है, क्योंकि गुणों के नष्ट होने पर गुणी भी नष्ट हो
जाता है। शतपद (वि०) सौ पैरों वाला। शतपक्ष (स्त्री०) कनखजूरा। शतपद्मं (नपुं०) सौ पत्रों वाला कमल, श्वेत कमल। शतपर्वन (पं०) बांस। आश्विन मास की पर्णिमा।
दूर्वाघास।
०कटुक पादप। शतमखः (पुं०) इन्द्र। शतमन्यु (पुं०) इन्द्र।
उल्लू। शतमुख (वि०) सौ द्वार वाला। शत यज्वन् (पुं०) इन्द्र। शतयज्ञ (वि०) सौ यज्ञ वाला। (सुद० ४/४७) पौलोमी
शतयज्ञतुल्यकथनौ कालं तकौ निन्यतुः। (सुद० ४/४७) शतरञ्जः (पुं०) शतरञ्ज, जिसमें वजीर, बादशाह, घोड़ा, हाथी
आदि की कल्पना करके खेला जाने वाला खेल।
(वीरो० १७/४) शतरञ्जतूर्णः (नपुं०) शतरंज का खेल। (वीरो० १७/१४) शतरञ्जाख्यखेलनं (नपुं०) शतरंज नामक खेल।
श्रुतमस्ति भवान् दक्षः, शतरआख्यखेलने,
भवता कलयिष्यामि, तदद्य गुण शालिना।। (समु० ३/४१) शतवर्ष (नपुं०) सौ वर्ष।
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