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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्रणविरोपण १०४३ व्रीहि-अगारं व्रणविरोपण (वि०) घाव भरने वाला। व्रणशोधनं (नपुं०) फोड़ा साफ करना, पट्टी बांधना। वणहः (पुं०) एरंड पादप। व्रणारिः (स्त्री०) एक गन्ध विशेष। व्रणित (वि०) [व्रण+इतच्] घायल। व्रणित्व (वि०) घाव युक्त, चोट ग्रस्त। (जयो०७० २०/७०) व्रतः (पुं०) प्रतिज्ञा, नियम, साधना। व्रतं (नपुं०) ०संकल्प, दृढ़ता, निश्चय। (जयो० २८/१०७) ०संस्कार, अनुष्ठान, अभ्यास। आचरण, चर्या। कर्म, कार्य। प्रतिज्ञा, नियम, साधना। कर्तव्या हिंसादि से विरत होना। ०संकल्पक नियम का सेवन। (सम्य०८४) सार्वसावधयोग की निवृत्ति। सर्वसंग/परिग्रह का त्याग। (सम्य० ९८) व्रतकारिन् (वि०) आचरण करने वाला। व्रतगत (वि०) अभ्यास को प्राप्त हुआ। व्रतग्रहणं (नपुं०) नियम लेना, संकल्प करना। व्रतचर्य (वि०) ०प्रतिज्ञाशील, ०अहिंसादि व्रतों का आचरण करने वाला। व्रतचर्या (स्त्री०) नियम आचरण, साधना में तत्पर। व्रतजन्य (वि०) अनुष्ठान युक्त। व्रतति (स्त्री०) लता, बेल। व्रतधारणं (नपुं०) कर्तव्य पालन। (सुद० ९६) व्रतधारिन् (वि०) व्रत को धारण करने वाला। व्रतपरिरक्षणं (नपुं०) व्रत निर्वाह। व्रतपरिरक्षणमेव चात्मपरिक्षण मतस्तदेव सम्भालनीयमितियतो (दयो० १६) व्रतपारणा (स्त्री०) व्रत-उपवास विधि की समाप्ति, व्रत खोलना, व्रत समाप्त करना। व्रतपूर्वक (वि०) नियम सहित। तदुत्तमं यदव्रतपूर्वकं स ययौ नन्दतटाकहंसः। (दयो० ४३) व्रतभङ्गः (पुं०) नियम भङ्ग, व्रत में अतिचार, व्रत में दोष, व्रत में शिथिलता, शिथलाचार। प्रतिज्ञा तोड़ना। व्रतभिक्षा (स्त्री०) व्रत की याचना। व्रतलोपनं (नपुं०) प्रतिज्ञा तोड़ना। व्रतवैकल्पं (नपुं०) व्रत में अतिचार लगना, व्रतभङ्ग होना, व्रत । पूर्ण न होना। व्रतसंयुज (वि०) व्रत/नियम में लगा हुआ, व्रताधीन। (सुद०९५) व्रताचरणं (नपुं०) व्रत पालन। व्रताचारः (पुं०) व्रताचरण, व्रत की प्रतिज्ञा का निर्वाह। (वीरो० ८/३८) व्रतादेशः (पुं०) व्रत धारण, व्रत का संस्कार। व्रताश्रिति (स्त्री०) त्यागगत। (जयो० १/८१) वतित्व (वि०) व्रत वाला, नियम युक्त। (हित० १२) वतिन् (वि०) [व्रत्+इनि] व्रत पालक। व्रताभिसम्बन्धिनो व्रतिमः। नियमधारी, दृढ़संकल्पी। (मुनि० ६) निशल्योव्रती (त०सू०७/१८) अन्तो भोगभुगुपरि तु योगो बकवृत्तिवृतिनो नियता। (सुद० १०५) व्रतिनी (स्त्री०) विधवा स्त्री, पतिविहीन स्त्री। नयनोत्पलवासिजलैः, प्रपां ददात्यरिवधूर्वतिनी। (जयो० ६/८६) नियमवती, सती। (जयो०वृ० ६/८६) वश्च् (सक०) काटना, फाड़ना, चीरना। ०घायल करना। व्रश्चनं (नपुं०) [वश्च+ल्युट्] छोटी आरी, कररेंत, करोंत। वाजिः (स्त्री०) [व्रज्+इञ्] पवन प्रवाह। झंझावात, हवा का झौंका। व्रातः (पुं०) [वृ+अतच्] समूह, शोध। (जयो० ) ० समुदाय, समुच्चय। वातं (नपुं०) शारीरिक श्रम। वातीन (वि०) [वातेम जीवति-व्रात+न] बेलदार, दैनिक मजदूरी वाला। व्रात्यः (पुं०) [व्रातात्, समूहात् च्यवतियत्] अधम व्यक्ति। व्री (सक०) छांटना, चुनना, चयन करना। व्रीड् (अक०) लज्जित होना, शर्मिन्दा होना। • फेंकना, डालना। व्रीडा (स्त्री०) [व्रीड्+भ+टाप्] ०लज्जा, (दयो०५४) विनयशीलता, नम्रता। वीडित (भू०क०कृ०) [वीड्+क्त] लज्जाशील, लज्जित किया गया। वीस् (सक०) क्षति पहुंचाना, घात करना, हनन करना। व्रीहिः (स्त्री०) [वी+हि] धान्य, चावल। (जयो० ३/८) व्रीहि-अगारं (नपुं०) धान्यागार, धान्य का कोठार। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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