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व्युष्ट
१०४२
व्रणकृत्
०अभाव, विराम।
व्योमनाशिका (स्त्री०) बटेर, लवा। ०अलगाव।
व्योमभंजरं (नपुं०) ध्वजा, पताका। व्युष्ट (भू०क०कृ०) [वि+उष्+क्त] प्रज्ज्वलित किया हुआ, व्योममण्डलं (नपुं०) ध्वजा, पताका। उज्ज्वल किया हुआ।
व्योममुद्गरः (पुं०) पवन का वेग, वायु प्रवाह। प्रभात, पौफटी।
व्योमयानं (नपुं०) विमान, आकाशयान, हवाई जहाज व्युष्टं (नपुं०) पौ फटना, प्रभात।
____ वायुयान। (समु० ४/३६) (जयो० १०/८६) व्युष्टिः (स्त्री०) [वि+वस्+क्तिन्] प्रभात, प्रात:काल, पौ व्योमसद् (पुं०) देव, सुर, गन्धर्व, फटना।
भूतप्रेत, पिशाच, राक्षस। समृद्धि, प्रशंसा।
व्योमसर्सिणी (वि०) आकाश व्यापिनी। (जयो० ३/५७) ०फल परिणाम।
व्योमस्थली (वि०) गगनचुम्बी. आकाश को छ जाने वाली। व्यूढ (भू०क०कृ०) [वि+वह्+क्त] विशाल, विस्तृत, व्यापक। व्रज् (सक०) जाना, चलना, प्रगति करना। (सुद० २/२४) ०फुलाया हुआ, विकसित।
०पधारना, पहुंचना। व्रजिष्यासि (दयो०६०२, जयो०१/३९) * व्यवस्थित, क्रमहीन।
आना-'अपि निर्भयमास्थिताः कथं व्रजतीतः खलु वाजिनां व्यूत (वि०) [वि+वे+क्ता] अन्तर्बलित, सीया हुआ।
व्रजः। (जयो० १३/१४) व्रजः समूहो व्रजति व्यूतिः (स्त्री०) [वि+वे+क्तिन्] बुनाई, सिलाई।
अनुगमन करना-विपदि वज्रायते सत्वाद् (सुद० १२४) व्यूहः (पुं०) [वि+ऊ+घञ्] सैनिक रचना, सैन्य प्रक्रिया। | व्रजः (पुं०) समूह, समुच्चय, समुदाय। (जयो०५/८, जयो० शत्रु को घेरने की पद्धति।
१३/१४) वज्रः समूहो व्रजति (जयो०वृ० १३/१४) सेना, समूह, दल।
चरगाह स्थान, गौशाला, गोष्ठ। ०समवाय, समुच्चय, संग्रह, समुदाय।
आवास, आरामगृह, विश्रामालय। शोध।
०पथ, मार्ग, रास्ता, सड़क। ० भाग, अंश, उपशीर्ष।
०मथुरा के समीपस्थ स्थान। ०संरचना, निर्माण।
व्रजनं (नपुं०) [व्र+ल्युट्] घूमना, विचरण करना, हिंडन, ०तर्कना, तर्क।
भ्रमण, परिभ्रमण। व्यूहनं (नपुं०) [वि+ऊ ल्युट] सेना को व्यवस्थित करना, फिरना, टहलना। सेना को क्रमबद्ध करना।
निर्वासन, देश निकाला। व्यद्धिः (स्त्री०) [विगता ऋद्धि] समृद्धि का अभाव। व्रज्या (स्त्री०) [व्रज्+क्यप्+टाप्] प्रवजित होकर घूमना। व्ये (सक०) ढकना, सिलना, सिलाई करना।
०प्रस्थान, गमन। व्योकारः (पुं०) [व्ये मनिन्] आकाश, अंतरिक्ष, गगन, नभ ०आक्रमण। (जयो० ३/१११)
समुदाय, ओघ, सम्प्रदाय। जल।
रंगभूमि, नाट्यशाला। सूर्यमन्दिर।
व्रण (अक०) ध्वनि करना, शब्द करना। ०अभ्रक।
०चोट पहुंचाना, घायल करना। व्योमकेशः (पुं०) शिव, महादेव।
व्रणः (पुं०) [व्रण+अच्] दाग, चिह्न, कलंक। (जयो० १५/५६) व्योमकेशिन् (पुं०) शिव।
घाव, चोट। (मुनि० ३१) व्योमचारिन् (पुं०) पक्षी, खग।
०व्रणसद्भाव। (जयो० ११/६३) ___०तारा, नक्षत्र।
फोड़ा, नासूर। व्योमतलं (नपुं०) आकाश भाग। (वीरो० २१/७)
वणकृत् (वि.) घाव करने वाला। व्योमधूमः (पुं०) मेघ, बादल।
व्रणकृत् (पुं०) एक वृक्ष विशेष।
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