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व्याख्याय
१०३८
व्यापद्
व्याख्याय (सक०) व्याख्यान करना, उपदेश करना।
(भक्ति० ३२) व्याघट्टनं (नपुं०) [वि+आ+घट्+ल्युट्] ०मथना, रगड़ना।
बिलोना, मंथन क्रिया।
घर्षण करना, माजना। व्याघातः (पुं०) [वि+आ+हन्+क्त] प्रहार, विघ्न, बाधा,
विघात, रुकावट।
०वचन अवरोध, आघात। व्याघ्रः (०) [व्याजिघ्रति-वि+आ+घ्रा+क] ०बाघ, चीता। ____०मुख्य, प्रधान, प्रमुख। व्याघ्रनायकः (पुं०) गीदड़। व्याघ्रि (स्त्री०) मादा चीता, बाघिन। (दयो० २०) अनेन
चिन्तातुरमानसा तु सा, विपद्य च व्याघ्रि अभदहो रुषा।
(समु० ४/८) व्याघ्री (स्त्री०) चीता, बाघिन। व्याच्छन्न (वि०) कृशीकरण, तंग, क्षीणता युक्त। (जयो०७०
१३/६७) व्याजः (पु.) [व्यजति यथार्थव्यवहारात् अपगच्छति
अनेन-वि+अज्+घञ्] ० धोखा, छल, जालसाजी। छद्मभाव। (जयो० ७/४) ०बहाना, व्यपदेश, आभास।
कूटयुक्ति , कूटवचन।
०छल। (जयो०वृ० १/३३) व्याजनिन्दा (स्त्री०) छल पूर्वक निन्दा। व्याजस्तुतिः (स्त्री०) एक अलंकार जिसमें किसी कारण के
स्पष्ट फल का जानते हुए भी कोई अन्य कारण प्रतिपादित किया जाए, जहां वास्तविक भावना को कोई दूसरा कारण बताकर छिपा लिया जाता है। त्रिवर्गसम्पत्तिमतोऽत्र मन्तुमदक्षराणां कलनाः क्व सन्तु। न वेति वार्थान्निधयो भवन्तु तस्येतिवार्तास्तु लयं व्रजन्तु।।
(जयो० १/३९) व्याडः (पुं०) [वि+आ+अड्+अच्] मांस भक्षी जानवर।
गुण्डा, बदमाश। व्याङि (पुं०) एक वैयाकरण। व्यात्त (भू०क०कृ०) [वि+आ+दा+क] विस्तृत, विस्तीर्ण,
फैला हुआ। फुलाया गया। व्यात्युक्षी (स्त्री०) [वि+आ+अति-उक्ष णिच+अज+ङीष्]
जलक्रीड़ा, जलविहार।
व्यादानं (नपुं०) [वि+आ+दा+ल्युट्] उद्घाटन, खोलना। व्यादिशः (पुं०) [विशेषणे आदिशति स्वे स्वे कर्मणि नियोजयति
वि+आ+दिश्क] विष्णु, हरि। व्याधः (पुं०) [व्यध्+ण] शिकारी, वहेलिया। (समु०४/३८) व्याधकुलज (वि०) शिकारी के कुल में उत्पन्न हुआ। (जयो००
२/१३०) व्याधभीत (वि०) शिकारी से डरा हुआ। व्याधभीतः (पुं०) हरिण, मृग। व्याधिः (स्त्री०) [वि+आ+धा+कि] ०रोग, शारीरीक अवस्था,
रुजा। शारीरिक रोग (जयो० २६/१०१)
०दुःख, आतंक, शोक, चिन्ता। व्याधिकर (वि०) अस्वास्थ्यकर, रोगजनक। व्याधिगत (वि०) रोग ग्रस्त। व्याधिजात (वि०) आतंक को प्राप्त हुआ। व्याधित (वि०) [व्याधिः सञ्जातोऽस्य] रोगाक्रान्त, दु:खी।
बीमार। (दयो० ४८) । व्याधिप्रतीकारक (वि०) आयुर्वेद विज्ञान विज्ञ। चिकित्सक,
वैद्य। (जयो०७० १/७६) आयुर्वेदी स एवात्मन: परस्य च
व्याधिप्रतीकारकः। व्याधूत (भू०क०कृ०) [वि+आ+धू+क्त] कांपता हुआ, घबराता
हुआ, डरता हुआ। व्यानः (पुं०) [व्यानिति सर्वशरीरं व्याप्नोति] [वि+आ+अच्+
अच्] प्राण तत्त्व की व्यापकता।
जो वायु समस्त शरीर को व्याप्त करती है। व्यानतं (नपुं०) [वि+आ+नम्+क्त] रतिबन्ध, मैथुन पद्धति। व्याप् (सक०) [वि+अच्] विस्तृत होना, फैलना। (दयो०३६) व्यापकं (वि०) [विशेषेण आप्नोति-वि+आप+ण्वुल] विस्तृत,
विस्तीर्ण।
फैला हुआ, प्रसारित।
०बहुमुखी। व्यापकः (पुं०) अन्तर्हित गुण, सहवर्ती गुण। व्यापत्तिः (स्त्री०) [वि+आ+पद्+क्तिन्] ०आपत्ति, संकट,
दुर्भाग्य।
०मरण, मृत्यु, हनन। व्यापद् (स्त्री०) [वि+आ+पद्+क्विप्] संकट, कष्ट, दुष्ट।
दुर्भाग्य। रोग, विशृंखलता।
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