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वृद्धावस्था
१०१८
वृषः
पत्ता
वृद्धाम्बुधिमेव गत्वा ता निम्नगा एव जडाशयत्वात्।। (सुद० । वृद्धिस्थानं (नपुं०) वृद्धिपद 'वृद्धिस्थाने रास्थाने गुणादेशात् १/१८)
रकारविधानाद्' (जयोवृ० ७/९) वृद्धावस्था (स्त्री०) बुढ़ापा, वृद्धपना। (जयो० १/३६)
वृध् (अक०) बढ़ना, विकसित होना। वृद्धावस्थापन्न (वि०) धवल, कर्चक। (जयोवृ० २/१५३)
* फलना, समृद्ध होना। वृद्धिः (स्त्री०) [वृध्+क्तिन्] उत्कर्षभुवि धुतोऽग्रविधिगुणवृद्धिमान् * चमकना। सपदि तद्धितमेव कृतं भजन्। (जयो० वृ०१/९५)
वृधसान: (पुं०) [वृधेः छन्दसि असानच्] मनुष्य। * विकास, उन्नति, प्रगति, परिवर्धन।
वृधसानुः (पुं०) [वृध्+असानुच्] * मनुष्य। * लाभ, वस्तुगत अंशलाभ। * सम्वर्धन, बढ़ोत्तरी।
* कर्म, कार्य। * सूद, सूदखोरी।
वृन्तं (नपुं०) डंठल, डंडी, बौंडी, अग्रभाग। * कलावृद्धि, चन्द्रवृद्धि। * समृद्धि।
वृन्ताकः (पुं०) [वृन्त+अक्+अण] बैंगन का पौधा। * समुदय, समुच्चय, ढेर।
वृन्तिका (स्त्री०) [वृन्त+कन्+टाप् इत्वम्] डंठल। * स्वरो की वृद्धि-अ+इ=ए,
वृन्दं (नपुं०) सम्प्रदाय। (वीरो० ३/४) आ+ए-ऐ, आदि। 'गुण एव अदेङ, वृद्धिरेप् आदैग, तयो * समुच्चय, समुदाय, समूह, ढेर, परिमाण। (वीरो०२१/२५) सिद्धिरपि (जयोवृ० १/३१)
वृन्दगत (वि०) समुच्चय युक्त। * समूह युक्त। अ+ए-ए- तव+एव-तवैव
वृन्दचम् (वि०) सैन्यसमूह। * चतुर्विध सैन्य समुदाय। आ+ए ऐ तथा+एव-तथैव।
वृन्दा (वि०) [वृन्द+टाप्] तुलसी पौधा। अ ऐ ऐ देव+ऐश्वर्यम्-देवैश्यम्।
वृन्दार (वि०) अधिक, बड़ा, भारी। आ+ऐ ऐ महा+ऐश्वर्यम्-महैश्वर्यम्।
___ * प्रमुख, श्रेष्ठ, उत्तम, आदरणीय। अ+ओ=औ उष्ण+ओदनम्-उष्णौदनम्।
वृन्दादक (वि०) देखो ऊपर। आ+ओ=औ गंगा+ओघ: गंगोषः।
वृन्दारण्यं (नपुं०) गोकुल का क्षेत्र। अ+औ=औ कृष्ण औतकण्ठ्य म्,
वृन्दावनं (नपुं०) गोकुल क्षेत्र। * नगर विशेष। कृष्णौतकण्ठ्यम्।
वृन्दिष्ठ (वि.) सुंदरतम, पवित्रतम। अत्यन्त बड़ा। आ+औ=औ महा+औषधम् महौषधम्।
वृन्दीयस् (वि०) सम्माननीय, पूजनीय, आदरणीय, * मनोहर, * 'पाणिनीयव्याकरणसमुक्त्वामक्षरशो' (जयो० २०/७४)
सुंदर, उत्तम 'गुणश्च वृद्धिश्च गुणवृद्धी व्याकरणशास्त्रोक्तोक्ते संज्ञो
वृश् (सक०) छांटना, चुनना। तद्वान् उक्तिविदां वैयाकरणानां पूज्यपात्रामाचार्यवर्यो
वृशः (पुं०) [वृश्+क] चूहा। जैनेन्द्रव्याकरणकर्ता महाशय इव कथितः' (जयो०वृ०१/९५)
वृशं (नपुं०) अदरक। वृद्धिंगत (वि०) वृद्धिको प्राप्त हुआ। 'वृद्धिंगतत्वात्पलितोज्ज्वला
वृशा (स्त्री०) एक औषधि, अडूमा। द्यकीर्तिर्भुजङ्गस्य गृहं प्रसाद्य' (जयो० १/३६) वृद्धिजीवनं (नपुं०) साहूकारी, सूदखोरी।
वृश्चिकः (पुं०) [वश्चकिकन्] बिच्छू। (जयो०३० २३/४१) वृद्धिद (वि०) समृद्धि को उन्नत करने वाला।
___ * केंकड़ा, कनकजूरा। वृद्धिपत्रं (नपुं०) उस्तरा।
वृश्चिकराशिः (स्त्री०) वृश्चिकराशि। वृद्धिमान् (वि०) उत्कर्षशील।
वृष (अक०) बरसना, गिरना, उछालना, उड़ेलना। वृद्धिशोल (वि०) बढ़ने वाला। (जयो०वृ० १/१०२)
* बौछार करना, फुहार करना। वृद्धिसंधि (स्त्री०) संधि का एक भेद, जिसमें ह्रस्व अ, दीर्घ
___ * अनुदान देना, अर्पण करना। आ के पश्चात् ए या ऐ होने पर 'ऐ' और ह्रस्व 'अ' एवं * तर करना। दीर्घ 'आ' बाद ओ या ओ होने पर 'औ' हो जाता है। | वृषः (पुं०) [वृष्+क] * सांड, वृषभ, बैल, बलिवर्द। 'वृद्धिरेप, आदैग्' (जयो०वृ० १/३१)
* वृषराशि।
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