________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वृषचक्रः
१०१९
वृषाङ्कविभवः
* उत्तम दल, समुदाय।
४/१३) तमाश्विनं मेघहरं श्रितस्तदाऽधियोऽपि दासो वृषभस्य * धर्म-वृषं धर्ममपेक्ष्य (जयो०व०२/२०) नासौ नरो या सम्पदाम्। (सुद० ४/१४) न विभाति भोगी, भोगोऽपि नासा वृषप्रयोगी। वृषो न वृषभावः (पुं०) धर्मभाव, नीतिपूर्ण व्यवहार। सोऽसख्यसमर्थितः स्यात्साख्यं च तन्नात्र कदापि न स्यात्।। * वलीवर्द (वीरो० ३/३६) 'लोकोऽयं वृषभावतोऽपि (वीरो० २/३८)
सुतरां दुष्कर्मणां वारणम्' (मुनि० ३३) * कामदेव।
* बलीवर्द रूप। (जयो० २८/५८) * सदाचारी व्यक्ति।
वृषभावना (स्त्री०) धर्मभावना। (दयो० १/१२) * उत्तम * शत्रु, विपक्षी। (वीरो० २/३८)
चिन्तन। * नैतिकता, न्याय।
वृषभी (वि०) [वृषभ ङीष्] विधवा, कवच्। * उत्तम, श्रेष्ठ, सुंदर। (सुद० १३२)
वृषभृत् (वि०) आगम गत नियम पालक। (जयो० २/११७) वृषचक्रः (पुं०) धर्मचक्र। (जयो० १२/४)
वृषलः (पुं०) [वृष्+कलच्] * शूद्र। (जयो०वृ० १/४०) ___* बैल युक्त।
* धर्माचार में तत्पर-वृषं लातीति वृषलो धर्माचरणतत्परश्च' वृषचक्राह्वयत (वि०) वृष चक्र का धारक। (जयो० २६/६४)
(जयो०वृ० १/४०) वषचिन्तामणिः (स्त्री०) धर्मचिन्तामणि। (जयो० २८५८५)
* पृथुल-शूद्र। (जयो०वृ० १/४०) वृषदंशः (पुं०) विलाव।
* चाण्डाल- (जयो०वृ० १/४०) वृषधर (वि०) वृषभ/बैल के चिह्न को धारण करने वाले
* दास (जयो० २५/२५) 'यस्यानुकम्पा हृदि तूदियाय स ऋषभदेव, आदि तीर्थंकर ऋषभदेव। (जयो० ९/८२)
शिल्पकल्पं वृषभलोत्सवाय। सेवा परायण शूद्रों की नाना वृषध्वजः (पुं०) वृषचिह्न।
प्रकार की शिल्पकलाएं हैं। (वीरो० १८/१४) 'सवृत्तभावाद * नाभेयतीर्थंकर, महादेव। 'वृषो नाम बलीवर्दो ध्वजे यस्य
वृषलोऽपि वन्द्याः '। (वीरो० १७/१७) स वृषध्वजो नाभेय तीर्थकर महादेवोऽपि। (जयो० १९/२२)
वृषलक (वि०) तिरस्कार योग्य शूद्र। * सद्गुणी, धर्मात्मा, पुण्यशाली।
वृषलपालित (वि०) दास द्वारा पोषण किया गया। (जयो० वृषपतिः (पुं०) नाभेय तीर्थंकर, महादेव। वषपर्वन (पुं०) ऋषभदेव, प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव।
२५/६५) * महादेव।
वृषली (स्त्री०) [वृषल+ङीष्] रजस्वला स्त्री। * वर, भिरड।
* शूद्रस्त्री । वृषप्रयोगिन् (वि०) धर्माचारी। (वीरो० २/३८)
वृषलीपतिः (पुं०) शूद्रस्त्री का पति। वृषभः (पुं०) बैल, बलीवर्द, सांड। (समु० ६/४३)* ऋषभदेव,
वृषवः (पुं०) धर्मस्थान, धर्मशाला। (जयो० २५/३९) प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ नाभिराजा का पुत्र। (वीरो०
वृष-वत्सलत्व (वि.) बैल एवं बछडे की वात्सल्यता। (जयो० २/२, दयो० ३०) (सुद० ४/१४) वृषभ देव। (जयो०९/८२)
२१/४४) गो प्रीति युक्त। * धर्म भावना। (जयो०वृ० ७/६५)
वृषवास्तुवः (पुं०) धर्म रूप मकान। करोतु धर्मग्रहणं न वा * हस्तिकर्णी
प्रभो! समादिशेदं वृषवास्तुवप्रभोः! (समु० ४/२१) * देवालय। * कर्ण विवर।
वृषवृद्धिः (स्त्री०) वृषभवृद्धि, बैलों की वृद्धि। (सुद० २/२९) * वृषभ स्वप्न, बैल का देखना
वृषसंयोजनः (नपुं०) बलीवर्द संयोग। (जयो० १२/११२) मूलगुणादिसमन्वित-रत्नत्रयधर्मकटन्तु।
वृषाङ्कः (पुं०) महादेव, वृषभ, प्रथम तीर्थंकर वृषभदेव, मुक्तिपुरीमुपनेतुं धुरन्धरो वृषवदयन्तु।। (वीरो० ४/४२) ऋषभनाथ। (जयो० ५/२४) वृषभदत्तः (पुं०) उज्जयिनी का एक राजा। (दयो० १/१२) * रुद्र (जयोवृ०५/२४) 'वृषाङ्कस्य रुद्रस्य उत नाभेयस्य वृषभदत्ता (स्त्री०) उज्जयिनी के राजा की रानी। (दयो० १/१३) प्रथमतीर्थंकरस्य' (जयोवृ०५/२४) वृषभदासः (स्त्री०) वृषभ देव का दास, वृषभदास सेठ (सुद० । वृषाङ्कविभवः (पुं०) भस्मीकरण रूप, भस्मधरी। 'वृषाङ्कस्य
For Private and Personal Use Only